उल्टे सुल्टे ग्रन्थ रचदिए
घौंट- घौंट कर याद ।
ऊँचे आसन पर जा बैठे
फैला कर मनुवाद ।
इतिहास मिटा करके पुरखों का किया हमें बरवाद।
अजी!हम कहाँ हुए आजाद?
सदियौं से हक दबा रहे हैं ,
दीन-दलित को सता रहे हैं ।
मँदिर में बैठे मुस्टण्डे ,
ठूँस रहे धन देखो पण्डे ।
रबड़ी और मलाई खाते ,
हाय!!निठल्ले मौज मनाते ।
आरच्छण ह्रदय में कसके ,
बड़े अनौखे इनके फटके ।
पौंगा -पँथी अरे!प्रपंची
तनिक न आती लाज ।अजी...
देवालय तहखाने वाला ,
अकूत धन पर लगा है ताला ।
मणिधारी वहाँ जमे हुए हैं ,
तिलक तृपुण्डी रंगे हुए हैं ।
कहीं पै शंकराचार्य अड़े हैं ,
कहीं पै नँग-धड़ँग पड़े हैं ।
काली करतूतैं करते हैं ,
वापू और योगी बनते हैं ।
पौधा वृच्छ कहाँ?बनपाए ,
मिले न पानी खाद। अजी.... कोई दबँग बना ऐंठा है ,
सत्ता हथिया कर बैठा है ।
कोई धन धरती का स्वामी ,
करवाते बेगार गुलामी ।
मजदूर किसान का होतादोहन,
दीन-दलित नारी का शोषण ।
मलिनबस्तियां झुग्गी ,
झौंपड़-पट्टी कहाँ?आबाद ।
अजी...
महिषासुर हिरणच्छ कोछलसे मलसूकर छुपकर छलबल से
शेर की खाल ओढ़ कर मारा. वीर हिरण्यकश्यप सँहारा ।
किसी का राच्छस नाम रखदिया,
किसी के सर पर सींग जड़
दिया ।
धोखे से राजा बन बैठे ।
पहन-पहन कर ताज ।अजी...
सदियौं से हालत है ढीली ,
उनकी तो रातें. रँगीली ।
लाला लल्लूलाल बन गया ,
वह तो फूट में लूट कर गया ।
अब तो बहुजन विगुल बजादो जन-जन में चेतना जगादो ।
शाँन्ति -क्रान्ति की धूम मचादो ।
खुशहाली जब "विकल "
हो निर्भय सँविधान का राज।
अजी हम तब हौंगे आजाद।
अजी हम तब हौंगे आजाद।।
कवि विकल-बेअकल
(भन्ते शीलसागर)
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