शेखर जोशी जिंदगी की पिच से आउट होकर आज पवैलियन वापस लौट गए। पिछले 10 सितम्बर को ही जोशो खरोश के साथ उन्होंने अपना नब्बेवां जन्मदिन मनाया था। जब वे 89 वर्ष के हुए तो उन्होंने अपनी एक कविता में सौ वर्ष तक जीने की इच्छा जताई थी। लेकिन वे इस बात से अवगत थे कि प्रतिपक्ष का कोई फिरकी गेंदबाज उनका विकेट कभी भी चटका सकता है। इसलिए आउट होने का उन्हें कोई अफसोस न होगा। क्योंकि जिंदगी एक खेल ही तो है। यहां उनकी वह कविता प्रस्तुत है।
नवें दशक की दहलीज पर
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मुझे ग्यारह रन और बनाने हैं
सिर्फ ग्यारह रन
एक छक्का एक चौका और एक रन
या दो चौके और तीन एकल रन
मेरा शतक पूरा हो जाएगा
नहीं थका हूं मैं अभी
डटा रहूंगा मैदान में
पूरे दमखम के साथ
कितनी पारियां खेली हैं इस जीवन में
बटोरी कितनी तालियां
कितने गुलदस्ते !
और कितने धनादेश भी
मैंने खेला है अनेक शहरों में
अनेक देशों में
जिन्होंने हमारी टीम को
चौके और छक्के लगाते देखा है मैदान में
या टी.वी. के परदे पर
या सुने हैं हमारे कारनामे
अपने ट्रांजिस्टर पर
या पढ़ा है अखबारों की सुर्ख़ियों में
उन्होंने हमें गले लगाया
प्यार दिया
मैं उनका आभारी हूँ
बारहा, मैंने संभाली है कप्तानी भी
बद से बदतर पिच पर भी
दर्ज कराई है जीत
यह कमाल मेरे सहयोगियों का था
मैं तो निमित्त मात्र था
उनकी प्रतिभा की सही पहचान कर सका
यह मेरा दाय है
यह तो खेल है
प्रतिपक्ष का कोई फिरकी गेंदबाज
यदि मेरा विकेट गिरा दे
या कोई शातिर फील्डर
बाउंड्री पार करती गेंद को लपक ले
और मेरा शतक अधूरा रह जाए
तो भी मुझे अफ़सोस न होगा
मैं मुस्कुराता हुआ पैवेलियन लौट जाऊंगा
अपने अग्रज खिलाड़ियों के साथ बैठूंगा
जिन्होंने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया है
जिनसे मैंने बहुत कुछ सीखा है.
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