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Monday, 6 June 2022

अक्टूबर क्रान्ति और रूसी कम्युनिस्टों की कार्यनीति का एक अंश : मंथन अंक-- अक्टूबर क्रान्ति विशेषांक (तृतीय ) ------------------------------------------------------------------------- लेखक : स्टालिन


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इसमें सन्देह नहीं कि विश्व क्रान्ति के विकास के रास्ते उतने ही सीधे नहीं है जितने वे पहले एक देश में क्रान्ति की विजय से पहले, विकसित साम्राज्यवाद के अवतरण से पहले---- जो "समाजवादी क्रान्ति की पूर्व अवस्था" है---- मालूम पड़े हो। कि एक नयी शक्ति समाने आयी है जैसेकि पूंजीवादी देशों के अनुमान विकास का नियम वह विकसित साम्राज्यवाद की परिस्थितियों में चालू होता है और वह सशस्त्र टक्करों की अवश्यम्भाविता, पूंजी के विश्वव्यापी मोर्चे का आम रूप से कमजोर होना और इकाई देशों में समाजवाद की विजय की संभावना बताता है। इसलिए कि एक नयी शक्ति समाने आयी जैसेकि विशाल सोवियत देश वह पश्चिम और पूर्व के बीच दुनिया के आर्थिक शोषण के केन्द्र और औपनिवेशिक उत्पीड़न के क्षेत्र के बीच स्थित है। यह देश अपनी मौजदूगी की ही वजह से सारी दुनिया को क्रान्तिकारी बना रहा है।

विश्व क्रान्ति के विकास के रास्तों का अध्ययन करने में ये तमाम शक्तियां वे हैं (कम महत्वपूर्ण की छोड़कर) भुलाया नहीं जा सकता। पहले यह आम तौर पर सोचा जाता था कि समाजवाद के तत्वों के धीरे-धीरे पकने के जरिये क्रान्ति विकसित होगी-- सबसे पहले ज्यादा विकसित, ज्यादा बड़े देशों में । अब इस विचार में काफी सुधार किया जाना चाहिए। "अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों की जो व्यवस्था अब उभर आयी है। लेनिन ने कहा है, "वह ऐसी व्यवस्था है जिसमें यूरोप के राज्यों में से एक, उदाहरण के लिए जर्मनी विजयी देशों द्वारा गुलाम बनाया गया है। और फिर अनेक राज्य यानी पश्चिम के सबसे पुराने राज्य इस स्थिति में है कि अपनी विजय का लाभ उठाकर अपने दबे शोषित वर्गों को अनेक मामूली सुविधाएं दें। ये सुविधाए हालांकि मामूली है मगर फिर भी वे उन देशों में क्रान्तिकारी आन्दोलन को पीछे धकेलती हैं और समाजिक शान्ति का कुछ दिखावा खड़ा करती है।

साथ ही साथ ठीक पिछले साम्राज्यवादी युद्ध के परिणामस्वरूप अनेक-अनेक देश-पूर्व भारत, चीन आदि-अपनी समाधि से पूरी तरह हिल गये है। उनका विकास निश्चय रूप से आम यूरोपीय पूंजीवादी ढंग पर होने लगा। आम यूरोपीय उथल-पुथल ने उन पर असर डालना शुरू कर दिया है। और अब यह सारी दुनिया के सामने साफ है कि ये विकास की ऐसी प्रक्रिया में खिच आये हैं जो लाजिमी तौर पर पूरे विश्व-पूंजीवाद में संकट पैदा करेगी।"

इस बात को देखते हुए और इस बात के सम्बन्ध में पश्चिमी यूरोप के पूंजीवादी देश समाजवाद की तरफ अपने विकास को पूरा कर रहे हैं। उस तरह नहीं जैसे हमने पहले उम्मीद की थी। ये उसे समाजवाद के धीरे-धीरे पकने के जरिये पूरा नहीं कर रहे हैं। वे पूरा कर रहे हैं कुछ देशों के दूसरों द्वारा शोषण के जरिये साम्राज्यवादी युद्ध में पहले हारने वाले देशों के जरिये और उसके साथ-साथ पूरे पूर्व (पूरब) के शोषण के जरिये दूसरी ओर ठीक पहले साम्राज्यवादी युद्ध के परिणामस्वरूप पूर्व (पूरब) निश्चय रूप से क्रान्तिकारी आन्दोलन में खिंच आया है। यह निश्चय रूप से विश्व क्रान्तिकारी आन्दोलन के आम प्रवाह में प्रिंच आया है।" (लेनिन, संक्षिप्त ग्रन्थावली भाग 9, पृष्ठ 398-99 )

इसके साथ हम ये बातें भी जोड़ सकते हैं विजयी देशों द्वारा न सिर्फ हारे हुए देशों और उपनिवेशों का शोषण हो रहा है, बल्कि कुछ विजयी देश भी विजयी देशों में सबसे शक्तिशाली देश अमरीका और ब्रिटेन के हाथों आर्थिक शोषण के घेरे में आ गये हैं। इन तमाम देशों के बीच अन्तरविरोध विश्व साम्राज्यवाद के क्षय में अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। इन अन्तर्विरोधों के साथ-साथ इनमें से हर देश के भीतर अत्यन्त गंभीर अन्तर्विरोध मौजूद है और बढ़ रहे हैं। इन देशों की बगल में सोवियतों के महान जनवाद की मौजूदगी की वजह से ये तमाम अन्तरविरोध ज्यादा गम्भीर और गहरे होते जा रहे हैं। अगर इस सब को ध्यान में लिया जाय तो अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थिति के विशेष स्वरूप की तस्वीर करीब-करीब पूरी हो जायेगी।

लेखक : -स्टालिन
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मंथन, अक्टूबर क्रांति विशेषांक, अंक-3

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