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Saturday, 21 January 2023

शोषक वर्गों के गोबर गणेश



*शोषक वर्गों के गोबर गणेश*

पूँजीवादी व्यवस्था "थोड़े से लोगों द्वारा, थोड़े से लोगों के लिए, थोड़ा सा उत्पादन" ही कर सकती है। अगर यह पूँजीवादी व्यवस्था विदेशी साम्राज्यवादियों की बन्दूक और उनकी आवारा वित्तीय पूंजी के सहारे सामंतवाद की बुनियाद पर टिकी हो तो इसकी उत्पादन क्षमता थोड़ी से भी थोड़ी हो जाती है। यानी बहुत कम हो जाती है।

 जब बहुत थोड़ा सा ही उत्पादन होगा तो सबको खुशहाली कैसे मिल सकती है? ऐसी व्यवस्था में बहुसंख्यक जनता गरीबी तंगहाली झेलने के लिए बाध्य रहेगी ही। 

 इस समस्या का समाधान यह है कि जनता बलपूर्वक इस व्यवस्था का तख्तापलट करके समाजवादी व्यवस्था कायम करे।

 मगर जनता मौजूदा व्यवस्था को पलट न दे, इसके लिए जनता को गुमराह करने के लिए, शोषक वर्ग ने भिन्न-भिन्न प्रकार के गोबर गणेश पैदा किया है।

 इन गोबरगणेशों में जो दलित वादी हैं वे बताते हैं कि  सारी समस्याओं के लिए मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था नहीं, सवर्ण लोग दोषी हैं। 

हिन्दू वादी गोबरगणेशों का कहना है- मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था नहीं बल्कि मुसलमान दोषी हैं।

मुस्लिमवादी गोबर गणेशों का कहना है कि मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था नहीं बल्कि हिन्दू दोषी हैं।

सवर्ण वादी गोबरगणेशों का कहना है कि मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था नहीं बल्कि दलितों पिछड़ों को आरक्षण दिए जाने से ही दुनिया की सारी समस्यायें पैदा हुई हैं।

इनमें दलितवादी /जातिवादी चिन्तक खुद को सबसे बड़ा समाजसेवक कहते हैं, मगर मेहनतकश जनता में फूट डालकर शोषक वर्गों के ही  सेवक बने रहते हैं।

जितने भी दलितवादी चिन्तक हैं, कुछ अपवादों को छोड़कर सभी जातिवादी हैं, और दार्शनिक तौर पर दरिद्र हैं। उनको शोषक वर्ग ने गोबर गणेश बनाकर जातिवाद को बढ़ावा देने का काम सौंप दिया है।

 इन अघाए हुए गोबर गणेशों का काम है मजदूरों किसानों में जातीय भावना को भड़काना। मजदूरों किसानों में फूट डालकर शोषक वर्ग को मजबूत करना। ब्राह्मणवादियों की तरह जाति के आधार पर व्यक्ति का मूल्यांकन करना। फूट डालना बदले में आरक्षण की मलाई चाटना।

यह वही वर्ग है जिसकी संख्या पूरे दलितों में से 2% है। यही वर्ग पीढ़ी दर पीढ़ी आरक्षण की मलाई चाट रहा है। 

 यह खुद तो इसी व्यवस्था में अघाया हुआ है और आगे अपनी संतानों को भी वही  मलाई चटाने के लिए इस व्यवस्था को बनाए रखना चाहता है। 

 शेष 98% दलितों को अधिकार मिले या न मिले इसकी चिन्ता नहीं, इन अघाए हुए लोगों को अपने सम्मान की बड़ी चिन्ता है। 

 इसी लिए ये लोग तुलसीदास की तरह कहते हैं कि 'सामाजिक अपमान गरीबी से अधिक खटकता है।' 
जैसे तुलसी ने भी लिखा था-
 जदपि जगत दारुन दुख नाना।
सबसे अधिक जाति अपमाना।।
मगर बाद में तुलसी ने "नहिं दरिद्र हम दुख जग माहीं" कहकर खुद को सुधारा।

 मगर जातिवाद के नशे में धुत हो चुके दलितवादियों एवं पिछड़ावादियों को होश नहीं आ रहा। शोषक वर्ग ने 5किलो राशन देकर इनके आधार को ही झकझोर दिया फिर भी इनकी आँख नहीं खुल रही है, इन्हें 98% दलितों के भूख की चिन्ता अब भी नहीं। 

सवर्ण मानसिकता वाले धूर्त विद्वानों की तरह ये लोग भी मौजूदा शोषणकारी व्यवस्था को बदलना नहीं चाहते। इसीलिए तो वे आरक्षण की मलाई चाटकर मौजूदा व्यवस्था के सामने दुम हिलाने का काम कर रहे हैं।

सवर्णवादियों, हिन्दूवादियों, मुस्लिमवादियों, क्षेत्रवादियों.. की भी दशा कमोवेश ऐसी ही है। इनके पीछे जो भी चलता है उसे ही ये लोग बेच देते हैं। सभी जातिवादी नेताओं ने तो मायावती जी की नकल करते हुए खुलेआम इसे ही अपना धंधा बना लिया है।

   अगर उनमें से कुछ लोग वास्तव में जनता के दुखों से चिन्तित हैं तथा जनता की मौजूदा समस्याओं मँहगाई, बेरोजगारी, गरीबी, तंगहाली, आदि का समाधान चाहते हैं, तो उन्हें मेहनतकश वर्ग के पक्ष में मानवीय संवेदना विकसित करना होगा।

  इसके लिए उन्हें खुद को डीक्लास (वर्गच्युत) करना होगा। इसके लिए उन्हें अपनी अट्टालिकाओं से बाहर आना होगा। उच्च मध्यवर्गीय मानसिकता को त्यागना होगा। 

 जातीय या धार्मिक घृणा की जगह वर्गीय घृणा पैदा करना होगा। अगर वे शोषक वर्गों से घृणा नहीं करेंगे तो सच्चे अर्थों में उन्हें शोषित-पीड़ित से प्रेम नहीं हो पायेगा। 

शोषित-पीड़ित वर्गों से प्रेम करके ही वे जनपक्षधर बन पाएँगे। वरना वे लोग जाने-अनजाने शोषक वर्गों के गोबर गणेश बनकर उनकी सेवा करते ही रहेंगे।

  मोदी, माया, ओवैशी, भागवत, बाभन मेश्राम और इन जैसे सारे धार्मिक/जातिवादी मठाधीश, मूलनिवासी/दलित चिन्तक, सवर्ण चिन्तक, पिछड़ा वादी, हिजड़ावादी, नारीवादी, मर्दवादी, चिन्तक/विचारक/नेता लोग  बड़े पूंजीपतियों/विदेशी साम्राज्यवादियों के गोबर गणेश हैं।

  हमारे देश की भोली-भाली जनता जब तक इन गोबर गणेशों को पूजती  रहेगी तब तक मँहगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, सूदखोरी, जमाखोरी, मिलावटखोरी, नशाखोरी, जमाखोरी... आदि की गुलामी से मुक्ति नहीं मिलेगी।
                                         
*रजनीश भारती*
*जनवादी किसान सभा*

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