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Sunday, 8 January 2023

महान वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग के जन्म दिवस के अवसर पर



"स्टीफन हॉकिंग और आधुनिक भौतिक विज्ञान"

(स्टीफन की मृत्यु के बाद नागरिक अखबार में छपा लेख)

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मार्च के मध्य में प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हाकिंग की मृत्यु हो गई। वे आज के सबसे जाने-पहचाने वैज्ञानिक थे और अक्सर ही उनकी लोकप्रिय हस्तियों में गिनती होती थी। पदार्थ और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति व संरचना पर लिखी उनकी किताब 'समय का एक संक्षिप्त इतिहास' अपने प्रकाशन के समय से ही 'बेस्ट सेलर' किताब रही है।

अपनी युवावस्था के शुरुआती चरण में ही पता चला कि स्टीफन हाकिंग एक खास किस्म की बीमारी के शिकार हैं। इसे कम तकनीकी भाषा में मोटर न्यूरान बीमारी कहते हैं जिसका आशय है कि दिमाग व रीढ़ से जो तंत्रिकाएं मांसपेशियों तक संदेश पहुंचाती हैं, उनकी बीमारी। इस बीमारी के कारण मांसपेशियां गतिमान नहीं हो सकतीं और इस बीमारी का शिकार व्यक्ति अपने अंगों का संचालन नहीं कर सकता। तब डाॅक्टरों का कहना था कि स्टीफन हाकिंग कुछ ही समय तक जिन्दा रह पायेंगे। पर स्टीफन हाकिंग ने डाॅक्टरों को गलत साबित किया और सत्तर साल से ज्यादा जिन्दा रहे। बस वे सारी जिन्दगी पहिया कुर्सी पर रहे और समय के साथ बोलने-चलने के लिए भी मशीन पर निर्भर होते गये। बाद में उनकी मशीनी आवाज उनका ट्रेड मार्क बन गई। 

उनकी लोकप्रियता में उनके वैज्ञानिक सिद्धान्तों के अलावा उनकी खास जिन्दगी और जिजीविषा का भी योगदान था हालांकि यह अनुचित नहीं था। उनकी जिन्दगी आंतरिक प्रेरणा और लक्ष्य को समर्पित जिन्दगी का अदभुत उदाहरण थी।

यह महत्वपूर्ण है कि इतनी कष्टप्रद जिन्दगी जीने वाला व्यक्ति पूर्णतया नास्तिक था और नास्तिकता का खुलेआम प्रचार भी करता था। उनकी नास्तिकता ब्रह्माण्ड के बारे में उनके सिद्धान्तों से जुड़ी हुई थी।

आज आधुनिक भौतिक विज्ञान बहुत ज्यादा गणितीय और तकनीकी हो चुका है। उस स्तर पर उसे समझ पाना उस क्षेत्र के लोगों के लिए ही संभव है। स्टीफन हाकिंग के शोध उसी स्तर के हैं। पर उनके शोधों से निकलने वाले निष्कर्षों को सरलीकृत रूप में आम लोगों के लिए भी प्रस्तुत किया जा सकता है। स्वयं स्टीफन हाकिंग ने अपनी लोकप्रिय किताबों में यही करने का प्रयास किया था। उनकी किताब 'समय का एक संक्षिप्त इतिहास' की लोकप्रियता का एक कारण यह भी था कि इसमें विज्ञान के आज के जटिल सिद्धान्तों को सरल रूप में प्रस्तुत किया गया है। आगे स्टीफन हाकिंग के वैज्ञानिक सिद्धान्तों की पृष्ठभूमि, उनके सिद्धान्तों और इनकी विवेचना को प्रस्तुत किया गया है।

