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Friday, 13 January 2023

नया साल किसे मानेंगे?

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भारत के लोग साल में दो तीन बार नया साल मनाते हैं इसका कारण यहाँ पाए जाने वाले कैलेंडरों की विविधता है । इसके अलावा तीज त्योहार भी   कई तरह से मनाते हैं ।

तीज - त्योहारों की बात आई है तो  सबसे पहले चाँद के कैलेण्डर के बारे में बात करना ज़रूरी है । यह तो आप जानते ही होंगे कि हिन्दू धर्म के अलावा इस्लाम में भी सारे त्योहार चांद के घटने - बढ़ने पर ही आधारित होते हैं ।

इसका कारण यह है कि मनुष्य ने सबसे पहले आकाश  में चाँद को घटते बढ़ते देखा । सूरज तो रोज एक जैसा ही दिखता था । इसलिए  चांद का कैलेंडर ही मनुष्य का पहला कैलेंडर बना। 

आपको ज्ञात होगा कि बहुत  सारे तीज त्यौहार चाँद पर ही आधारित हैं । 

*चाँद का वर्ष* 354-355  दिनों का होता है जबकि सूरज का साल यानि सौर वर्ष 365-366 दिनों का होता है ।  

दोनों कैलेण्डर में 10-11  दिनों का अंतर है । हम मकर संक्रांति हर साल 14-15 जनवरी को मनाते  हैं क्योंकि यह सूर्य के केलेंडर पर आधारित है लेकिन चाँद पर आधारित कैलेण्डर में ईद और दीवाली हर साल 10 दिन पहले आ जाती है । बल्कि हर त्योहार दस दिन पहले आता है ।

जैसे 2012  में दिवाली 13  नवम्बर को आई थी ।
 2013 में 3 नवम्बर को आई थी 
और 2014  में 23 अक्टूबर को आई थी ।

देखिये सभी में 10-11 दिन कम होते गए , इस घटते क्रम से इसे 2015 में 12 या 13 अक्तूबर को आना था लेकिन 2015 में यह 2012 की दीवाली से मिलती -जुलती तारीख 11 नवम्बर को आई ।

*ऐसा क्यों हुआ?*

 इसका कारण यह है कि पर्व में प्रतिवर्ष 10-11 दिन कम होते जाते हैं और फिर  तीन साल बाद जब एक माह के 30-31 दिन जमा हो जाते हैं हर चौथे साल में 1 माह जोड़ दिया जाता है ,इसे अधिक मास या खर मास कहते हैं ।

 और फिर यह क्रम पूर्ववत चलने लगता है ।  लेकिन हिजरी केलेंडर में तीन साल बाद एक माह नहीं जोड़ा जाता इसलिए  ईद हर साल 10-11  दिन पहले आ जाती है ।  जैसे 2012 में 20 अगस्त को आई , 2013 में 9 अगस्त को आई , 2014 में 29 जुलाई ,2015  में 19 जुलाई , और 2016 में 8 जुलाई को आई  ।  अगले साल फिर इसमें दस या ग्यारह  दिन कम हो जायेंगे ।

*ऐसा कैसे हुआ?*

यह कुछ इस तरह हुआ कि डेढ़ हजार साल पहले जब हिजरी कैलेण्डर बना तब हजरत पैगम्बर ने एक बैठक ली और तय किया कि सूर्य के कैलेण्डर की तुलना में वे हर साल इस कैलेण्डर में दस दिन कम करते जायेंगे । ऐसा कुरआन में उल्लेख है ।

 कैलेण्डरों  की यह व्यवस्था हमारे पूर्वजों द्वारा की गई है और अब तक उसका पालन हो रहा है । हिन्दू हों या मुस्लिम हम धार्मिक त्योहारों में चाँद के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । और यह एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं । जो एक के लिए दूज का चांद है वह दूसरे के लिये ईद का चांद है ।

हम भले ही अपनी अपनी पद्धति को लेकर एक दूसरे से लड़ें लेकिन हम सभी अपनी भौतिक जीवन शैली के अनुसार ग्रेगोरियन यानि सूर्य के कैलेण्डर का इस्तेमाल करते हैं । जन्मदिन सूर्य के कैलेंडर से मनाते हैं , यात्रा की तारीख सूर्य के कैलेंडर से तय होती है , बच्चों की परीक्षाओं का टाइम टेबल सूर्य के कैलेंडर से बनता है । इसमें धर्म का न कोई हस्तक्षेप है न कोई मदद ।

दुनिया के सारे धर्मो के लोगों के लिए चाँद और सूरज  एक हैं , ऐसा नही हो सकता कि हम अपने अपने चाँद सूरज पैदा कर लें । अफसोस यह फिर भी हमने उन्हें अपनी सुविधा के अनुसार बांट लिया है । चाँद सूरज तो भौतिकीय परिघटना के अनुसार पैदा हुए लेकिन हमने अपने हिसाब से उनके जन्म की अलग अलग कथा गढ़ ली ।

जब प्रकृति सब के लिए एक जैसी है ,चाँद सूरज सबके लिए एक जैसे हैं , ग्रह नक्षत्र सबके लिए एक जैसे हैं तो फिर क्यों हम लोग अपने बनाये धर्म के नाम पर अपने अपने देवी देवता ,  पूजा पद्धति , परम्परा , रीति रिवाज , कर्म काण्ड और तीज त्योहारों को लेकर आपस में  लड़ते रहते हैं ? अगर शनि आपका कुछ बिगाड़ सकता है तो अमेरिका वालों का क्यों कुछ नहीं बिगाड़ता ?

*फिर यह उनका नया साल है , यह हमारा नया साल है ,यह उनका त्योहार है यह हमारा त्योहार है , यह उनका खानपान है यह हमारा खानपान है , यह उनकी वेशभूषा है , यह हमारी वेशभूषा है..क्या है यह सब?*

फ़र्ज़ करें, अगर हम लोगों को आपस मे लड़ता  देखकर जिस दिन चाँद सूरज निकलना बंद कर देंगे , सब समझ में आ जायेगा ।

(घबड़ाये नहीं ऐसा नही होगा यह कवि कल्पना है । 😀

*लेकिन हम मनुष्य लोग आपस मे धर्म के नाम पर लड़ते हुए पूरी तरह खत्म हो जाएंगे ..यह कवि कल्पना नहीं है ।*


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*शरद कोकास*
की शीघ्र प्रकाश्य पुस्तक
*मस्तिष्क की सत्ता* से
8871665060

【वैज्ञानिक चेतना के प्रसार हेतु कृपया मित्रों और अन्य समूहों को भी यह संदेश फॉरवर्ड करें 】

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