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Saturday, 18 February 2023

स्वयंस्फूर्त जनन

जीवन के मृत पदार्थ से पैदा होने को स्वयंस्फूर्त जनन कहते हैं। इसका मतलब होता है बिना बाहर के मदद से जीवन की उत्पत्ति। 

पुराने जमाने मे विद्वान लोग स्वयंस्फूर्त जनन की अवधारणा को सही मानते थे।

1668 में एक इतालवी डॉक्टर फ्रांसिस्को रेयडी(1626-1697) ने इस अवधारणा का परीक्षण करने की ठानी। हो सकता है कि कुछ छोटे जिंदा जीव सड़े मीट पर अंडे सेते हो। अंडे इतने छोटे हों कि लोगो को दिखाई ही न देते हो। और शायद इन अदृश्य अंडो से भुनगे निकलते हो। 

अपने प्रयोग के लिए रेयडी ने ताजे मीट को आठ भिन्न-भिन्न कांच के फ्लासकों में रखा। उसने चार बर्तनो को सील किया जिससे कि उनमें कोई चीज अंदर न जा पाए। चार बर्तनों को खुला छोड़ा जिससे कि मक्खियां बर्तन में घुस कर मीट पर बैठ सके।

कुछ दिन बीतने के बाद खुले बर्तनों में मीट सड़ने लगा, उनमे बदबू आने लगी और उनपर भुनगे भुनभुनाने लगे। जब रेयडी ने सीलबंद बर्तनों को खोला तो उनके अंदर का मीट भी सड़ा और बदबूदार था पर उनमे भुनगे नही थे।

क्या स्वच्छ हवा के अभाव में भुनगे नही जन्मे थे? रेयडी ने एक और प्रयोग करने की ठानी। उसने फिर कुछ बर्तनों में ताजा मीट रखा। उसने बर्तनों के मुंह पर कपड़े की जाली बांधी। इस जाली में से साफ हवा तो अंदर जा सकती थी परन्तु मक्खियां नहीं। नतीजा? 

मीट सड़ गया परंतु उसमे भुनगे पैदा नही हुए।

इसका निष्कर्ष एकदम साफ था। मक्खियों ने अंडे सेये। और उन अंडों में से भुनगे निकले। जो बाद में खुद मक्खियां बनें। बिल्कुल उसी तरह जैसे इल्लियों से तितलियां बनती है।

स्वयंस्फूर्त जनन की अवधारणा का यह खण्डन था।

क्रमश.....

-( आईजिक ऐसिमोव)




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