1847 में मार्क्स ने प्रूधों की किताब की एक आलोचना "दर्शन की दरिद्रता" लिखी। उसमे वह कहते हैं:
"पितृसत्तात्मक व्यवस्था में, जाति व्यवस्था में, सामंती और कॉर्पोरेट व्यवस्था में पूरे समाज मे निश्चित नियमों के अनुसार श्रम विभाजन था। क्या ये नियम किसी विधायिका द्वारा बनाये गए थे? नहीं। मूल रूप से भौतिक उत्पादन की स्तिथियों से उनका जन्म हुआ था और उन्हें काफी बाद में कानून का दर्जा दिया गया। इस तरह ये अलग-अलग प्रकार के श्रम विभाजन सामाजिक संगठन के तरह-तरह के आधार बने।" (पृ 118)
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