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Tuesday, 14 June 2022

अन्तर्धार्मिक शादी

"वसुधैव कुटुंबकम्" वाली भारतीय संस्कृति में तो इंसान के तौर पर सभी बराबर हैं। प्यार करना कोई ग़लत नहीं है। मगर वर्गों में बँटे समाज में ये तो एक जुमला भर रह जाता है।

  पिछले हफ्ते अम्बेडकर नगर के एक गाँव में गए थे, हमारे साथी ने बताया कि बगल वाला गाँव ब्राह्मणों का है, ज्यादातर लोग गरीब हैं। उस गाँव की चार-पाँच लड़कियां मुसलमान लड़कों के साथ प्यार करके भाग कर शादी कर ली हैं, जिससे उस गाँव के हिन्दुओं में मुसलमानों के खिलाफ नफरत बहुत ज्यादा है। और दामाद बन चुके वे लड़के अगर मिल जायें तो नफरती भीड़ उनका क्या हाल बना देगी, यह समय ही बताएगा। यह नफरत यूँ ही नहीं है। ऐसे लड़की पक्ष वाले गरीब हैं तो उनको सोशल बायकाट झेलना पड़ता है।

  अब जरा शोषक वर्ग के बड़े नेताओं की ओर देखिए, उनमें भी कई नेताओं की बहन-बेटियाँ मुसलमानों के साथ प्यार करके शादी भी कर चुकी हैं, बाकायदा उनका अरेंज मैरेज हुआ है, और दामाद की खातिरदारी में भी वे कोई कमी आज तक नहीं करते।  वे बड़े नेता लोग कभी भी अपने विधर्मी बहनोईयों व दामादों से घृणा नहीं करते, उनसे उनके अच्छे संबन्ध हैं।  इनमें से कई नेता हिन्दू धर्म के स्वयंभू ठेकेदार भी बने हुए हैं। कोई भी इन नेताओं का  सोशल बायकाट नहीं करता।

 ये फर्क क्यूँ है? अन्तर्धार्मिक शादी करके एक व्यक्ति सोशल बायकाट झेलता है, और दूसरा व्यक्ति धर्म का ठेकेदार बन जाता है। ऐसा क्यूँ? दोनों तो हिन्दू ही हैं। फिर यह  फर्क क्यूँ है।
 दरअसल यह फर्क है- अमीर और गरीब का, जिसे नजरअंदाज करके गरीब लोग जाति- धर्म के नाम पर आपस में लड़ रहे हैं, जब कि  अमीर लोग धार्मिक भेदभाव भुलाकर एक हो गए हैं। वे गरीबों को धर्म के नाम पर लड़ाने के लिए धर्म के ठेकेदार बन बैठे हैं।

दरअसल आर्थिक रूप से सभी बराबर नहीं हैं, इस लिए अमीरों को तो धर्म का भेदभाव भुला कर आपस में प्यार करने की पूरी छूट है जब कि गरीबों को जाति-धर्म का भेदभाव भुला कर आपस में प्यार करने की छूट कानून तो देता है मगर समाज नहीं देता।  पूंजीवादी साम्राज्यवादिओं का कानून तो छूट देता है मगर सामाजिक बहिष्कार की सामंती परम्परा इस कानून पर भारी पड़ रही है। दरअसल संविधान में एक तरफ विधि के समक्ष समता की लफ्फाजी है तो वहीं दूसरी तरफ जाति धर्म के नाम पर नफरत फ़ैलाने वालों को भी कानून ने ढील दे रखी है। यह कानून साव से कहता है जागो, चोर से कहता है लूटो।
           रजनीश भारती
       जनवादी किसान सभा


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