'रामकथा: उत्पत्ति और विकास'
यह जानकर आश्चर्य होता है कि किसी ईसाई मिशनरी की सर्वश्रेष्ठ कृति हिंदू देवता राम से संबंधित हो सकती है. लेकिन यह सच है कि ज्यादातर आलोचकों की नजर में फादर कामिल बुल्के रचित 'रामकथा : उत्पत्ति और विकास' उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति है. यूं तो उन्होंने इस विषय पर ही अपनी पीएचडी थीसिस जमा की थी. लेकिन इस विषय पर वे बाद में 18 साल तक काम करते रहे. इस ग्रंथ के बारे में उनके गुरु और हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान डॉ धीरेंद्र वर्मा ने लिखा, 'इसे रामकथा संबंधी समस्त सामग्री का विश्वकोश कहा जा सकता है. वास्तव में यह शोध पत्र अपने ढंग की पहली रचना है. हिंदी क्या किसी भी यूरोपीय या भारतीय भाषा में इस प्रकार का कोई दूसरा अध्ययन उपलब्ध नहीं है.'
राम के बारे में फादर कामिल बुल्के लिखते हैं कि वे वाल्मीकि के कल्पित पात्र नहीं बल्कि एक इतिहास पुरुष थे. उनका मानना है कि उनके बारे में कालक्रम में थोड़ी बहुत चूक हो सकती है, लेकिन वे कोई मिथकीय पात्र नहीं हैं. उन्होंने कई उदाहरणों से साबित किया कि रामकथा अंतरराष्ट्रीय कथा है जो वियतनाम से लेकर इंडोनेशिया तक फैली है. उन्होंने यह भी लिखा कि रामायण केवल धार्मिक साहित्य नहीं बल्कि जीवन जीने का दस्तावेज भी है.
फादर कामिल बुल्के की नजर में हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कवि तुलसीदास थे. तुलसीदास की रचनाओं को समझने के लिए उन्होंने अवधी और ब्रज तक सीखी. उन्होंने रामकथा और तुलसीदास और मानस-कौमुदी जैसी रचनाएं तुलसीदास के योगदान पर ही लिखी थीं.
उन्होंने 1950 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपनी पीएचडी के लिए शोध प्रबंध अंग्रेजी के बजाय हिंदी में ही लिखा. उनसे पहले देश के सभी विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषाओं में शोध प्रबंध लिखने का नियम नहीं था. हालांकि वे खुद अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, लैटिन और ग्रीक भाषाओं में सहज थे. लेकिन उन्होंने अपने गाइड और हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान माता प्रसाद गुप्त से साफ कह दिया कि वे शोध-प्रबंध लिखेंगे तो हिंदी में ही.
हिंदी भाषा के प्रति किसी विदेशी छात्र के इस लगाव ने तमाम लोगों को अचंभित कर दिया. इसका परिणाम यह हुआ कि विश्वविद्यालय को अपने नियम बदलने पड़े. इसके बाद ही देश के दूसरे विश्वविद्यालयों में शोधकर्ताओं को अपनी भाषा में थीसिस जमा करने की अनुमति मिलने लगी.
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