_हरइ शिष्य धन सोक न हरई।_
_सो गुरु घोर नरक महुँ परई॥_
*_(रामचरितमानस ७/९९)_*
```जो गुरु अपने अपने शिष्य से धन की मांग करता है, वह घोर नरक में जा गिरता है। गोस्वामी तुलसीदास का यह वचन अध्यात्म और धर्म की शिक्षा देने वाले गुरुओं/बाबाओं के सन्दर्भ में है। यह चौपाई उन महापतित गुरुओं/बाबाओं के प्रति गोस्वामी जी के क्रोध और घृणा को प्रकट करता है जो धर्म और अध्यात्म का व्यापार करते हैं। जब गोस्वामी जी घोर नरक शब्द का प्रयोग करते हैं , लगता है कि उनकी इच्छा यह है कि ऐसे ढोंगी पंडितों, बाबाओं, धर्मगुरुओं को खौलते हुए तेल की कड़ाही में डाल दिया जाए। यह निर्भीकता और स्पष्टता गोस्वामी जी की विशेषता है जो उन्हें उस काल के धूर्त और ठग पंडितों से अलग करती है। साथ - साथ तुलसीदास यह भी कहते हैं कि ऐसे भ्रष्ट पंडित जो शिष्य के धन का हरण करते हैं, धन देने वाले यजमान के शोक का हरण करने में असमर्थ होते हैं। निष्कर्ष यह कि धूर्तों, मक्कारों, नक्कालों और अंधविश्वासी महात्माओं से बचें! ज्ञान, विवेक , नियमित अध्ययन और तर्क को वरीयता दें।```
*_अध्यात्म के पवित्र सूत्र_*
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