आइंस्टीन के बारे में एक किस्सा प्रचलित है जो सच भी है। आइंस्टीन ने जब 1916 में सापेक्षिकता का सामान्य सिद्धान्त प्रस्तुत किया तो इसके समीकरणों से यह निष्कर्ष निकलता प्रतीत हुआ कि ब्रह्माण्ड स्थिर नहीं है और फैल रहा है। तब विज्ञान में यह सिद्धान्त मान्य था कि एक बार पैदा हो जाने के बाद ब्रह्माण्ड स्थिर है। तारे, ग्रह, उपग्रह अपनी धुरी पर और अपनी कक्षा में घूम रहे हैं पर यह पूरी व्यवस्था स्थिर है। अपने समीकरणों को तब प्रचलित मान्यता के खिलाफ जाता देख आइंस्टीन ने उनमें एक स्थिरांक जोड़ दिया। इसे जोड़ने के बाद समीकरणों में ब्रह्माण्ड स्थिर हो गया। पर ब्रह्माण्ड स्थिर तो था नहीं। कुछ ही साल बाद एक नये बड़े टेलीस्कोप से पता चला कि ब्रह्माण्ड की सारी आकाशगंगाएं एक-दूसरे से दूर भाग रही हैं। यह प्रेक्षण स्थिर ब्रह्माण्ड की धारणा के खिलाफ था। कुछ ही समय में स्पष्ट हो गया कि ब्रह्माण्ड स्थिर नहीं है बल्कि फैल रहा है। फैलते ब्रह्माण्ड की धारणा स्थापित हो जाने के बाद आइंस्टीन ने कहा कि अपने सापेक्षिकता के सिद्धान्तों में स्थिर ब्रह्माण्ड के लिए बनावटी रूप से एक स्थिरांक जोड़ना उनके वैज्ञानिक जीवन की सबसे बड़ी भूल थी। 

फैलते ब्रह्माण्ड की धारणा स्थापित हो जाने के बाद यह निष्कर्ष निकलना स्वाभाविक था कि यदि समय में पीछे लौटें तो एक समय आयेगा जब सारा ब्रह्माण्ड एक बिंदु पर था। यहीं से ब्रह्माण्ड शुरु हुआ होगा जो तब से लगातार फैलता गया है और अभी भी फैल रहा है। बाद में इसी निष्कर्ष से बिग बैंग की धारणा पैदा हुई। इस धारणा के अनुसार आज से करीब तेरह अरब साल पहले एक बहुत बड़े धमाके में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई। द्रव्य, ऊर्जा, दिक् और काल की तभी उत्पत्ति हुई। प्राचीन भारत में सारा आधुनिक ज्ञान-विज्ञान खोज निकालने वाले संघी यह दावा कर सकते हैं कि महाभारत में कहा गया है कि शुरू में ब्रह्माण्ड एक गोला था।

बिग बैंग के सिद्धान्त ने पदार्थ, ऊर्जा, दिक्-काल और ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में जितने सवाल हल किये उससे ज्यादा पैदा किये। मसलन बिग बैंग के समय सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा एक बिन्दु पर केन्द्रित रही होगी। अंकगणित के अनुसार बिन्दु का तो कोई आयाम होता नहीं। यानी अपने क्षेत्रफल में वह शून्य होता है। अब शून्य पर सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा कैसे समा सकती है। गणित के हिसाब से देखें तो किसी भी अंक को शून्य से भाग देने पर परिणाम अनंत आता है जिसका कोई मतलब नहीं होता। भौतिक विज्ञान में इस स्थिति को 'सिंगुलैरिटी' कहते हैं। बिग बैंग के सिद्धान्त की सबसे बड़ी समस्या यही थी कि बिग बैंग सिंगुलैरिटी से कैसे निपटा जाये? एक बिन्दु पर सारा पदार्थ और सारी ऊर्जा केन्द्रित हो जाने से जो विज्ञान के नियम गड़बड़ा जाते लगते हैं, उस स्थिति से कैसे निपटा जाये? क्या इस स्थिति में विज्ञान के कोई अन्य नियम हैं? या कि 'सिंगुलैरिटी' जैसी स्थिति असल में होती ही नहीं?

