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Wednesday, 1 February 2023

11 बेहतरीन नज्मों के साथ

इस महीने की शुरुवात 11 बेहतरीन नज्मों के साथ 

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गणतंत्र दिवस, गणतंत्र दिवस, गणतंत्र दिवस, 
तंत्र है जितना खुंखार, है गण उतना ही विवश.

हैं ढो रहे तंत्र का भार गण ही अपने कंधों पर, 
गण का जीवन तंत्र ने, कर दिया तहस-नहस. 

रोज-रोज मर रहा गण, तिल-तिलकर कब से, 
सुली पर चढ़ाया जा रहा, न जाने किस वजह. 

सुनता रहा है नारा, समाजवाद, लोकतंत्र का, 
पर भोगता रहा जीवन में, गरीबी और दहश. 

चूस रहा तंत्र जोंक बन, खून प्रतिदिन गण का, 
काट दिया जुबां भी, कर सकते न कोई बहस. 

यूं बीत रही है जिंदगी, केंचुए की तरह रेंगती, 
है कैसा यह गणतंत्र, न समझा, इसका सबब. 

हम मेहनत करने वाले हैं, मेहनत करते रहते हैं, 
खा गए सब कुर्सी वाले, हमें नहीं  मिला सुयश.

लूटेरों का है गणतंत्र, लूटेरे ही जश्न मनाते हैं, 
गणतंत्र हमारा खा गई, इन लूटेरों की हवश. 

Ram Ayodhya Singh 

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गरीब दुकानदार का ग्राहक गरीब होता है
कभी उतना गरीब, जितना उसका ग्राहक होता है 
कभी उससे भी गरीब, जितना उसका ग्राहक होता है
कभी ग्राहक कुछ अमीर
कभी दुकानदार कुछ अमीर होता है
कभी पलड़ा कुछ इधर
कभी पलड़ा कुछ उधर होता है

गरीब आदमी का दुकानदार
गरीब से पहले जागता है
क्योंकि वह गरीब आदमी का दुकानदार है 
गरीब के बाद सोता है
क्योंकि वह गरीब आदमी का दुकानदार है

कभी वह आशा लेकर घर से निकलता है
निराशा लेकर घर लौटता है
कभी इसका उल्टा होता है
कभी न वह कुछ लाता है,न ले जाता है

गरीब आदमी के दुकानदार के पास फुरसत होती है
पर वह बार -बार पैसे नहीं गिनता
वह जानता है या तो कल से दस ज्यादा होंगे
या बीस कम

गरीब आदमी का ग्राहक हो या दुकानदार
उधार को लेकर दुविधा में रहता है
कभी ग्राहक पहल करता है
कभी ग्राहक मना करता है
दुकानदार उधार दे देता है

गरीब ग्राहक को प्यारा है अपना दुकानदार
वह सोचता है एक दिन ऐसा आएगा कि
वह इसकी इतनी मदद कर पाएगा
कि इसके सारे दुख- दर्द दूर हो जाएंगे

कभी दुकानदार सोचता है कि जब भी बड़ी दुकान खोलूंगा
इसे हर दिन मुफ्त खिलाऊंगा

सोचना जारी रहता है
कभी दुकानदार सूरज की तरह डूब जाता है 
सुबह हो जाती है फिर भी लौटकर नहीं आता 
कभी ग्राहक चांद की तरह छुप जाता है
पूर्णिमा आ जाती है
तो भी नहीं आता।

Vishnu Nagar 

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माँ की सिफारिश असर लायी,
हरि की बिटिया के लिए नयी किताबे आयीं।

नयी जिम्मेदारियाँ आने लगी हैं
अब बिटिया रानी भी स्कूल जाने लगी हैं।

सबको लगता है वो पढ़ रही है, 
लेकिन वो समझती है कि वो तो उड़ रही है ।

गुड़िया काम में भी हाथ बंटा रही है,
अब हंसिया ले कर खेत तक जा रही है।

ये क्या है? वो कैसे करूँ? ये क्यूँ है? जाने कितने सवाल हैं,
बाउजी की गुड़िया नहीं कोई बवाल है।

