*ज़िन्दगी को वह गढ़ेंगे जो शिलाएं तोड़ते है*
जिन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो शिलाएं तोड़ते हैं
जो भगीरथ नीर की निर्भय शिराएं मोड़ते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
ज़िन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो खदानें खोदते हैं,
लौह के सोये असुर को कर्म-रथ में जोतते हैं।
यज्ञ को इस श्रम-शक्ति के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
ज़िन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो प्रभंजन हांकते हैं,
शूरवीरों के चरण से रक्त-रेखा आंकते हैं।
यज्ञ को इस श्रम-शक्ति के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
ज़िन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो प्रलय को रोकते हैं,
रक्त से रंजित धरा पर शान्ति का पथ खोजते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
मैं नया इंसान हूं इस यज्ञ में सहयोग दूंगा।
ख़ूबसूरत ज़िन्दगी की नौजवानी भोग लूंगा।
- *केदारनाथ अग्रवाल*
जिन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो शिलाएं तोड़ते हैं
जो भगीरथ नीर की निर्भय शिराएं मोड़ते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
ज़िन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो खदानें खोदते हैं,
लौह के सोये असुर को कर्म-रथ में जोतते हैं।
यज्ञ को इस श्रम-शक्ति के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
ज़िन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो प्रभंजन हांकते हैं,
शूरवीरों के चरण से रक्त-रेखा आंकते हैं।
यज्ञ को इस श्रम-शक्ति के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
ज़िन्दगी को
वह गढ़ेंगे जो प्रलय को रोकते हैं,
रक्त से रंजित धरा पर शान्ति का पथ खोजते हैं।
यज्ञ को इस शक्ति-श्रम के
श्रेष्ठतम मैं मानता हूं।
मैं नया इंसान हूं इस यज्ञ में सहयोग दूंगा।
ख़ूबसूरत ज़िन्दगी की नौजवानी भोग लूंगा।
- *केदारनाथ अग्रवाल*
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