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Monday, 13 February 2023

एदुआर्दो गालिआनो

सपनों के बारे में एदुआर्दो गालिआनो की पाँच लघु कथाएँ
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हेलेना के सपने

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उस रात उन सपनों की एक कतार लग गयी जो चाहते थे कि हेलेना उन्‍हें देखे, लेकिन हेलेना के लिए उन सबको देखने की लिए चुन पाना मुमकिन नहीं था। उनमें से एक सपने ने जिसे हेलेना नहीं पहचानती थी, आग्रह किया:
''मुझे देखने के लिए चुनो -- मैं एकदम तुम्‍हारे लायक हूँ। मुझे देखो -- तुम मुझे ज़रूर पसंद करोगी।''
कुछ नये सपने जो हेलना को पहले कभी नहीं आये थे, कतार में लगे हुए थे, लेकिन उसने उन मादक सपनों को पहचाना जो  बार-बार लौटकर आते रहे थे, वह उदास सपना और दूसरे अजीब या धुँधले सपने, जो ऊँची उड़ान की रातों से उसके पुराने दोस्‍त थे।
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सपनों के देश की यात्रा
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हेलेना एक घोड़ागाड़ी में उस देश की यात्रा कर रही थी जहाँ सपने देखे जाते थे। उसके बाजू में कोचवान की सीट पर उसकी नन्‍हीं कुतिया पेपा लुम्‍पेन बैठी थी। पेपा अपने पंजों तले एक मुर्गी लेकर चली थी जो उसके सपने में काम करने वाली थी। हेलेना अपने साथ एक बहुत बड़ी संदूकची ले चल रही थी जो मुखौटों और रंग-बिरंगे चिथड़ों से भरी हुई थी।
लोगों से भरी हुई सड़क धीरे-धीरे खिसक रही थी। वे सभी सपनों के देश की राह पर थे और अपने सपनों का पूर्वाभ्‍यास करते हुए इतनी लांछन भरी बातें कर रहे थे और इतना गुलगपाड़ा कर रहे थे कि पेपा सिर्फ झींख रही थी क्‍योंकि वह ठीक से ध्‍यान केन्द्रित नहीं कर पा रही थी।

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सपनों का देश

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उस देश में एक बहुत बड़ा शिविर लगा हुआ था।
वहाँ जादुगरों की ऊँची टोपियों में उगे हुए सलाद और चमकदार मिर्चियाँ थीं और चारो ओर लोग सपनों की लेन-देन कर रहे थे। एक आदमी प्‍यार के सपने के बदले यात्रा का सपना बेच रहा था और दूसरा एक अच्‍छी रुलाई के सपने के बदले हँसाने वाले सपने की पेशकश कर रहा था।
एक आदमी अपने सपनों के टुकड़ों की खोज में इधर-उधर भटक रहा था जो किसी के रास्‍ते में आ गया था और उसने उसे तोड़ दिया था। वह आदमी टुकड़ों को इकट्ठा कर रहा था और बहुरंगी झण्‍डा बनाने के लिए उन्‍हें एक साथ चिपका रहा था।
सपनों का भिश्‍ती लड़का उनके लिए पानी ला रहा था जिन्‍हें सोने के साथ ही प्‍यास लग जाती थी। वह अपनी पीठ पर लदे मिट्टी के मशक में पानी ढो रहा था और उसे लम्‍बे गिलासों में ढाल रहा था।
मीनार में एक औरत थी जो सफेद अंगरखा पहने हुए थी और अपने लटों में कंघी कर रही थी जो उसके पैरों तक पहुँचते थे। कंघी सपनों को चारो ओर बिखेर रही थी, जो अपने सभी पात्रों से भरे हुए थे: उस औरत के बालों से सपने हवा में उड़ रहे थे।

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भुला दिये गये सपने

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हेलेना ने सपना देखा कि उसने अपने भुला दिये गये सपनों को एक टापु पर छोड़ दिया है।
क्‍लारिबेल अलेग्रिया ने हेलेना के सपनों को एक साथ इकट्ठा किया, उन्‍हें एक रिबन से बाँधा और हिफाज़त से छिपाकर रख दिया। लेकिन उसके बच्‍चों ने वह जगह खोज ली। वे हेलेना के सपनों को आजमाना चाहते थे। क्‍लारिबेल ने उनसे सख्‍़ती से कहा:
''उन्‍हें छूना भी नहीं।''
फिर उसने हेलेना को फोन लगाया और उससे पूछा:
''तुम्‍हारे सपनों के साथ मुझे क्‍या करना चाहिए?''

