सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख आधुनिक और अंग्रेजी शिक्षा की प्रबल समर्थक थी। यह वह दौर था जब सामान्यतः ब्राह्मण एवं मौलवी अध्यापन का कार्य करते थे और उनका लगभग एकाधिकार था। हिन्दू और मुस्लिम शिक्षा व्यवस्थाओं में काफी मेल था और ये जनसाधारण के लिए अनुपलब्ध थी। दोनों को अपनी धर्मोन्मुख प्रकृति से बल मिलता था और अपरिवर्तनीय प्रभुत्व पर आधारित होने के कारण ये शिक्षा पद्धतियां स्वतंत्र अन्वेषण की भावना के प्रतिकूल थी।
ऐसे विकट माहौल में सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख ने आम एवम सदियों से उपेक्षित गरीब दलित समुदाय के लिये आधुनिक शिक्षा देने का क्रांतिकारी कार्य का सूत्रपात किया।
उनके स्कूल में पढ़ाए जाने वाले पाठ्यक्रम में वेद और शास्त्र जैसे ब्राह्मणवादी ग्रंथों या मुल्ला-मौलवियों द्वारा पढाये जा रहे धर्मिक ग्रन्थ के बजाय गणित, विज्ञान और सामाजिक अध्ययन शामिल थे।
सावित्रीबाई और फातिमा शेख ने टीचर्स ट्रेनिंग की और 1848 से ही जोतिराव फुले द्वारा खोले गए स्कूल में दोनों ने पढ़ाना शुरू किया। सावित्रीबाई, फातिमा शेख और सगुना बाई की मदद से जोतिराव फुले ने 1848 से 1852 के बीच 18 स्कूल खोले।
इस आधुनिक शिक्षा के द्वारा फुले दम्पति एवम फातिमा शेख हिंदुस्तान के इतिहास में पहली बार वैज्ञानिक और समाजशास्त्रीय ज्ञान के क्षेत्र में गरीब एवम दलित समुदाय के लोगो, खास कर लड़कियों को आधुनिक पाश्चात्य उपलब्धियों के सम्पर्क में ले आने का कार्य कर रहे थे। इस क्रांतिकारी कार्य का रूढ़िग्रस्त हिन्दू-मुस्लिम समाज द्वारा विरोध लाजिमी था।
फातिमा शेख और सावित्रीबाई को भारी विरोध झेलना पड़ा। लेकिन इन दोनों ने हिम्मत नहीं हारी और घर घर जाकर लड़कियों को बुलाकर पढ़ने के लिए प्रेरित किया।
इन्होंने छुआछूत का विरोध करते हुए सभी जाति की लड़कियों को एक साथ पढ़ाने और लड़कियों को आधुनिक शिक्षा- विज्ञान और गणित पढ़ाने का काम किया था।
सावित्रीबाई सिर्फ एक शिक्षिका ही नहीं समाज सुधारिका और कवियित्री भी थीं। उन्होंने छुआछूत, बाल विवाह, सती प्रथा, विधवा विवाह निषेध जैसी कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाई। विधवा महिलाओं के लिए आश्रम खोला और कई सवर्ण विधवा, गर्भवती महिलाओं को आत्महत्या करने से बचाया। बिना दहेज और बिना पुरोहित अंतरजातीय विवाह करवाए। शुद्र, अतिशुद्र और महिलाओं की गुलामी के खिलाफ समाज में अभियान चलाया। अस्पताल खोला जहां प्लेग रोगियों की सेवा करते हुए 1897 में सावित्रीबाई का निधन हुआ।
1947 में भारत को आजादी मिलने के बाद भी बुर्जुवा सरकारों ने आधुनिक शिक्षा का विस्तार गरीब समुदाय के दलित लोगों तक कर पाने में विफल रही है। आज मोदी सरकार के कार्यकाल में शिक्षा को इतना महंगा बनाया जा रहा है कि आम लोगों के लिए इसे हासिल करने के लिये सोच पाना भी असंभव होता जा रहा है। अगर आधुनिक शिक्षा को जनसाधारण तक पहुंचाना है, इसे और व्यापक करना है, सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के सपनों को साकार करना है तो हमें मजदूर वर्ग के नेतृत्व में समाजवादी राज्य स्थापना करनी होगी। केवल समाजवादी राज्य ही शिक्षा को आम मेहनतकश जनता तक पहुंचा सकता है, इसे सर्वव्यापी सुलभ करा सकता है। सावित्रीबाई फुले और फातिमा शेख के सपनों को हम इसी तरह साकार कर सकते हैं।
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