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Monday, 10 October 2022

मुलायम सिंह ने गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में ली आख़िरी साँस।


किसी के भी जाने पर दुःख होता है। लेकिन हैरानी भी होती है कि मुलायम सिंह को अपना इलाज करवाने मेदांता जैसे महँगे प्राइवेट अस्पताल में आना पड़ा, ये ख़ुद तीन बार यूपी में मुख्यमंत्री रह चुके हैं, एक बार अखिलेश के नेतृत्व में इनकी पार्टी सरकार चला चुकी है। लेकिन तब भी ये तथाकथित नेता उत्तर प्रदेश में ऐसे सरकारी अस्पताल नहीं बना पाये जो इन्हें अपने इलाज करने के लिये उचित लगे।यही नहीं इनके पहले व बाद वाले सत्ताधीसों का भी यही हाल है, पार्टी व झंडे का रंग चाहे जो भी रहा हो, जन सुविधाएँ उपलब्ध करवाने के मामले में ये सभी पार्टियाँ व नेता कमोबेश एक ही जैसे हैं।

ऐसे तथाकथित नेताओं का सम्मान करना या मृत्योपरांत उनको नमन करना देश की आज़ादी के 75 सालों बाद भी बुनियादी सुविधाओं से महरूम रख दी गयी जनता का अपमान करना है। ये 'नेता' ख़ुद तो जनता के पैसे पर महँगे अस्पतालों में इलाज करवाते हैं, ज़रूरत पड़ी तो इलाज करवाने विदेश भी चले जाते हैं, पर जनता के लिये आधुनिक सुविधाओं से लैस तो छोड़िए, पिछड़े हुए अस्पतालों की भी उपलब्धता बनाना ज़रूरी नहीं समझते हैं। आज आज़ादी के 75 सालों बाद भी स्थिति यह है कि शहरों में भी सरकारी अस्पतालों की संख्या बहुत कम हैं, दूर दराज के क्षेत्रों में तो प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तक उपलब्ध नहीं हैं। जो स्वास्थ्य ढाँचा एक समय पर खड़ा किया भी गया था आज वह भी जर्जर हालात में पहुँच चुका है, अधिकतर जगहों पर तो स्वास्थ्य तन्त्र ही मृत्युशैया पर पड़ा हुआ है।

उत्तराखंड के लोग कभी भी मुलायम सिंह को माफ़ नहीं कर पायेंगे। पृथक उत्तराखंड आंदोलन के दौरान शान्तिपूर्ण प्रदर्शन करने दिल्ली आ रहे आंदोलनकारियों के साथ मुजफ्फरनगर के रामपुर तिराहा पर 1-2 अक्टूबर, 1994 की रात को मुलायम सिंह की पुलिस द्वारा की गयी बर्बरता को याद कर आज भी रूह कांप जाती है। उस रात न सिर्फ कई लोगों ने पुलिस की गोलियों का शिकार होकर शहादत दी बल्कि मुलायम सिंह के पुलिसकर्मीयों ने कई आंदोलनकारी महिलाओं के साथ दुराचार किया, बलात्कार किये। इस घटना को आज 27 साल बीत चुके हैं लेकिन लोगों के जख्म अभी भी हरे हैं। मुलायम सिंह ने इस अपराध के लिये माफ़ी माँगना भी ज़रूरी नहीं समझा।

इसे हास्यास्पद ही कहा जा सकता है कि मुलायम सिंह ने अपनी पार्टी का नाम समाजवादी पार्टी रखा था लेकिन अपने व्यवहार में ये आजीवन पूँजीपतियों की सेवा में लगे रहे, यही नहीं इनकी महिला विरोधी सोच इन्हें पित्रसत्तात्मक व सामन्ती सोच से ग्रसित प्रगतिशीलता विरोधी व्यक्ति बना देती थी।

ऐसे नेताओं को 'धरती पुत्र' जैसे तमग़ों से नवाजना तो दूर, इन्हें जनता की ओर से ढेर सारी लानतें भेजी जानी चाहिये। ऐसे सारे नेताओं व इनको पैदा करने वाली पूँजीवादी व्यवस्था से इस समाज को मुक्ति मिल सके, देश में बड़े बड़े जन आंदोलनों के उभार से सच्चे जन नायक पैदा हो सकें जो जनता की फ़ौलादी ताक़त के दम पर सच्ची समाजवादी व्यवस्था क़ायम कर सकें इसी में मेहनतकश समाज की भलाई है।

Dharmendra Azad



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