आकाश को अनन्त कहकर पूर्वजों ने उसके विस्तार का एक अन्दाजा लगा लिया था, लेकिन वह अत्यन्त वास्तविकता की भित्ति पर न होकर अधिकतर अज्ञान के आधार पर आश्रित था। प्रकाश की गति प्रति सेकेण्ड एक लाख अस्सी
हजार मील है। आज तक जो तारा हमसे सबसे नजदीक मालूम हुआ है; वह इतनी दूर है कि उसकी किरण को हम तक पहुँचने में ढाई बरस लगते हैं। ध्रुव तारा हमसे बहुत दूर नहीं है, तो भी उसके जिस रूप को हम इस वक्त देख रहे हैं, वह आज से पचास बरस पहले का है।
दस-दस बीस-बीस हजार बरस में
अपनी किरणों को हम तक पहुँचाने वाले तारों की भारी संख्या से हमें आश्चर्य करने की जरूरत नहीं। नक्षत्र-मण्डल में ऐसे भी तारे हैं जिनकी दूरी को किरणों की यात्रा के वर्षों की संख्या में बतलाना मुश्किल है। तारों, खगोल और प्राकृतिक
जगत्-सम्बन्ध की अपनी इस अज्ञानता को मनुष्य देवता और ईश्वर की आड़ में छिपाता था।
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