कवि त्रिलोचन को हिन्दी साहित्य की प्रगतिशील काव्यधारा का प्रमुख हस्ताक्षर माना जाता है। वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील त्रयी के तीन स्तंभों में से एक थे। इस त्रयी के अन्य दो सतंभ नागार्जुन व शमशेर बहादुर सिंह थे।
रामचरितमानस पर महाकवि नागार्जुन के विचार
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"रामचरितमानस हमारी जनता के लिए क्या नही है? .. दकियानूसी का दस्तावेज है, नियतिवाद की नैया है.. जातिवाद की जुगाली है. सामंतशाही की शहनाई है. ब्राह्मणवाद के लिए वातानुकूलित विश्रामागार.. पौराणिकता का पूजामंडप.. सब कुछ बहुत कुछ है. रामचरितमानस की ही बदौलत उत्तर भारत की लोकचेतना सही तौर पर स्पंदित नहीं होती. रामचरितमानस की महिमा ही जनसंघ के लिए सबसे बड़ा भरोसा होती है हिंदी भाषी प्रदेशों में."
(नागार्जुन रचनावली खंड ६)
तुलसीदास / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला" / भाग १
[1]
भारत के नभ के प्रभापूर्य
शीतलाच्छाय सांस्कृतिक सूर्य
अस्तमित आज रे-तमस्तूर्य दिङ्मण्डल;
उर के आसन पर शिरस्त्राण
शासन करते हैं मुसलमान;
है ऊर्मिल जल, निश्चलत्प्राण पर शतदल।
[2]
शत-शत शब्दों का सांध्य काल
यह आकुंचित भ्रू कुटिल-भाल
छाया अंबर पर जलद-जाल ज्यों दुस्तर;
आया पहले पंजाब प्रान्त,
कोशल-बिहार तदनन्त क्रांत,
क्रमशः प्रदेश सब हुए भ्रान्त, घिर-घिरकर।
[3]
मोगल-दल बल के जलद-यान,
दर्पित-पद उन्मद पठान
बहा रहे दिग्देशज्ञान, शर-खरतर,
छाया ऊपर घन-अन्धकार--
टूटता वज्र यह दुर्निवार,
नीचे प्लावन की प्रलय-धार, ध्वनि हर-हर।
[4]
रिपु के समक्ष जो था प्रचण्ड
आतप ज्यों तम पर करोद्दण्ड;
निश्चल अब वही बुँदेलखण्ड, आभा गत,
निःशेष सुरभि, कुरबक-समान
संलग्न वृन्त पर, चिन्त्य प्राण,
बीता उत्सव ज्यों, चिन्ह म्लान छाया श्लथ।
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