यहीं से भौतिक विज्ञान के दूसरे छोर की चर्चा आ जाती है। ब्रह्माण्ड के बारे में छानबीन, पदार्थ-ऊर्जा, दिक्-काल की वृहद स्तर की छानबीन है जबकि पदार्थ की संरचना की छानबीन क्रमशः सूक्ष्म से सूक्ष्मतर स्तर की ओर ले जाती है। भौतिक विज्ञान इसे क्वाण्टम मैकेनिक्स कहता है। 

परमाणु और उससे भी नीचे के कणों मसलन इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्यूट्रान, मेसान, इत्यादि की गति के नियमों की व्याख्या करने वाला क्वांटम मैकेनिक्स अपने आप में टुकड़ों (क्वांटम) का सिद्धान्त है। यह चीजों को निरन्तरता में नहीं बल्कि टुकड़ों-टुकड़ों में देखता है। यही नहीं, यह कहता है कि इस सूक्ष्म स्तर पर चीजें निश्चित तौर पर नहीं बल्कि संयोग के रूप में होती हैं। यदि कोई निश्चितता होती भी है तो वह संयोग से पैदा होती है। यह स्वाभाविक है कि यह माना जाय कि जब बिग बैंग में ब्रह्माण्ड पैदा हुआ तो उस समय वह इसी स्थिरांक अवस्था में था और क्वांटम मैकेनिक्स के हिसाब से गति कर रहा था।

आइंस्टीन का सापेक्षिकता का सामान्य सिद्धान्त साथ ही गुरुत्वाकर्षण का भी सिद्धान्त था। और गुरुत्वाकर्षण ब्रह्माण्ड के वृहद स्तर पर यानी आकाशगंगाओं, तारों, ग्रहों-उपग्रहों के स्तर पर गति का आम नियामक है। यानी ब्रह्माण्ड के इस स्तर पर गति आइंस्टीन के सापेक्षिकता के आम सिद्धान्त के हिसाब से होती है। अब सापेक्षिकता का सिद्धान्त टुकड़ों की नहीं बल्कि निरन्तरता की बात करता है। इसी तरह वह संयोग की नहीं बल्कि निश्चितता की बात करता है। इस तरह सापेक्षिकता का सिद्धान्त क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धान्त का ठीक उल्टा है।

अब दोनों सिद्धान्तों के ठीक उल्टे चरित्र से एक बड़ी समस्या पैदा हो जाती है। क्या पदार्थ वृहद और सूक्ष्म स्तर पर बिल्कुल विपरीत नियमों के हिसाब से गति करता है? यदि ऐसा है तो एक-दूसरे में रूपान्तरित कैसे हो जाता है? टुकड़ा-टुकड़ा (क्वांटम) निरंतरता में और संयोग निश्चितता में कैसे रूपान्तरित हो जाता है? ब्रह्माण्ड के ठोस संदर्भ में बात करें तो अपनी उत्पत्ति के समय क्वांटम रूप में व्यवहार करने वाला ब्रह्माण्ड बाद में निरंतरता के हिसाब से व्यवहार कैसे करने लगा? यह संक्रमण कब और कैसे सम्पन्न हुआ?

हालांकि आइंस्टीन के जिन्दा रहते बिग बैंग की धारणा मुकम्मल नहीं हुई थी, आइंस्टीन सापेक्षिकता का आम सिद्धान्त प्रस्तुत करने के बाद ताउम्र इस समस्या से जूझते रहे कि पदार्थ की सूक्ष्म और वृहद स्तर पर गति के सिद्धान्त अपने चरित्र में बिल्कुल विपरीत क्यों हैं? आइंस्टीन हमेशा यह मानते रहे कि इसका कारण इन सिद्धान्तों का आंशिक होना है। उनकी नजर में कोई अन्य तीसरा और ऊंचा गति का नियम प्रकृति में विद्यमान है तथा गति के ये दोनों नियम (सापेक्षिकता का सिद्धान्त और क्वांटम मैकेनिक्स) पदार्थ के दो स्तरों पर उसकी दो आंशिक अभिव्यक्तियां हैं। आंइस्टीन अपने जिन्दा रहते इस तीसरे ज्यादा ऊंचे नियम की खोज में लगे रहे लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली।

तकनीकी बारीकियों को छोड़ दें तो स्टीफन हाकिंग भी सार रूप में इसी समस्या से जूझते रहे।

