रु-ब-रु
आप हैं कॉमरेड सुभाष. पड़ौस की मज़दूर बस्ती में रहते हैं. 12 वीं तक पढ़े हैं. पढ़ने में अच्छे थे लेकिन ज़िन्दगी की ज़द्दोज़हद ने आगे पढ़ने की इज़ाज़त नहीं दी. कॉमरेड सुभाष की दिनचर्या सर्दियों में 6 बजे और गर्मियों में 5 बजे शुरू होती है.
सबसे पहले, वे पड़ौस की एक हाउसिंग सोसायटी में गाड़ियों की सफ़ाई करते हैं. उसके बाद घर के लिए पानी की व्यवस्था करते हैं. पहले वे, उसी सोसिएटी से पानी ले लेते थे, लेकिन फिर उस टटपूंजिया क्लास सोसायटी की टटपूंजिया प्रबंधन कमेटी ने हुक्म सुनाया- सोसायटी का पानी मज़दूरों के निजी इस्तेमाल के लिए नहीं है. एक पानी व्यवसायी, उस झुग्गी में सुबह टैंकर से पानी बेचता है. इसलिए, अब उन्हें पानी की लाइन में लगकर पानी लेना होता है. उसके बाद 9 बजे वे खाना खाते हैं जिसे ब्रेकफास्ट-सह-लंच समझा जाए. उसके बाद वे दो कोठियों में जाकर कपड़े धोते हैं. लगभग 1 बजे, वे सड़क किनारे कपड़े स्त्री करने के ठेले पर, अपने बूढ़े पिताजी के साथ कपड़े स्त्री कर, घर-घर जाकर देकर आते हैं. उनका दिन 8 से 9 बजे के बीच समाप्त होता है.
कॉमरेड सुभाष ने अपने दिन के काम का पुनर्प्रबंधन किया है. वृहस्पतिवार को गाड़ियाँ साफ़ करने की छुट्टी रहती है. उन्होंने तय किया है कि उस दिन वे 3 घंटे, अपने संगठन, 'क्रांतिकारी मज़दूर मोर्चा' को देंगे. उसके अलावा भी, किसी एक दिन 2 घंटे संगठन के काम को देंगे, लेकिन दिन वे खुद तय करेंगे. साथ ही, किसी भी सामूहिक सांगठनिक मोर्चे-प्रदर्शन में तो वे शामिल रहते ही हैं, भले काम का नुकसान हो. पिछले वृहस्पतिवार को अनखीर लेबर चौक जाते वक़्त उन्होंने अपनी एक दास्ताँ मुझसे शेयर की थी जो मेरे ज़हन में गुद गई. "12 वीं कक्षा में साथ पढ़ने वाले हम 5 दोस्त हैं. आज भी हम मिलते-रहते हैं. वे मुझे बुलाते हैं. पिछले साल हम मिलकर मनाली घूमने गए थे. सबने पांच-पांच हज़ार रुपये जमा किए थे लेकिन उन्होंने मुझसे कहा, तू तीन हज़ार ही दे देना. मैं उसकी वज़ह समझ गया. दो हज़ार रुपये तो बच गए लेकिन मुझे अच्छा नहीं लगा. इसके बाद भी ऐसा ही एक प्रोग्राम बना लेकिन मैंने मना कर दिया." कॉमरेड सुभाष में मुझे गोर्की के पावेल की छवि नज़र आती है.
साथियो, समाज की विकास यात्रा में, एक ऐतिहासिक घड़ी आती है, जब धीरे धीरे, थोड़ा-थोड़ा, अपनी गति से बदलता समाज, छलांग लेकर एक नए, उन्नत समाज में बदल जाता है. उस तारीखी वक़्त में अत्याधिक ऊर्जा की दरक़ार होती है. हम सौभाग्यशाली हैं कि हम उस घड़ी में जी रहे हैं.
अपने संगठन के लिए वक़्त निकालिए.
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