जल, जमीन और जंगल की लड़ाई और द्रौपदी मुर्मू
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राज कुमार शाही
सदस्य, प्रगतिशील लेखक संघ, पटना।
आज देश में आदिवासी समाज के उपर अभूतपूर्व रूप से दमन किया जा रहा है इस समाज में सबसे अधिक आक्रोश सरकार की जनविरोधी आर्थिक नीतियों को लेकर है। जंगल जो आदिवासी समाज का जीविका का सबसे बड़ा साधन रहा है उसे कारपोरेट घरानों के हाथों बेचा जा रहा है। देश में जब से नयी आर्थिक नीतियों को लागू करने की दिशा में आगे बढ़ना शुरू किया है उसके बाद सबसे अधिक दोहन आदिवासियों का किया जाता रहा है। इसके लिए एक से बढ़कर एक कानून बनाकर जंगल एवं उनके जीविका से वंचित करने का कुत्सित प्रयास तथाकथित विकास के इस मॉडल को लेकर किया गया है। इसके चलते आदिवासी समाज लगातार आंदोलित होता रहा है इसके कारण उन्हें अपनी जान देनी पड़ी है। द्रौपदी मुर्मू झारखंड में राज्यपाल के रूप में अपनी जवाबदेही बड़े हीं गर्व के साथ निभाई है इस दौरान न जाने कितने आदिवासियों को नक्सली कहकर जेलों में बंद किया गया साथ ही साथ न जाने कितने को राजद्रोह कानून लगा आजीवन जेलों में बंद कर दिया गया लेकिन इन्होंने राजधर्म का पालन किया। कभी भी आदिवासी समाज के पक्ष में बोलते हुए या कहें उनके हक अधिकारों की लड़ाई लड़ते हुए उन्हें नहीं देखा गया।फादर स्टेन के उपर राजद्रोह कानून एवं पत्थलचट्टी में आदिवासियों के आंदोलन में भी आंदोलन कर रहे आदिवासियों का साथ नहीं दिया अपितु उनके उपर विभिन्न दमनकारी क़ानून को लागू करने में पूरी मजबूती के साथ खड़ी रही। उड़ीसा में भी अपने मंत्रित्व काल में आदिवासियों के उपर गोली चलाई गई और मूकदर्शक बनी रही। आज जब फिरकापरस्त ताकतें अपने विचारों को लेकर काफी उत्साहित हैं उन्हें अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित कर इस समुदाय के उपर व्यापक पैमाने पर दमन का रोड़ मैप तैयार कर लिया है। हसदेव अरण्य बचाओ आंदोलन छत्तीसगढ़ के दवाब में करीब दो लाख पेड़ों को काट कर अडानी को सौंपने की कारवाई को लेकर फिलहाल भारी विरोध के चलते रोक दिया गया है लेकिन आंदोलनकारियों को आज भी शंका बनी हुई है। पर्यावरण संकट जिसके कारण जलवायु परिवर्तन आने वाले दिनों में पूरे मानव समाज को गहरे संकट में डाल देगा। इससे सबसे अधिक प्रभावित होने वाला तबका मजदूर, किसान और आदिवासी समाज ही होगा। वैसे भी रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति रहते हुए दलितों के उपर दमन बढ़ा है। आज पहचान की राजनीति से ऊपर उठकर मुद्दों की राजनीति करने की जरूरत है। लोगों के अंदर व्यापक पैमाने पर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसी बुनियादी सुविधाओं का निजीकरण किए जाने को लेकर गुस्सा है।आम आवाम अपनी मूल भूत आवश्यकताओं को पूरा करने में अमानुषिक रूप से परिश्रम करने को विवश है फिर भी वह पूरा कर पाने में अक्षम है, इसके चलते युवाओं में हताशा और निराशा की भावना इस कदर हावी हो गई है कि वह आत्महत्या करने जैसी कदम उठाने को विवश है। आज आर्थिक नीतियों में व्यापक पैमाने पर बदलाव किए बिना आखिर समाज के बड़े हिस्से को जो हाशिए पर चले गए हैं उन्हें बेहतर जीवन जीने की दिशा में आगे नहीं बढ़ा जा सकता है।हाल में वैश्विक स्तर पर सबसे खुशहाल देशों की सूची में भारत का स्थान अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान एवं बंगलादेश से भी नीचे है। वर्ल्ड हैप्पीनेस रिपोर्ट 2022 के मुताबिक फिनलैंड सबसे खुशहाल देश है जबकि अफगानिस्तान सबसे निचले पायदान पर है। इस रिपोर्ट में अमेरिका 16वें स्थान, चीन 72 वें स्थान, बांग्लादेश 94वें स्थान, पाकिस्तान 121 वें स्थान पर जबकि भारत 136 वें स्थान पर रखा गया है। फिनलैंड जैसे देश में खुशहाली का राज़ यह है कि इस देश में शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाएं सरकारी क्षेत्र में है और यह सार्वभौमिक रूप से निशुल्क है।
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