जब उत्पादन और परिवहन के साधन वास्तव में इतना विकसित हो जाते हैं कि ज्वाइंट स्टाक कंपनियों द्वारा प्रबंध उनके लिए अपर्याप्त हो जाता है, और इसलिए जन राज्य का उन्हें अपने हाथ में लेना आर्थिक दृष्टि से अनिवार्य हो जाता है, तभी हम यह कह सकते हैं कि चाहे आज का ही राज्य उन्हें अपने हाथ में ले, यह आर्थिक प्रगति है, एक आगे बढ़ा हुआ कदम है, उत्पादन की तमाम शक्तियों पर समाज के अधिकार की भूमिका है। मगर हाल में जब से बिस्मार्क ने उद्योग-संस्थानों पर राज्य के स्वामित्व की नीति अपनायी है, तब से एक तरह के नक़ली समाजवाद का उदय हुआ है, जो कभी कभी पतित होकर बहुत कुछ चाटुकारिता का रूप ले लेता है और जो झटपट यह फ़तवा दे डालता है कि राज्य द्वारा समस्त स्वामित्व, चाहे वह बिस्मार्क की ही क़िस्म का क्यों न हो, समाजवादी है। अगर राज्य का तम्बाकू के उद्योग का अपने हाथ में लेना समाजवादी है, तो समाजवाद के संस्थापकों में नेपोलियन और मेटरनिख की भी गिनती होनी चाहिए। अगर बेलजियम की सरकार ने अत्यंत साधारण राजनीतिक और आर्थिक कारणों से अपनी मुख्य रेल लाइनों का स्वयं निर्माण किया है, अगर बिस्मार्क ने बिना किसी आर्थिक विवशता के प्रशिया की मुख्य रेल लाइनों को राज्य के नियंत्रण में कर लिया है - सिर्फ़ इसलिए कि युद्ध अवस्था में वह ज्यादा सहूलियत के साथ उन्हें अपने अधिकार में रख सके, मूक पशुओं की तरह रेल कर्मचारियों से सरकार के लिए वोट दिलवा सके, और ख़ासकर अपने लिए आमदनी का एक ऐसा ज़रिया निकाल सके, जो पालमिंट के वोटों पर निर्भर न हो तो यह किसी भी अर्थ में, प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में जानबूझकर या अनजान में समाजवादी कार्य नहीं है। अगर ऐसा न हो तो हमें शाही तिजारती जहाजी कम्पनी को, चीनी मिट्टी के शाही उद्योग को, और यहां तक कि रेजीमेंट के सिलाई विभाग को भी समाजवादी संस्था मानना होगा। यही नहीं, फ्रेडरिक विल्हेल्म तृतीय के राज्य-काल में एक कांइयां आदमी ने गंभीरतापूर्वक यह प्रस्ताव किया था कि राज्य को वेश्यालयों पर अधिकार कर लेना चाहिए। ( *एंगेल्स का नोट ।*, समाजवाद : काल्पनिक और वैज्ञानिक पुस्तक से )
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