यह फ़िल्म सोवियत संघ के देहातों में कृषि के सामूहिकीकरण और मशीनीकरण की मुहिम पर केन्द्रित थी।
व्यापक दर्शकों तक पहुंचने की उम्मीद में, निर्देशक ने समूहों पर जोर देने की अपनी पुरानी प्रथा को छोड़ दिया और एकल ग्रामीण नायिका पर ध्यान केंद्रित किया।
सबसे पहले ईसेनस्टीन ने मुख्य भूमिका के लिए एक पेशेवर अभिनेत्री को काम पर रखने पर विचार किया। लेकिन जब कास्टिंग के दौरान पहला सवाल पूछा गया: "क्या आप गाय का दूध निकाल सकती हैं, हल चला सकती हैं, ट्रैक्टर चला सकती हैं?" तो सभी ने आत्मविश्वास से "नहीं" जवाब दिया। इसके बाद उन्होंने इस भूमिका के लिए खेतिहर मजदूर मार्था लैपकिना, जिन्होंने कभी फिल्म में अभिनय नहीं किया था, को लेने का फैसला किया।
100,000,000 किसान - अनपढ़, गरीब, भूखे। एक दिन ऐसा आता है जब एक महिला यह निर्णय लेती है कि वह अब पुरानी जिंदगी नहीं जी सकती। नए सोवियत राज्य और औद्योगिक प्रगति के तरीकों का उपयोग करके वह अपने गाँव के जीवन और श्रम को बदल देती है।
इस फ़िल्म में जब मार्था के पिता की मृत्यु हो जाती है और विरासत का वितरण हो जाता है, तो उसके पास केवल एक गाय और भूमि का एक छोटा सा टुकड़ा रह जाता है जिसका प्रबंधन करना कठिन होता है। कम से कम न्यूनतम आय अर्जित करने के लिए, वह एक अमीर कुलक से कुछ मदद मांगती है। उसे अपने छोटे से खेत को जोतने के लिए केवल एक घोड़े की जरूरत है। लेकिन कठोर हृदय वाला कुलक उसकी एक भी नहीं सुनता। सरासर निराशा से बाहर, मार्था सोचती है कि क्या एक उन्नत कृषि के अन्य तरीके हो सकते हैं।
एक दिन मार्था में एक क्रांतिकारी जागता है। चार अन्य किसानों के साथ मिलकर, जो समान रूप से अनिश्चितता की स्थिति में हैं, उन्होंने अपना कोलखोज(सामूहिक कृषि प्रणाली) स्थापित किया। बार-बार झटके लगते हैं, लेकिन धीरे-धीरे इस सामूहिक कृषि के लाभ सभी शामिल पार्टियों के लिए स्पष्ट होता जाता हैं। सहकारिता प्रभावी कृषि के लिए मॉडल बन जाती है, और बड़ी संख्या में स्थानीय किसान इसमें शामिल होने लगते हैं। जल्द ही वे खेतों का बेहतर प्रबंधन करने के लिए एक ट्रैक्टर भी ले सकते हैं। दूसरी ओर, उनके आस-पास के कई लोग, जैसे कि गहरे विश्वासी और पुजारी, बहुत पुराने समय के घिसे-पिटे अवशेषों की तरह प्रतीत होते हैं।
सहकारिता या सामूहिक कृषि के माध्यम से जिस तरह सोवियत रूस में गरीब किसानों का जीवन स्तर सुधारा गया, इस फ़िल्म में इसे ही बहुत बेहतर ढंग से दिखाया गया है। भारत मे किसान समस्या से जूझ रहे हर व्यक्ति को इस फ़िल्म से सबक लेनी चाहिये-पूंजीवादी राज्य नही, सिर्फ सर्वहारा राज्य किसानों को तमाम समस्याओं से निजात दिला सजता है।
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