सोवियत यूनियन में महान समाजवादी निर्माण के दौर के उपन्यासकार *निकोलाई आस्त्रोवस्की की 'अग्नि-दीक्षा'* (how the steel was tempered) उपन्यास से ......
"यदि इन्सान के पास-पड़ोस की जिन्द़गी भयावह और उदास हो, तो वह अपने निजी सुख की शरण लेता है। उसकी खुशी सारी की सारी अपने परिवार में केन्द्रित रहती है – अर्थात् केवल व्यक्तिगत रुचियों के घेरे में रहती है। जब ऐसा हो, तो कोई भी निजी दुर्भाग्य (जैसे बीमारी, नौकरी छूट जाना इत्यादि) उसके जीवन में विषम संकट पैदा कर देता है। उस आदमी के लिए जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रहता। वह एक मोमबत्ती की तरह बुझ जाता है। उसके सामने कोई लक्ष्य नहीं जिसके लिये वह प्रयास करे, क्योंकि उसके लक्ष्य केवल निजी जिन्द़गी तक सीमित होते हैं। उसके बाहर, उसके घर की चारदीवारी के बाहर, एक क्रूर जगत बस रहा होता है। जिसमें सभी दुश्मन हैं। पूँजीवाद जान-बूझकर शत्रुता और विरोधाभाव का पोषण करता है। वह भयाकुल रहता है कि कहीं काम करने वाले लोक एकता न कर लें।"...
"यदि इन्सान के पास-पड़ोस की जिन्द़गी भयावह और उदास हो, तो वह अपने निजी सुख की शरण लेता है। उसकी खुशी सारी की सारी अपने परिवार में केन्द्रित रहती है – अर्थात् केवल व्यक्तिगत रुचियों के घेरे में रहती है। जब ऐसा हो, तो कोई भी निजी दुर्भाग्य (जैसे बीमारी, नौकरी छूट जाना इत्यादि) उसके जीवन में विषम संकट पैदा कर देता है। उस आदमी के लिए जीवन का कोई लक्ष्य नहीं रहता। वह एक मोमबत्ती की तरह बुझ जाता है। उसके सामने कोई लक्ष्य नहीं जिसके लिये वह प्रयास करे, क्योंकि उसके लक्ष्य केवल निजी जिन्द़गी तक सीमित होते हैं। उसके बाहर, उसके घर की चारदीवारी के बाहर, एक क्रूर जगत बस रहा होता है। जिसमें सभी दुश्मन हैं। पूँजीवाद जान-बूझकर शत्रुता और विरोधाभाव का पोषण करता है। वह भयाकुल रहता है कि कहीं काम करने वाले लोक एकता न कर लें।"...
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