अवगुन कहूँ शराब का:
-----------------------
शराब ने कैसे कैसे गुल खिलाए हैं, कहने की जरूरत नहीं। न जाने कितने नामचीन हस्तियों को इसने असमय काल कवलित कर डाला। नाम गिनाऊं तो अभी याद आ रहे हैं गायक और अभिनेता सहगल, गायिका गीता दत्त, नायिका मीनाकुमारी, संगीतकार जयकिशन और मदनमोहन, गीतकार शैलेन्द्र, शायर मजाज, अंग्रेज कवि डायलन टामस, कहानीकार ओ हेनरी, उपन्यासकार स्कॉट फिजराल्ड जिन लोगों के जीवन को शराब ने बरबाद किया और अल्पायु में ही दुनिया से विदा कर दिया। देश में हर साल इस शराबखोरी के चलते सैकड़ों मरते हैं।
मेरे एक परिचित बैंककर्मी थे। राम जाने कब और कैसे शराब की लत उनको लगी। रिटायरमेंट के बाद उनकी स्थिति यह थी कि शराब के चक्कर में अपने तमाम परिचितों से किसी न किसी बहाने पैसा ले चुके थे। शराबखोरी ने इस हद तक उनको बेशर्म बना दिया था कि किसी परिचित के घर अहले सुबह पहुंच जाते और पत्नी की बीमारी के नाम पर पैसा मांगते। बीमारी, वह भी पत्नी को, तो कोई इनकार कैसे करता? धीरे धीरे लोगों को इसका पता चला तो उनको बाहर पैसा मिलना बंद हो गया। खुशकिस्मती से अब वे शराब छोड़ चुके हैं।
शराब की प्रशंसा में गीतों की भरमार है। ऋग्वेद में जिस सोमरस का इतना गुणगान है, वह शायद शराब ही था। उर्दू शायर तो शराब के लिए खुदा और जन्नत से भी तौबा कर लें। उनकी कलम में शराब की स्याही रहती है। इधर हिन्दी के हरिवंश राय बच्चन ने एक पूरी किताब "मधुशाला" शराब और शराबियों का गुणगान करते लिख डाला।
शराब की इतनी बड़ाई और बड़े बड़े लोगों में इसके पीने की चर्चाएं सुनकर एक बार मुझे भी इच्छा हो आई कि जरा मैं भी चखकर देखूं। सो एक बोतल ले आया। कौन ब्रांड था, नाम नहीं याद आ रहा। खैर, बोतल खोला और थोड़ा सा हलक में ले गया। इतना खराब और इतना कड़वा लगा मानों सूअर या गंदे नाले में लोट पोट करने वाले ऐसे ही किसी अन्य जानवर का मूत हो। तुरत ब्रश किया, इलायची दाना खाया, सौंफ खाया। घंटों बाद मन ठीक हुआ। बोतल नाली में फेंक आया।
ऐसा नहीं है कि शराब के खिलाफ नहीं लिखा गया । बहुत कुछ लिखा गया है। कबीर ने पांच सौ साल पहले चेताया:
अवगुन कहूँ शराब का, आपा अहमक साथ ।
मानुष से पशुआ करे, दाय गाँठ से खात ॥
उधर सात समुन्दर पार शेक्सपियर ने चार सौ साल पहले लिखा:
O thou invisible spirit of wine, if thou hast no name to be known by, let us call thee devil! O God, that men should put an enemy in their mouths to steal away their brains! that we should, with joy, pleasance revel and applause, transform ourselves into beasts!
(अरी ओ शराब की अदृश्य आत्मा, अगर तेरा कोई ज्ञात नाम न हो, तो चलो तुझे हम शैतान के नाम से पुकारें! हे ईश्वर, कि आदमी अपने मुंह में एक बैरी रख ले जो उसकी बुद्धि का ही अपहरण कर ले! कि हम हँसते, गाते, मौज उड़ाते और तालियां बजाते खुद ही अपने आप को जानवर में परिवर्तित कर लें)
(Othello, Act II, Scene-3)
टॉलस्टाय की एक कहानी है— The Imp and the Peasant's Crust. कहानी का सार है कि शैतान ने लोमड़ी, भेंडिया और सूअर के खून से शराब बनाया। इसलिए आदमी जब शराब का पहला पेग पीता है तो लोमड़ी की तरह मीठी मीठी बातें करता है, दूसरे पेग के साथ वह भेड़िया की तरह गुर्राना शुरू करता है, तीसरा पेग उसको सूअर में बदल देता है और वह कहीं नाले में पड़ा पाया जाता है।
पर इन सब लिखी बातों से क्या अंतर पड़ता है? लोग सूअर की तरह नाले में लोटेंगे, आंखों से अंधे होंगे, अपनी जान गंवाएंगे, पर शराब पियेंगे। पैगंबर भी आकर नसीहत दें तो ये न सुनें। खुदा की भले ही जन्नत में चलती हो, धरती पर तो शैतान का ही राज है।
*सोशल मीडिया ज्ञान*
No comments:
Post a Comment