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Saturday, 28 January 2023

जिम्बाब्वे के प्रमुख कवि चेन्जेराई होव की चार कविताएं :



● इनकार
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पुलिस जब आ ही जाये ऐन सिर पर
और उसकी लाठी नृत्य करने लगे 
तुम्हारी पीठ पर
इनकार कर देना झुकने से।

बिच्छू जब आ ही जायें
और डंक मार दें चाहे
तुम्हारी आंखों और कानों पर
इनकार कर देना उनके वश में आने से।

दुनिया जब घूमती नज़र आये गोल-गोल
यातना-कक्ष के भीतर
साफ़ इनकार कर देना चाहिये
तुम्हारे दिल को मुरझाने से।

तुम सुनना बच्चों की आवाज़ों को
देखना रंगत हमारे संगीत की
और नाच उठना मन ही मन
समर्पण की मौत पर।

जिस क्षण शक्तिसम्पन्न लोग
लूटने में लगे हों तमगे
और अशक्त चुन रहे हों
किनके शासन के,
तुम इनकार कर देना घुटने टेकने से
फुटपाथ पर छल और कपट के।

● एक तानाशाह से
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(एक पाकिस्तानी कवि की याद में, जिसे देशनिकाला दे दिया गया था)

तुम्हारे दौर में 
तुमने दूर कर दिया हमसे
हमारी स्वतंत्रता के सार को।

तुम्हारे दौर में
कमज़ोर लोगों ने हिफ़ाज़त की
तुम्हारी दुर्बलताओं की,
और धरती रोती रही लगातार,
चन्द्रमा तक स्याह पड़ गया था
तुम्हारे दौर में।

● हम
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केवल हम ही नहीं थे
पीछे छूट जाने वालों में,
अंज़ीर का पेड़ भी खड़ा था
हमारे साथ ही।

केवल हम ही नहीं थे
पीछे छूट जाने वालों में
जब तक कि आसमान
इनकार करता रहा था
हमें वीज़ा देने में।

शुभ रात्रि, प्रिये
हम इन्तज़ार करेंगे यों ही
किसी और फूल के खिलने तक।

● सत्ता
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इस तरह पहन लेते हैं हम 
सत्ता को :
सीटियों और बन्दूकों और बारूद के साथ

सुरक्षा सैनिक
जगमगाती रोशनियां
कांच की धुंधली खिड़कियां
क़तारें मोटरगाड़ियों की
ख़िताबें, पदवियां
कम से कम हाथ मिलाना
कम से कम मुस्कुराना
कम से कम सन्ताप

हम पहन लिया करते हैं सत्ता को
बिल्कुल महामारी की तरह

                   ***
(अंग्रेज़ी से अनुवाद- राजेश चन्द्र, 8 फरवरी, 2019)

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