बात बात पर अड़ने लगी है, 
मजदूरी की खातिर जमीनदार साहब से भी भिड़ने लगी है।

ये लड़की तो बिगड़ने लगी है,
जरा सी छूट क्या दी सिर चढ़ने लगी है।

कहती है अभी और पढ़ूंगी,
तुम सबके जीवन को बदलूंगी।

इतना सुनते ही भाई बोला झल्लाकर,
बड़ी आयी, चल खाना तैयार कर। 

यूँही दिन गुजरेंगे कुछ कुछ बदलते हुए, 
एक दिन सब कुछ बदलेंगे। 

सोचती हुई गुड़िया बढ़ रही थी,
और माँ दहेज का समान जोड़ रही थी।

पढ़ाई-लिखाई बन्द करा दी गयी थी, 
अब गुड़िया किशन संग ब्याह दी गयी थी।

कमी नहीं है किसी चीज़ की किशन के खानदान में,
लेकिन नजरे टिंकीं है, हरि के पुराने मकान में।

जो खटकती थी कभी मालिकों की आँखों में लहू बनकर,
चूल्हा-चौका सम्भाल रही है किसी की बहू बनकर।

किताबे घोल कर पीने वाली गुड़िया, 
बन गयी बातें सुन कर जीने वाली गुड़िया।

गाली, मार खून पीकर सह लेती है,
अब सारे दुख दर्द खुद से ही कह लेती है।

गुज़ार देती थी हर एक रात आँसुओं में नहा कर,
इच्छायें, ख्वाहिशें, खुशियाँ तो चली थी मायके से ही बहा कर।

माँ, बाप, भाई सब खुश हैं कि नया जीवन गढ़ रही है,
लेकिन उसे लगता है कि अब वो सड़ रही है।

समझ नहीं पा रही है कि वो समय काट रही है या समय उसे काट रहा है,
हर कोई बात बात पर उसे बिगड़ रहा है, डांट रहा है।

ससुराल बढ़ा रहा है अपने अभिमान को,
गुड़िया समेट चुकी है आपने भीतर एक और जान को।

आज फिर इस कामचोर की रोटी जर गयी 
अरी ओ कलमूही कहाँ मर गयी।

सास ने बुलाया गरियाते हुए चिल्लाकर,
आयी माँ जी कहते हुए प्रकट हुई दौड़कर।

इतने में किशन ने मारा धर दी कमर तोड़कर,
अजन्मा बच्चा भी चला गया बिचारी का साथ छोड़कर।

बुरा हो गया हाल रो-रो कर,
साड़ी साफ़ करती रही खून के धब्बे धो-धो कर।

रोशनी का सूरज तो उसके लिए कब का ढल गया था, 
आज बचा-खुचा वज़ूद भी उसका जल गया था।

सब कुछ छोड़ चल दी एक दिन मरने को, 
बहुत कुछ रह गया था तुमसे कहने को।

उसका खत तुमको सुनाती हूँ,
उसकी मौत का जिम्मेदार मैं खुद को भी मानती हूँ। 

हाथ में एक काग़ज़ लिए छुटकी पढ़ रही थी,
गुड़िया को तलाशते हुए उसकी भतीजी खड़ी थी। 

आंख में आंसू थे, आवाज़ फंस रही थी,
लग रहा था कि बाजू में उसकी बुआ हंस रही थी।

बड़ी हिम्मत कर के आगे बोली,
गुड़िया के जज्बातों की पोटली खोली। 

"सवाल बहुत किए मैंने, तुम जवाब बनना,
मैं हिसाब बनती रही, तुम इन्कलाब बनना।"

अंजलि प्रताप 

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खबर  माल  बन  रही  इश्तहार  के पीछे
बखूबी दुकान चल रही अखबार के पीछे

पहले  हुई  पीली  फिर काली  हुई  खबर
अब रह गई  है  सुर्खियां सरकार के पीछे

हालत बिगड़ती ही गई जितनी दवा खाई
धंधा चल रहा इलाज का  बीमार के पीछे

वो  शख्स सियासी है भरी जेब है जिसकी
नौ मूर्ख  पड़े है  तन्हा  समझदार  के पीछे

फिदा हुए जो लोग उसकी शोख अदा पर
बन के  फ़कीर  खड़े  है  गुनहगार के पीछे

यू ही तो भगत सिंह याद आते नहीं "सरल"
कोई सोच महकती है उस किरदार के पीछे
                                
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव, यूपी
9695164945

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स्त्री जब प्रेम करती है तो
पृथ्वी अपनी धुरी पर थोड़ा तेज़ घूमने लगती है
स्त्री जब प्रेम करती है तो
यह ब्रह्मांड थोड़ा फैल जाता है
स्त्री जब प्रेम करती है तो
चीटियाँ अपने से दस गुनी बड़ी शक्कर की डली ठेलकर
बिल तक ले जाने में कामयाब हो जाती है

