दलित कवियित्री सुकीरथरणी ने अडाणी के विरोध में ठुकराया सम्मान
'हालांकि नास्तिक होने की वजह से मैं देवी के नाम पर मिलने वाले सम्मान को लेने से हिचक भी रही थी। लेकिन लोगों ने मुझे बताया कि यह महिला शक्ति का सम्मान है। इसके बाद मैंने 28 दिसंबर, 2022 को उन्हें सम्मान लेने की स्वीकृति दे दी थी।'
किसी ऐसी संस्था से या किसी ऐसे समारोह में अवार्ड लेने में मुझे कोई ख़ुशी नहीं होगी जिसे अडानी समूह द्वारा वित्तीय मदद मिल रही हो, क्योंकि ऐसा करना मेरी राजनीति और विचारधारा के ख़िलाफ़ होगा। ये बातें बीते दिनों तमिल दलित कवियित्री सुकीरथरणी ने अपने बयान में कहा जब उन्हें 'न्यू इंडियन एक्सप्रेस' द्वारा देवी पुरस्कार देने की घोषणा की गई और उन्हें जानकारी मिली कि प्रायोजकों में अडाणी समूह का नाम भी शामिल है।
किए। तीन फ़रवरी को मैंने वीडियो देखा तो उस पर अडानी समूह का लोगो था।"
अपने साहसिक लेखन के लिए विख्यात सुकीरथरणी का जन्म एक गरीब दलित परिवार में 1973 में हुआ। उनके पिता एक फैक्ट्री में दिहाड़ी मजदूर थे। वह तमिलनाडु के रानीपेट ज़िले के लालापेट में सरकारी स्कूल में शिक्षिका हैं। वह तमिल भाषा पढ़ाती हैं। उनके छह कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। उनकी अनेक कविताओं का अंग्रेज़ी, मलयालम, कन्नड़, हिंदी और जर्मन भाषाओं में अनुवाद हो चुका है। यहां तक कि तमिलनाडु के स्कूली पाठ्यक्रम में भी उनकी कवितायें पढ़ाई जाती हैं।
बताते चलें कि 2021 में दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ाई जाने वाले उनके और दलित लेखिका बामा के लेखन को हटा दिया गया। इस फैसले की व्यापक निंदा की गई थी। स्वयं तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन ने इसकी निंदा की थी।
सुकीरथरणी के समूचे लेखन में दलितों और वंचितों के पक्ष में आवाज़ उठाई गई है। दलितों ख़ास तौर पर दलित औरतों के लिए सरोकार उनके लेखन में बहुतायत से मिलता है। इस अवार्ड से पहले उनको पुदुमैपीतन अवार्ड, द वीमेन अचीवर्स अवार्ड, द आवी अवार्ड, द वाइब्रेंट वोइस ऑफ़ सबाल्टर्न अवार्ड मिल चुके हैं।
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