जमाना बदल गया है:
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छल प्रपंच से दूर रहने वाले राम, हनुमान, शिव या ऐसे अन्य देवगण लोकचेतना की ही उपज हो सकते हैं। इन देवगणों से संबंधित कथाएं यह दिखाती हैं कि प्राचीन भारत के सीधे सादे लोगों ने किस प्रकार के देवों और आदर्शों की चाहत और संकल्पना की थी।
पर अब जमाना बदल गया है। बाकलम अंजनीकुमार सिंह जी,
"ग्रंथों में वर्णित सारे अपराध करके हम गंगा स्नान व शंखनाद से स्वरचित शिव को पूजने लगे हैं। राम अब शबरी के बेर नहीं खाते और न ही शिव बिना घर बार के हर जगह रहते हैं। अब तो राम गरीब के कंठ से निकल कर रेड कार्पेट पर चलकर सत्ता के भोंपू बन गये हैं। शिव सोने के महल में रहने लगे हैं। कुबेर के आदेश पर वह अब भांग धतूरा छोड़कर व्हिस्की पीने लगे हैं। तीन सौ से अधिक की फीस पर बिना क्रम के ही दर्शन देने लगे हैं।वह अब बेल पत्र से प्रसन्न नहीं होते। दूसरों का छीन कर किये गये मदिराभिषेक से मुदित होने लगे हैं। इसी तरह भगवती भी अब चंड-मुंड का वध नहीं करतीं,क्योंकि अब वे ही उनकी मूर्तियों पर नवलखा हार चढ़ाने लगे हैं। हनुमान जी अब निरंतर राम की सेवा में नहीं रहते, वे तभी उपस्थित होते हैं जब कोई बड़ा घोटाले में फंसकर 'जयश्रीराम' चिल्लाता है।"
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