लेकिन जल्द ही ब्रह्मांड फिर सिकुड़ने लगता है
पृथ्वी अपनी धुरी पर सुस्त होने लगती है
चीटियों का कोई जोर अब डली पर नहीं लगता

स्त्री का प्रेम
संबंधों के अंधेरे कुएं में छूट गयी बाल्टी सा डूबने लगता है
स्त्री के हाथ से फिसलने लगता है
उसका इतिहास और उसका भविष्य

यह प्रक्रिया दोहराई जाती है
अनगिनत बार...
फिर भी स्त्री प्रेम करना नहीं छोड़ती
उसका प्रेम दफ़्न होता जाता है
अंधेरे कुएं में
प्रेम के ऊपर प्रेम की परत दर परत इकट्ठा होने लगती है
जैसे इकट्ठा होती है पेड़ से गिरी पत्तियां एक के ऊपर एक सदियों तक...
और बन जाती है ईंधन एक लंबे समय बाद..

ठीक उसी तरह परत दर परत इकट्ठा स्त्री का प्रेम 
एक लंबे अंधेरे समय बाद
बन जाता है बगावत

इसलिए, स्त्री अब महज प्रेम ही नहीं करती
प्रेम को ज़िंदा रखने की ज़िद भी करती है,
इसलिए, स्त्री अब महज प्रेम ही नहीं करती
प्रेम के लिए
दुनिया को सुन्दर बनाने की जद्दोजहद भी करती है....

Manish Azad 

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बेगुनाहों से बेगुनाही का हिसाब मांग रहा है, 
पढ़ने के लिए अनपढ़ों से किताब मांग रहा है.

हक शैतानी का अपना, पूरा कर चुका है वह, 
अब जमाने से संत का खिताब मांग रहा है.

जिसने मुंह भी न खोला अपना बोलने के लिए, 
उसीसे हंगामा करने का जवाब मांग रहा है.

पाप करने में न आई जिन्हें शर्म भी कभी, 
चेहरा छुपाने को वही, नकाब  मांग रहा है.

एतराज है जिन्हें बेटियों की हंसी और खुशी से, 
नहलाने के लिए अब वही तेजाब मांग रहा है.

कहता रहा जो दिन भर, शराब पीना हराम है, 
रात में जाम छलकाने को, शराब मांग रहा है.

खा गया सारी मछलियाँ, जो भी थीं तालाब के, 
मिटी नहीं भूख तो, दूसरा तालाब मांग रहा है.

राम अयोध्या सिंह

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शोषण की निर्बाध व्यवस्था करनी आज ध्वस्त है !
                                     
निजाम उधर मस्त है
अवाम इधर  पस्त है, 
विकास बेटे को पेचिश
उल्टी और दस्त है। 

सम्मान में नहीं खड़ी
मंचों के नीचे भीड़, 
युवा बेरोजगार-बेबस
लगा रहा गश्त है।

मिलेगा इस बार भी
आश्वासन इक नया, 
सरकार तो बस यही
देने में अभ्यस्त है। 

अब के नेता का कद 
पजामे सा हो गया, 
जो कुर्ते का नाप बस
देने में व्यस्त है। 

छिपकली की पूँछ सा
बढ़ न आए अंगूठा, 
इस डर से अबका द्रोण
मांगा पूरा हस्त है। 

तोड़ूँगा पूरी बुनियाद
महलों का गुरुर भी, 
शोषण की निर्बाध व्यवस्था
करनी आज ध्वस्त है। 

बच्चा लाल 'उन्मेष'

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◆ अचानक 

स्त्रियाँ 'अचानक' के लिए अभ्यस्त होती हैं 
अचानक ही हो जाती हैं बड़ी 
अचानक एक दिन छूट जाता है मनपसंद फ्रॉक 
अचानक घूरने लगती है निगाहें 
उनकी छाती और नितंब 
और न जाने क्या क्या 
चलना-बैठना-खड़े होना 
अचानक युद्ध में बदल जाता है 

अचानक उन्हें पता चलता है 
पड़ोस वाले भइया के भीतर एक जानवर रहता है 
और दूर के दादा जी के अंदर भी 
और किसके किसके अंदर जानवर देखा उन्होंने 
कभी किसी को नहीं बता पाईं वे

अचानक उनका भाई बदल जाता है जासूस में 
पिता सरकार में 
माँ हमेशा से निरीह ही रहती है 
अचानक ग़ायब भले हो जाती है 
फ़ैसलों से-बहसों से 

अचानक आ जाती है माहवारी 
अचानक हो जाती हैं अछूत
वह भी उन दिनों जब वे एक देह रच सकती हैं 
जैसे पृथ्वी बना देती है 
एक बीज को बरगद 

अचानक कोई पुरुष उनसे कहता है:
तुम दुनिया की सबसे सुंदर स्त्री हो 
और अचानक चला जाता है वही पुरुष 
जैसे चला गया हो बादल धरती को छल कर 

अचानक बदल जाती है स्त्रियों की दुनिया 
स्त्रियाँ हर तरह के अचानक के लिए हमेशा तैयार रहती हैं 
और आपको क लगता है 
सिर्फ़ मृत्यु ही आती है अचानक 

कभी किसी स्त्री से नहीं पूछा
क्या क्या आता है अचानक ?

