मांगि कै खैबो, मसीत को सोइबो:
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तुलसीदास के जीवन का बृहत्तर भाग वाराणसी और अयोध्या में ही गुजरा जहां उन्होंने खलों की भरमार देखी। तीर्थ-स्थलों में ऐसे खलों की भरमार अमूमन रहती ही है। इसमें भी कोई संदेह नहीं कि तुलसीदास जिन खलों की बात करते हैं, उनमें अधिकांश उच्च वर्णों के ही थे, ब्राम्हण वर्ण के सबसे ज्यादा। इन ब्राह्मण खलों ने तुलसीदास को बहुत तंग किया। तरह तरह के नामों से उन्हें पुकारते। और तो और, उन्हें जुलाहा तक कहते। तुलसीदास ने सब दुख झेला पर अपने आत्मसम्मान के साथ कभी समझौता नहीं किया। वे लिखते हैं:
धूत कहो, अवधूत कहो, रजपूत कहो, जोलहा कहौ कोऊ।
काहू की बेटी सों बेटा न ब्यांहब, काहू की जाति बिगारौं न सोऊ।
'तुलसी' सरनाम गुलाम है राम को, जाको मचै सो कहौ कछु ओंऊ।
मांगि कै खैबो मसीत को सोइबो, लैबे को एक न दैबे को दोऊ|
(कवितावली, उत्तरकांड )
(चाहे कोई मुझे धूर्त कहे, चाहे भिखमंगा कहे, चाहे रजपूत कहे, चाहे जुलाहा कहे, मुझे कोई परवाह नहीं। न मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे का ब्याह करना है (तुलसीदास को कोई बेटी या बेटा न था) , न तो किसी की जाति बिगाड़ना है। मेरा नाम तुलसी है, मैं राम का गुलाम हूं। जिसको जो दिल में आये सो कहे। मांग के खा लूंगा, मस्जिद में सो रहूंगा, न किसी से कुछ लेना है, न किसी को कुछ देना है।)
तुलसी ने इन ब्राह्मण ठगों, मिथ्याभासियों, लबारों, पाखंडियों और दुराचारियों पर रामचरितमानस में भीषण प्रहार किया। तुलसी के मुख से ही सुनिए जो वे कलियुग का वर्णन करते हुए इन प्रवंचकों के बारे में कहते हैं:
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन।
कोउ नहिं मान निगम अनुसासन॥1
मारग सोइ जो कहुँ जोइ भावा।
पंडित सोइ जो गाल बजावा॥2
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई।
ता कहुँ संत कहइ सब कोई॥3
सोइ सयान जो परधन हारी।
जो कर दंभ सो बड़ आचारी।।4
जो कह झूँठ मसखरी जाना।
कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना॥5
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी।
कलिजुग सोइ ग्यानी वैरागी॥6
जाकें नख अरु जटा बिसाला।
सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला॥7
असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं।
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहि।8
अर्थ:
1- ब्राह्मण वेदों के बेचने वाले और राजा प्रजा को खा जाने वाले होंगे। वेद के सद्विचारों और उपदेशों को कोई नहीं मानेगा॥
2- ये ब्राह्मण अपने स्वार्थों की सिद्धि के लिए अपने सिद्धांत गढ़ लेंगे और लोगों के बीच गाल बजाते फिरेंगे। ये ठग पंडित (विद्वान) माने जायेंगे।।
3- इन मिथ्यारंभी (आडंबर से भरे) और दंभी लबारों को सब लोग संत समझेंगे॥
4- जो दूसरे का धन अपने वाणी और प्रपंच से ठग लेगा, वही बुद्धिमान कहलाएगा। जो अभिमानपूर्क (अपने 56 इंची सीना को दिखलाते) अपने को त्यागी संत घोषित करेगा, वही सदाचारी माना जायेगा।।
5- जो हमेशा झूठ बोलता रहेगा, और (तरह तरह के परिधानों को पहन) चारों ओर लबारी और मसखरी करता फिरेगा,वह गुणवंत माना जायेगा।
6- जो आचारविहीन होगा और वेदमार्ग (सच्चाई का मार्ग) त्याग कर प्रपंच और झूठ के मार्ग पर चलेगा, कलियुग में वही ज्ञानी और वही वैरागी कहलायेगा।
7- जिसके बड़े-बड़े नख और लंबी-लंबी जटाएँ होंगी, (हृदय चाहे उसका कितना भी पापमय और कलुसित हो,) वही कलियुग में प्रसिद्ध तपस्वी कहलायेगा।।
8- जो अमंगल वेष में रहेगा, रंग बिरंगी आभूषण धारण करेगा, और भक्ष्य-अभक्ष्य (खाने योग्य और न खाने योग्य, यानि गांजा, भांग, दारू आदि) सब कुछ खाता फिरेगा, वही कलियुग में योगी, सिद्ध और पूज्य माना जायेगा।
सभी चराचर जीवों से प्रेम करने वाले, सारे मनुष्यों में सीता और राम को देखने वाले, मस्जिद में फकीरों के साथ बैठने वाले, भूख से मरते ब्रह्महत्यारों को भी भोजन कराने वाले, छूत-अछूत का बिना विचार किये सभी की सेवा करने वाले तुलसीदास पर संकीर्णता में रचे-बसे और छल प्रपंच के साक्षात रूप ब्राह्मणों का गुस्सा स्वाभाविक था।
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