क्या वजह है कि चर्च उत्पीड़ित लोगों को हमेशा विनम्र बने रहने, क्षमा करने और अहिंसा के मार्ग पर चलने का उपदेश देता है? आखिर क्यों उदारवादी लोग भलाई, विनम्रता, दयालुता, दब्बूपन आदि की शिक्षा समाज के दबे -कुचले वर्गों को ही देते हैं? क्यूं ऐसा नहीं होता कि चर्च उन वर्गों और नस्लों के लोगों पर ध्यान केंद्रित कर उनका ह्रदय परिवर्तन करने की कोशिश करता, जिन्होंने लोगों को अपनी बर्बरता का शिकार बनाया है, लूटा है और हर तरह से प्रताड़ित किया है?
न्गुगी वा थ्योंगो
( भाषा, संस्कृति और राष्ट्रीय अस्मिता का एक अंश)
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