अनुराग अनंत

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मुल्क कबाड़ा बना दिया  
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उल्टा - सीधा  गजब  पहाड़ा  पढ़ा  दिया 
तीन का तेरह किया  , नगाड़ा  बजा  दिया  ।

देशभक्ति का नाटक खेलने वालो ने
देश  को  पूरा  खुला अखाड़ा बना दिया ।

तरह-तरह के तेला - बेला का खेला
असली मुद्दा गोल - गपाड़ा बना दिया ।

गले  में  जनता  के  जनार्दन  का  पट्टा 
कस  के ,  लोगों  को  बेचारा  बना दिया ।

भीतर सब फोंका ,ऊपर-ऊपर बस शोर 
बिठाके  भट्ठा , मुल्क  कबाड़ा  बना  दिया  ।

Aditya Kamal 

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जलाकर शहर  खामोश  घर आके बैठ गए
सपने कुर्सी के आंखो  में  सजा के बैठ गए 

वो  कहते थे शम्स खुद को  नए जमाने का 
 चिंगारी से  डर के  दामन  बचा के बैठ गए

बड़े  ही दरियादिल है कौम भी मुतासिर  है
न जाने कैसे कैसे लिबास सिला के बैठ गए

मोहब्बत चैनो अमन सियासत की तौहीन है
वो  नफ़रत  का इक दरिया बहा के बैठ गए

सब्ज हटाकर  शहर  जाफरानी  बनाना था
और जोशीमठ में बस्तियां हिला के बैठ गए

दिल ऐसा भरा नदी  पहाड़ जंगल से"सरल" 
वो मुल्क में  नखलिस्तान  सजा के  बैठ गए
                                 
सरल कुमार वर्मा
उन्नाव,यूपी 
9695164945
 
शब्दार्थ :                                 
शम्स : सूरज
दरियादिल : खूब खर्च करने वाला
मुतासिर : प्रभावित 
तौहीन :  अपमान
सब्ज : हरा रंग
जाफरानी : केसरिया रंग
नखलिस्तान : रेगिस्तान में जमीन का हरा भरा टुकड़ा जिसमे खजूर के पेड़ लगे हो

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राजा भी नंगा है, जनता बेहाल
                 
बातों ही बातों में बीत गए साल,
राजा भी नंगा है, जनता बेहाल।
 
सभी तरफ झूठ का बवण्डर है
जाति, धर्म, जड़ता आडम्बर है
बचपन से राष्ट्रगान गा-गाकर
लोकतंत्र सभी तरफ खण्डहर है।

आशा ही आशा में बीत गए साल,
राजा भी नंगा है, जनता बेहाल।

सभी तरफ फैलती निराशा है
जीवन बस घूमती हताशा है
शोषण, उत्पीड़न से लड़ लड़कर
पीढ़ियां भी बन गई तमाशा है।

सपनों ही सपनों में बीत गए साल
राजा भी नंगा है, जनता बेहाल

सभी तरफ भारत में हलचल है
दुराचरण, राजनीति, दलदल है
देख देख लूटते खजाने को
वोट, नोट, ताकत का छल-बल है।

वादों-प्रतिवादों में बीत गए साल
राजा भी नंगा है, जनता बेहाल।

सभी तरफ बाड़़, कुएं, खाई हैं
सत्य के प्रयोग की मनाही है
गांधी के अनुयायी बन बनकर
नफरत की बस्तियां बनाई हैं।

घातों-प्रतिघातों में बीत गए साल
राजा भी नंगा है, जनता बेहाल।

सभी तरफ मांग पत्र घूम रहे
वैभव, दुष्यंत, सभी झूम रहे
परिवर्तन बार बार ला-लाकर
जनमत को जागरूक बनाना है।

जीत-हार देख देख बीत गए साल
राजा भी नंगा है, जनता बेहाल।

वेदव्यास

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अजय असुर के वाल से साभार

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