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Monday, 13 June 2022

लेनिन ' राज्य के बारे में ' . 11 जुलाई , 1919

कोई जनतंत्र चाहे किसी भी रूप में अपने को छुपाये , उसे सबसे जनवादी जनतंत्र होने दीजिए , पर अगर वह बुर्जुआ जनतंत्र है , यदि उसमें जमीन पर , मिलों और कारखानों पर निजी स्वामित्व बना रहता है तथा निजी पूंजी पूरे समाज को उजरती दासता में रखती है , याने जनतंत्र में उन बातों की पूर्ति नहीं होती , जिनकी हमारी पार्टी के कार्यक्रम तथा सोवियत संविधान में घोषणा की गई है , तो वह राज्य एक द्वारा दूसरे का उत्पीड़न कराने वाली मशीन है। और हम यह मशीन उस वर्ग के हाथों में सौंप देंगे ,जिसे पूंजी की सत्ता को उलटना होगा। हम इन सब पुराने पूर्वाग्रहों को ठुकरा देंगे कि राज्य सर्वजनीन समानता  है - यह धोखा है : जब तक शोषण है ,तब तक समानता नहीं हो सकती । जमींदार मजदूर के, भूखा व्यक्ति पेट भरे व्यक्ति के समान नहीं हो सकता। इस मशीन को , जिसे राज्य कहते हैं , जिसके आगे लोग अंधविश्वासपूर्ण आदर  भावना के साथ खड़े होते हैं तथा इन पुरानी दंतकथाओं पर विश्वास करते हैं कि राज्य सर्वजनीन सत्ता है - इस मशीन को सर्वहारा वर्ग फेंक देता है और कहता है : यह बुर्जुआ झूठ है । हमने यह मशीन पूंजीपतियों से छीन ली है ,इसे अपने पास रख लिया है । इस मशीन या डंडे से हम समस्त शोषण को नष्ट करेंगे और जब संसार में शोषण की संभावना नहीं रह जायेगी , जमीन के स्वामी , कारखानों के स्वामी नहीं रह जायेंगे , ऐसा नहीं होगा कि एक छककर भोजन किये हुए हो और दूसरा भूखा मर रहा हो - केवल तब , जब इसकी कोई संभावना नहीं रह जायेगी , हम इस मशीन को कूड़े के ढेर में फेंक देंगे । तब राज्य नहीं रहेगा , शोषण नहीं रहेगा । यह है हमारी कम्युनिस्ट पार्टी का दृष्टिकोण ।
‌ - लेनिन     ' राज्य के बारे में '                 11 जुलाई , 1919                       स्वेर्दलोव विश्वविद्यालय में व्याख्यान

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