#दोस्तों इतिहास के पन्नों को पलट कर देखें तो बहुत कुछ सीखने को मिलता है। हमारे देश में अंग्रेजों, मुगलों और अन्य बहुत राजाओं ने राज किया, हमारे देश को लूटा गया और हमें गुलाम बनाया गया, लेकिन किसी भी आक्रमणकारी ने कोई भी परिवर्तन नहीं लाया, पर अंग्रेजों ने राज करने के साथ-साथ कुछ परिवर्तन भी लाए हैं। जो कि इस प्रकार से है👇
#ब्राह्मण_जज_पर_रोक
सन 1919 ईस्वी में अंग्रेजों ने ब्राह्मणों के जज बनने पर रोक लगा दी थी, अंग्रेजों का कहना था कि इनका चरित्र न्यायिक नहीं होता। ये लोग हिंदू धर्म ग्रंथ मनुस्मृति वर्ण व्यवस्था जाति आधार पर न्याय करते हैं।
#सरकारी_सेवाओं_में_प्रतिनिधित्व
अंग्रेजों ने शुद्र वर्ण की जातियों को सरकारी सेवाओं में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट के माध्यम से प्रतिनिधित्व देने की व्यवस्था की।
#गंगा_दान_प्रथा
शूद्रों के पहले लड़के को ब्राह्मण गंगा में दान करवा दिया करते थे क्योंकि वो जानते थे कि पहला बच्चा हष्ट पुष्ट होता है। अंग्रेजों ने इस प्रथा को रोकने के लिए 1835 में एक कानून बनाया था।
#नववधू_शुद्धीकरण_प्रथा
1819 से पहले जब किसी शूद्र की शादी होती थी तो ब्राह्मण उसका शुद्धीकरण करने के लिए नववधू को 3 दिन अपने पास रखते थे, इस प्रथा को अंग्रेजों ने 1819 ईस्वी में बंद करवा दिया था।
#सम्पत्ति_का_अधिकार
अंग्रेजों ने अधिनियम 11 के तहत शूद्रों को भी संपत्ति रखने का अधिकार दिया, पहले शूद्रों को संपत्ति एवं शिक्षा से वंचित रखा जाता था।
#देवदासी_प्रथा
अंग्रेजों ने देवदासी प्रथा पर रोक लगाई थी, पहले मंदिरों में देवदासी रखी जाती थी जो कि दक्षिणी भारत में आज भी चोरी चुपके कहीं-कहीं पर जारी है, छोटी सी उम्र में लड़कियों को मंदिर में दान किया जाता था और 10-12 वर्ष की हो जाने पर पुजारी उनके साथ शारीरिक शोषण करना शुरू कर देते थे और उनसे जो बच्चा पैदा होता था उसे कोई भी पुजारी अपना नाम देने के लिए तैयार नहीं होता था और उन्हें हरि की संतान कहकर हरिजन नाम दिया जाता था, जो कि आज सुप्रीम कोर्ट ने हरिजन शब्द को प्रतिबंधित कर दिया है।
#सती_प्रथा_का_अंत
और सति प्रथा बंद करवाने मैं भी अंग्रेजों का काफी योगदान रहा है, पहले पति के मर जाने पर उनकी पत्नियों को जलती हुई चिता पर सती होना पड़ता था। जिसे 4 दिसंबर 1829 को ब्रिटिश सरकार ने रोक लगा दी थी।
#चरक_पूजा
अंग्रेजों ने 1863 ईस्वी में चरक पूजा बंद कराई थी, इसमें ये होता था कि कोई पुल या भवन बनने पर शूद्रों की नर बलि दी जाती थी। उनकी मान्यता थी की नर बलि देने से पुल और भवन ज्यादा समय तक टिके रहते हैं।
#कुर्सी_पर_बैठने_का_अधिकार
शूद्रों को अंग्रेजों ने 1835 ईस्वी में कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया था, इससे पहले शूद्र कुर्सी पर नहीं बैठ सकते थे।
#शिक्षा_का_अधिकार
अंग्रेजों ने सबके लिए शिक्षा के दरवाजे खोले। पहले हिंदू धर्म ग्रंथ मनुस्मृति के अनुसार महिलाओं एवं शूद्र जातियों sc.st.obc को शिक्षा का अधिकार नहीं था। अंग्रेजों ने सबके लिए शिक्षा सम्मान कर दी।
अतः अंग्रेजों ने महिलाओं और शूद्र/अतिशूद्र जातियों के हितों को ध्यान में रखते हुए अनेक सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक सुधार किये हैं, महात्मा ज्योतिबा फुले ने तो यहाँ तक कहा कि अंग्रेज भारत में महिलाओं एवं शूद्र अतिशूद्र लोगों के लिए भाग्यविधाता बनकर आए थे, उन्हीं की वजह से मैं पढ़ पाया हूं। और अपनी पत्नी सावित्रीबाई को भी पढ़ा पाया हूं।
और अंग्रेजों के रहते हुए संविधान निर्माता बाबा साहेब डॉ भीमराव अंबेडकर जी ने 25 दिसंबर 1927 को विषमता वादी कानून मनुस्मृति को भी जला दिया था। और 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू किया गया, जिसमें सभी जाति धर्म के लोगों को समानता का अधिकार दिया गया।
और आज कुछ पढ़े लिखे लोगों का मानना है कि हिन्दू सनातन धर्म में जातिवाद, छुआछूत नरबलि, पशुबलि, सतीप्रथा, देवदासी प्रथा, बाल विवाह, नियोगप्रथा, आदि कुप्रथाएं पुरानी बातें हैं जबकि पढ़े लिखे लोगों को ये भी अच्छी तरह से सोचना चाहिए था कि तंत्र मंत्र यज्ञ पूजा पाठ ये भी तो पुरानी बातें हैं।
लेकिन आज अनपढ़ तो अनपढ़, कुछ पढ़े-लिखे लोग भी उन्हीं देवी देवताओं के भक्त बने हुए हैं जिन देवी-देवताओं ने महिलाओं और शूद्रों को अछूत समझा और उन्हें कभी अपने नजदीक तक नहीं आने दिया, उन लोगों को निर्जीव पत्थर की मूर्तियों में भगवान नजर आते हैं, माँ के रूप में गाय नजर आती है, निर्मल बाबा की लाल हरी चटनी में कृपा नजर आती हैं, आशाराम बापू को सन्त समझ लेते हैं, और हर संस्कार ब्राह्मणों से करवाते हैं और ज्योतिष में विश्वास करते हैं, और जो उपाय ब्राह्मण बताता है उसे बिना सोचे समझे मान लेते हैं, और जो ब्राह्मण मांगता है उससे बढ़ चढ़कर दान के रुप में दे देते हैं।
जब कि सूई से लेकर तागा, और मोबाइल से लेकर हवाई जहाज, यह सब विज्ञान की देन है। और हमें समानता से लेकर हर हक अधिकार भी संविधान ने दिए हैं। ना की किसी देवी-देवताओं ने, इसलिए विशेषकर पढ़े लिखे लोगों को अब समझ लेना चाहिए और अपने आप एवं अपने परिवार को शिक्षित करने में थोड़ा ध्यान देना चाहिए। और अंधविश्वास से हटकर मानवतावादी वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले समाज का निर्माण कर लेना चाहिए।
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