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सपने छुट्टी पर

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सपने छुट्टी पर जा  रहे थे। हेलेना रेलवे स्‍टेशन तक उनके साथ गयी। प्‍लेटफॉर्म से उसने उन्‍हें विदाई दी, रुमाल हिलाते हुए।


"हर व्यक्ति अपनी ख़ुद की रोशनी से चमकता है। कोई भी दो लपटें एकसमान नहीं होतीं। छोटी लपटें हैं और बड़ी लपटें हैं, हर रंग की लपटें हैं। कुछ लोगों की लपटें इतनी स्थिर हैं कि वे हवा में फड़फड़ाती तक नहीं, जबकि कुछ की उग्र लपटें हैं जो हवा को स्फुलिंगों से भर देती हैं। कुछ गावदी लपटें हैं जो न जलती हैं न रोशनी देती हैं, लेकिन कुछ दूसरी इतनी प्रचण्डता के साथ जिन्दगी से धधकती रहती हैं कि कोई बिना पलक झपकाये उनकी ओर देख नहीं सकता और अगर कोई उनके पास जाता है तो आग में चमकने लगता है।"

-एदुआर्दो गालिआनो

हकीकत आपसे अच्छी चीजों को याद रखने और उन्हें लिखने के लिए कहती है। अगर लिखने के पेशे का कोई औचित्य है तो वह यह है कि हकीकत के चेहरे से मुखौटा हटाने में मदद की जाये और इसे उजागर किया जाये कि दुनिया कैसी है, कैसी थी और अगर हम इसे बदल देते हैं तो कैसी होगी..

-एदुआर्दो गालिआनो

रोज़-रोज़ याद रखने और याद दिलाने वाली बात....

"जिस धरती पर हर अगले मिनट एक बच्चा भूख या बीमारी से मरता हो, वहाँ पर शासक वर्ग की दृष्टि से चीज़ों को समझने की आदत डाली जाती है। लोगों को इस दशा को एक स्वाभाविक दशा समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। लोग व्यवस्था को देशभक्ति से जोड़ लेते हैं और इस तरह से व्यवस्था का विरोधी देशद्रोही अथवा विदेशी एजेण्ट बन जाता है। जंगल के क़ानूनों को पवित्र रूप दे दिया जाता है ताकि पराजित लोग अपनी हालत को अपनी नियति समझ बैठें।"

- एदुआर्दो गालिआनो


शब्‍दों का घर

हेलेना विलाग्रा ने सपना देखा कि कवि शब्‍दों के घर में प्रवेश कर रहे हैं। शब्‍द काँच की पुरानी बोतलों में रखे हुए थे, वे कवियों का इन्‍तजार कर रहे थे, और अपने को पेश कर रहे थे और चुने जाने की चाहत से पागल हो रहे थे: वे कवियों से याचना कर रहे थे कि वे उनपर निगाह डालें, उन्‍हें सूँघें, उन्‍हें छूएँ, उन्‍हें चाटें। कवि बोतलों को खोलते थे, अपनी ऊँगलियों के पोरों से शब्‍दों को आजमाते थे, और अपने होंठ चुभकारते थे या नाक सिकोड़ते थे। कवि उन शब्‍दों की तलाश में थे जिन्‍हें वे जानते नहीं थे और उन शब्‍दों की भी, जिन्‍हें वे जानते थे और खो चुके थे।
शब्‍दों के घर में रंगों की एक टेबुल भी थी। वे अपने को ढेरों फौव्‍वारों के रूप में पेश करते थे और हर कवि वह रंग ले लेता था जो वह चाहता था: नींबुई पीला या सूरज की रोशनी जैसा पीला, सागर जैसा नीला या धुँए जैसा, किरमिजी लाल, खून जैसा लाल या वाइन जैसा लाल...

