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Tuesday, 11 October 2022

हम सभी मजदूर गरीब किसान- कविता

मेरा विश्वास है
तुम्हारी तमाम कोशिशों के बाद भी
यह खबर आग की तरह फ़ैलती जाएगी
तमाम शहरी मजदूर भाइयो 
तक।

मौज़-मस्ती में डूबे लोग
सहम जायेगे
गहरी नींद में सोए
अलसाए भी जाग जाएगें
जब यह खबर आग बनकर
उतरेगी जालिम हुक्मरानों की साँसों में।

खेत –खलिहान
कर्ज में डूबे किसान 
मिहनतकसो की ललकार
उत्पीडित जनों की हुंकार
जब गूंज उठे गी संसद के गलियारों तक।

हमने देखा है इन्ही आँखों से
 मुनाफा तो मुनाफा लागत भी डूबते हुए
उम्मीदें, ख्वाहिशें, 
और ... और बहुत कुछ... सब कुछ ...
 बेटियों के रिश्ते .... बहु कि बिदाई ...
किसी की बरसी ... किसी का खतना .... 
किसी का मुंडन... किसी की मंगनी ....
हमने देखा है सबकुछ खत्म होते हुए...
हमने देखा है
विकते हुए अपनी प्यारी गाय..... 
कुर्बानी वाला बकरा ..... 
मुर्गियाँ .... अपनेे गहने ....... 
अपने बहु बेटियों की आबरू ...अपनी पगड़ी.....  
और इस लिए
 आत्महत्या करने के बजाये
घुटने के बल जीने के बजाये 
हमने फैसला किया है 
उठ खड़ा होने का
इस पूंजीवादी शोषण के खिलाफ
हम सभी मजदूर गरीब किसान।

2016
एम के आज़ाद

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