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Wednesday, 12 October 2022

राम मनोहर लोहिया

एक दौर था जब  साम्यवाद का विरोध खुल कर करना राजनैतिक रूप से फलदायी नही था। साम्यवाद के बढ़ते तूफान को रोकने, दिगभ्रमित करने के लिये साम्यवाद को किसी न किसी रूप में स्वीकार कर के ही किया जा सकता था। कांग्रेस के अंदर जो बाम धड़ा था, वह इसी जरूरत को पूरा कर रहा था। उसी बाम धड़ा के अत्यंत मुखर प्रतिनिधि लोहिया और जयप्रकाश नारायण थे जिसकी तारीफ गांधी तक किया करते थे। राम मनोहर लोहिया   और जयप्रकाश नारायण  के  बारे में एक बार गांधी जी ने कहा था कि –

_मैं शांति से नहीं बैठ सकता जब मैं राममनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण को जेल में देखता हूँ. मैं उनसे साहसी और स्पष्टवादी व्यक्ति को नहीं जानता हूँ._

लोहिया और जयप्रकाश नारायण में समाजवाद का खुला विरोध करने का साहस नही था इसलिये वे समाजवाद के बारे में भौंडी समझ यदा-कदा रखते थे और कम्युनिस्ट पार्टी का, कम्युनिष्टों का विरोध करते थे, उनके खिलाफ दुष्प्रचार फैलाते थे। और इस तरह इनलोगो ने लुटेरी पूंजीवादी व्यवस्था बचाने में अपना योगदान दिया। नीचे उद्धरित लोहिया का समाजवाद के बारे में विचार भी इसी चीज को दर्शाता है।

*हमें समृद्धि बढानी है, कृषि का विस्तार करना है, फैक्ट्रियों की संख्या अधिक करनी है लेकिन हमें सामूहिक सम्पत्ति बढाने के बारे में सोचना चाहिए; अगर हम निजी सम्पति के प्रति प्रेम को ख़त्म करने का प्रयास करें, तो शायद हम भारत में एक नए समाजवाद की स्थापना कर पाएं.*

मुलायम और लालू इसी धारा के सड़ांध थे/है। 

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