-- एदुआर्दो गालिआनो


हकीकत आपसे अच्छी चीजों को याद रखने और उन्हें लिखने के लिए कहती है। अगर लिखने के पेशे का कोई औचित्य है तो वह यह है कि हकीकत के चेहरे से मुखौटा हटाने में मदद की जाये और इसे उजागर किया जाये कि दुनिया कैसी है, कैसी थी और अगर हम इसे बदल देते हैं तो कैसी होगी..

-एदुआर्दो गालिआनो

सभ्यता की शिनाख्त

जंगल में कहीं, किसी ने कहा ' सभ्य लोग कितने अजीब है। उन सब के पास घड़ियां है लेकिन किसी के पास वक्त नहीं है।'
                                              - एदुआर्दो गालिआनो

लातिन अमेरिका के लेखक एदुआर्दो गालिआनो दुनिया की मेहनतकश और संघर्षरत जनता के हक़ में उठी एक सशक्त आवाज़ के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाते थे। उनकी किताब 'ओपन वेन्स ऑफ़ लैटिन अमेरिका' (लातिन अमेरिका की खुली नसें) साम्राज्यवादी लूट और तबाही का पर्दाफ़ाश करने वाली एक अद्भुत रचना है। पिछली 13 अप्रैल को यह आवाज़ हमेशा के लिए शान्त हो गयी। बिगुल के पाठकों के लिए हम यहाँ उनके लेखन के दो छोटे अंश प्रस्तुत कर रहे हैं। जल्द ही हम उनकी कुछ और ताक़तवर रचनाएँ यहाँ प्रस्तुत करेंगे। 

अगर लातिन अमरीका की हालत यह है कि सिर्फ कुछ लोग ही सुख-सुविधाओं के पहाड़ पर बैठे हैं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बाकी सारे लोग नीचे रहकर उन्हें देखें। और किसी दिन ऊपर पहुंच जाने का सपना देखते रहें। 

यहां गरीबों को अमीरी, गुलामों को आजादी, हारे हुओं को जीतने और जिनकी हड्डियां तक चूस ली गई हैं उन्हें दुनिया पर राज करने के सपने बेचे जाते हैं। 

गैर-बराबरी पैदा करने वाली व्यवस्था को बनाए रखने की जरूरत का अहसास टीवी, रेडियो और फिल्में कराती हैं। जो रात दिन सबके समझ में आ सकने वाले अंदाज में व्यवस्था का संदेश फैलाती रहती हैं। 

हर एक मिनट में बीमारी और भूख से एक बच्चे की हत्या करने वाली यह व्यवस्था हमें अपने हिसाब से ढाल लेने और इस अन्याय का हिस्सा बनाने के सभी उपाय करती है।

 हमें यह सिखाया जाता है कि दुनिया हमेशा से ऐसी ही रही है और सबकुछ ठीक चल रहा है। 

शासन करने वाला दल ही देश हो जाता है और विरोध की आवाज उठाने वालों को बड़ी आसानी से गद्दार या विदेशी जासूस करार दे दिया जाता है। 

जंगल के कानून को कानून का राज घोषित कर दिया जाता है। ताकि लोग सबकुछ किस्मत का खेल मानकर चुपचाप बैठे और सहते रहें। 

---एदुआर्दों गालिआनो, चुनी हुई रचनाएं, गार्गी प्रकाशन 

"हर व्यक्ति अपनी ख़ुद की रोशनी से चमकता है। कोई भी दो लपटें एकसमान नहीं होतीं। छोटी लपटें हैं और बड़ी लपटें हैं, हर रंग की लपटें हैं। कुछ लोगों की लपटें इतनी स्थिर हैं कि वे हवा में फड़फड़ाती तक नहीं, जबकि कुछ की उग्र लपटें हैं जो हवा को स्फुलिंगों से भर देती हैं। कुछ गावदी लपटें हैं जो न जलती हैं न रोशनी देती हैं, लेकिन कुछ दूसरी इतनी प्रचण्डता के साथ जिन्दगी से धधकती रहती हैं कि कोई बिना पलक झपकाये उनकी ओर देख नहीं सकता और अगर कोई उनके पास जाता है तो आग में चमकने लगता है।"