स्टीफन हाकिंग का तकनीकी काम ज्यादातर ब्लैकहोल से सम्बन्धित रहा है हालांकि उन्होंने शुरुआत फ्रेड हायेल और जयंत नार्लिकर के सिद्धान्त को चुनौती देने से की थी। फ्रेड हायेल और जयंत नार्लिकर का प्रस्ताव था कि ब्रह्माण्ड स्थिर गति से लगातार फैलता जा रहा है और अनंत काल तक फैलता रहेगा। हाकिंग का कहना था कि इसके लिए पदार्थ और ऊर्जा का निरंतर पैदा होना जरूरी है और यही नहीं हो सकता। इसलिए एक समय ऐसा आयेगा जब ब्रह्माण्ड का फैलना बन्द हो जायेगा और सिकुड़ना शुरु हो जायेगा। अंततः वह फिर एक बिन्दु पर सिमट जायेगा- बिग क्रंच में। शुरूआत बिग बैंग से हुई थी और अंत बिग क्रंच में होगा हालांकि यह हजारों अरब साल बाद होगा।

ब्रह्माण्ड के एक बिन्दु पर सिमट जाने से स्टीफन हाकिंग ब्लैकहोल की अपनी अवधारणा पर पहुंचे हालांकि ब्लैकहोल की अवधारणा उनसे पहले रोजर पेनरोज ने दी थी। यदि ब्रह्माण्ड सिकुड़ कर कभी एक बिन्दु पर पहुंचेगा तो 'सिंगुलैरिटी' की समस्या पैदा हो जायेगी। इस 'सिंगुलैरिटी' पर गुरुत्वाकर्षण अनंत हो जायेगा क्योंकि आइंस्टीन के सापेक्षिकता के आम सिद्धान्त के अनुसार गुरुत्वाकर्षण और कुछ नहीं दिक्-काल की चर्तुआयामी चादर पर द्रव्य से पड़ने वाली सिकुड़न है जो एक बिन्दु पर ब्रह्माण्ड की समस्त पदार्थ-ऊर्जा के केन्द्रित होने से अनंत हो जायेगी। इस अनंत गुरुत्वाकर्षण से कोई भी चीज बच नहीं सकती और जो भी चीज इसके पास से गुजरेगी वह इसमें समा जायेगी।

ब्लैक होल ब्रह्माण्ड के ऐसे क्षेत्र हैं जहां गुरुत्वाकर्षण इतना ज्यादा होता है कि उसके पास से गुजरने वाली प्रकाश की किरण भी उसमें समा जाती हैं। ब्लैक होल किसी बड़े तारे के जीवन चक्र पूरा कर लेने के बाद उनके सिकुड़ने से पैदा होते हैं। हालांकि बाद में यह धारणा प्रस्तुत की गई कि ब्लैक होल अत्यंत सूक्ष्म यानी परमाणु के नाभिक के बराबर हो सकते हैं। यहां तक कहा गया कि परमाणु के नाभिक दरअसल ब्लैक होल ही हैं।

ब्लैक होल की धारणा में 'सिंगुलैरिटी' की समस्या से बचने के लिए स्टीफन हाकिंग ने क्वांटम ग्रेविटी का सिद्धान्त विकसित किया। यह आइंस्टीन के सिद्धान्त को क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धान्त के साथ मिलाने की कोशिश थी। इस मिलन से कई रोचक निष्कर्ष निकले पर उनकी परीक्षा करने का कोई तरीका नहीं था।

स्टीफन हाकिंग का मानना था कि सापेक्षिकता के सिद्धान्त और क्वांटम मैकेनिक्स के सिद्धान्त के मेल से जो क्वांटम ग्रेविटी सिद्धान्त पैदा हुआ है उससे भौतिक जगत की व्याख्या का अंतिम सिद्धान्त पैदा हो गया है। यह सभी कुछ की व्याख्या करता है। हाकिंग ने एक लोकप्रिय किताब इसी नाम से लिखी 'सब कुछ का सिद्धान्त' (थ्योरी आव एवरीथिंग)। पदार्थ की संरचना के सुपरस्ट्रिंग थ्योरी के साथ यह मान लिया गया कि भौतिक विज्ञान अपने अंतिम स्तर पर पहुंच गया है। 

जैसा कि पहले कहा गया है स्टीफन हाकिंग ने जो सिद्धान्त प्रस्तुत किये वे बहुत जटिल गणितीय सिद्धान्त हैं। बस उनके रोचक निष्कर्ष ही आमजन तक पहुंच सके। पर इन जटिल गणितीय सिद्धान्तों के पीछे जो दार्शनिक पहुंच है उस पर सवाल उठते रहे हैं और उन्हें सही नहीं कहा जा सकता। 

ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का बिग बैंग सिद्धान्त ब्रह्माण्ड को दिक् और काल में सीमित मान लेता है। इससे स्वतः ही यह सवाल पैदा होता है कि इस ब्रह्माण्ड से परे और इससे पहले क्या है और क्या था? स्टीफन हाकिंग द्वारा स्पष्ट तौर पर ईश्वर को नकारने के बावजूद इससे ईश्वर के लिए जगह पैदा हो जाती है। इससे यह कह कर नहीं बचा जा सकता कि भौतिकी के वर्तमान नियम यह सीमा बांध देते हैं कि बिग बैंग के समय सिद्धान्त (टाइम होराइजन) से परे की चीज इस ब्रह्माण्ड को प्रभावित नहीं कर सकती।

दर्शन में प्राचीन काल से ही यह बहस रही है कि दिक् और काल (और इसमें निहित ब्रह्माण्ड) अनन्त है या सीमित। अठारहवीं सदी में कान्ट ने दोनों पक्षों को विस्तार से प्रस्तुत करने के बाद कहा था कि तर्क से इसका निपटारा नहीं किया जा सकता। पर क्वांटम ग्रेविटी का वर्तमान सिद्धान्त इसका इस रूप में निपटारा करता है कि दिक्-काल और इसीलिए ब्रह्माण्ड सीमित हैं। इसका एक आदि है और एक अंत है। इसी तरह सूक्ष्मतर स्तर पर सुपरस्ट्रिंग के रूप में पदार्थ की संरचना की भी एक सीमा है।

पर दार्शनिक स्तर पर इसे मानने का कारण नहीं है। यदि यह मान भी लिया जाये कि बिग बैंग जैसी कोई चीज हुयी थी तो भी यह हो सकता है कि यह और भी ज्यादा बड़े ब्रह्माण्ड का एक हिस्सा भर हो। यदि दिक्-काल को अनंत माना जाये तो ब्रह्माण्ड में ऐसे अनंत बिग बैंग हो सकते हैं और बिग क्रंच भी। तब ब्रह्माण्ड की सबसे बड़ी संरचनाएं आकाशगंगाएं नहीं बल्कि ऐसे बिग बैंग से पैदा उप ब्रह्माण्ड होंगे। इसलिए ऊपर की भी संरचनाएं होंगी। इसी तरह सूक्ष्मतर स्तर पर सुपरस्ट्रिंग को अंतिम संरचना मान लेना उचित नहीं। नीचे भी ऐसे ही अनंत संरचनाएं होंगी। 

कहा जा सकता है कि ये सब तो दार्शनिक उड़ान है। विज्ञान के ठोस सिद्धान्त तो कुछ और ही कहते हैं। पर विज्ञान के उपरोक्त सिद्धान्त उतने ठोस नहीं हैं। वे जटिल गणितीय माॅडल भर हैं। उनके किसी भी निष्कर्ष का वैज्ञानिक प्रेक्षण नहीं हो सका है। ये गणितीय माॅडल देखने में सुन्दर हैं पर वे सही भी हों यह जरूरी नहीं। आइंस्टीन सारी जिन्दगी जिस समस्या का समाधान ढूढंते रहे वह हल हो गई है, यह नहीं कहा जा सकता। और कहा जा सकता है कि प्रकृति के बारे में उपरोक्त सोच सही समाधान तक पहुंचने के रास्ते में बाधा है। विज्ञान में शताब्दियों से समय-समय पर माना जाता रहा है कि प्रकृति के अंतिम रहस्य तक पहुंचा जा चुका है, कि उसके अंतिम नियमों की खोज हो चुकी है। पर बार-बार यह पाया गया है कि ऐसा नहीं है। प्रकृति की संरचना के और भी स्तर तथा उसके और भी गहरे व ऊंचे नियम हैं। आगे भी यही होगा। प्रकृति अनादि और अनंत है और इसीलिए उसके नियमों की खोज का भी कोई अंत नहीं। आगे और भी न्यूटन और आइंस्टीन और भी स्टीफन हाकिंग आते रहेंगे और विज्ञान बढ़ता रहेगा।

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