-एदुआर्दो गालिआनो

जीवन का वृक्ष जानता है कि, चाहे जो भी हो, इसके इर्द-गिर्द नाचता उष्‍ण संगीत कभी बंद नहीं होगा। चाहे जितनी भी मौत आये, चाहे जितना भी खून बहे, यह संगीत तबतक स्त्रियों और पुरुषों में नृत्‍य करता रहेगा, जबतक हवा उनकी साँसों में आती-जाती रहेगी, जबतक ज़मीन जुतती  रहेगी और उन्‍हें प्‍यार करती रहेगी।
--एदुआर्दो गालिआनो

तो लोगों को झकझोर कर जगा देने और उन्हें आस-पास की सच्चाई से रू-ब-रू करने का काम कैसे किया जाए? जब दुनिया इस दौर के कठिन हालातों से रू-ब-रू है तो क्या साहित्य हमारे काम आ सकता है? संस्कृति का जो रूप सरकारें लेकर आती हैं वह तो सत्ता में बैठे चन्द लोगों के लिए ही है- यह सरकारी संस्कृति बर्बर व्यवस्था को 'विकास' और 'मानवता' का चेहरा देकर लोगों को गुमराह करती और व्यवस्था का गुलाम बना देती है- ऐसे में अपनी कलम से नई दुनिया का राह बनाने वाला लेखक 'सब ठीक है' जैसे झूठे दावों पर टिकी व्यवस्था से कैसे लड़े? ऐसे समय में जब हम अपनी अलग-अलग इच्छाओं और सपनों के साथ एक-दूसरे को सिर्फ फ़ायदे और नुकसान के नज़रिये से देख-समझ और परख पा रहे हैं तब सबको साथ लेकर चलने और दुनिया की तस्वीर बदलने का ख़्वाब संजोने वाले साहित्य की क्या भूमिका हो? हमारे आस-पास के हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि लिखना और कुछ नहीं बल्कि एक के बाद दूसरी समस्याओं की बात करना और उनसे भिड़ना हो गया है- तब हमारा लिखना किन लोगों के ख़ि‍लाफ़ और किनके लिये हो? लातिन अमेरिका में हम जैसे लेखकों की किस्मत और सफ़र बहुत हद तक बड़े सामाजिक बदलावों की ज़रूरत से सीधे-सीधे जुड़ा है- लिखना इस बदलाव के लिए लड़ना ही है क्योंकि यह तो तय है कि जब तक गरीबी, अशिक्षा और टी.वी तथा बाकी संचार माध्यमों के फैलते जाल पर बैठी सत्ता का राज कायम रहेगा तब तक हमारी सबसे जुड़ने और सबके साथ लड़ने की सभी कोशिशें बेकार ही रहने वाली हैं।

जब किसानों-मज़दूरों सहित आबादी के बड़े हिस्से की आज़ादी ख़त्म की जा रही है तब सिर्फ लेखकों के लिए कुछ रियायतों या सुविधाओं की बात से मैं सहमत नही हूँ। व्यवस्था में बड़े बदलावों से ही हमारी आवाज़ अभिजात महफिलों से निकल कर खुले और छिपे सभी प्रतिबन्धों को भेद कर उस जनता तक पहुँचेगी जिसे हमारी ज़रूरत है और जिसकी लड़ाई का हिस्सा हमें बनना है। अभी के दौर में तो साहित्य को इस गुलाम समाज की आज़ादी की लड़ाई की उम्मीद ही बनना है।


एदुआर्दो गालिआनो

(अनुवाद: पी. कुमार मंगलम)


उन चीज़ों के लिए मर जाना सम्‍मान योग्‍य है, जिन चीज़ों के बिना ज़ि‍न्‍दा रहना सम्‍मान योग्‍य नहीं है।


-- एदुआर्दो गालिआनों


"मैंने कभी किसी का क़त्ल नही किया,यह सच है,लेकिन ऐसा इसलिए हुआ,क्योंकि या तो मेरे पास साहस नही था या फिर समय की कमी थी,इसलिए नही क्योंकि मुझमें इच्छा की कमी थी।"

 

                                  एदुआर्दो गालिआनो







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