आज हमारे सांगठनिक साथी,कम्युनिस्ट आंदोलन के एक कर्मठ कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी प्रिय दीपक कुमार चौधरी (जिन्हें हम उनके नाम के प्रथमाक्षरों के अनुसार डी०के० सी० कहा करते थे) की सातवीं वर्षी है।वे अक्सर पेट संबंधी तकलीफ़ों से ग्रस्त रहा करते थे और इसके लिए विशेषज्ञों और अस्पताल-दर-अस्पताल सलाह लेने में कोई कोताही नहीं करते थे पर बीमारी की सही पहचान में काफ़ी देर हो गई।वे काफ़ी दिनों तक ग़लत डायग्नोसिस के शिकार होते रहे।दरअसल उन्हें हेपाटाइटिस बी० का संक्रमण था जिससे वे लिवर सिरोसिस की गंभीर अवस्था में चले गए।इसके लिए उनके लिवर प्रत्यारोपण का निर्णय लिया गया।पर दिल्ली में लिवर प्रत्यारोपण के उपरांत उनके पूर्ण स्वस्थ होने की उनके साथियों और उनके परिजनों की आशा फलीभूत न हो सकी और अंततः 3 जून 2015 को दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में लिवर प्रत्यारोपण के उपरांत इलाजरत अवस्था में ही उनका देहांत हो गया।महज़ 53 वर्ष की आयु में ही उनके असामयिक निधन से हमारे सांगठनिक कार्यों और कम्युनिस्ट विचारों के प्रचार-प्रसार के अभियान को भारी क्षति पहुँची है।आज उनके देहावसान के सात वर्षों बाद इस नुक़सान को हम और शिद्दत से महसूस कर रहे हैं।ख़ासकर सांगठनिक पत्रिका के वितरण और प्रसार में तो उन्हें महारत हासिल थी।इस कार्य में उनके मनोयोग की बराबरी करना मुश्किल है।'जीवन चर्चा'पत्रिका के लिए वे संजय के नाम से रिपोर्ट और मृत्युंजय के उपनाम से कुंडलियाँ भी लिखा करते थे।वे ग़ज़ब जीवट के आदमी थे।हिंदी साहित्य में स्नातकोत्तर और शिक्षक डी०के०सी० ने अपने आरंभिक विद्यार्थी जीवन में परिवार में अर्थाभाव के कारण बर्फ़ की सिल्लियाँ तक अपनी पीठ पर ढोयी थीं।वे हमेशा प्रसन्नचित रहते थे।कम्युनिस्ट विचारों के प्रभाव में आने के बाद वे इस पथ से कभी विचलित नहीं हुए और निरंतर इस पथ पर बढ़ते रहे।बहुत याद आती है बैठकों और सभाओं में उनकी गुरु-गंभीर आवाज़ और उनकी उन्मुक्त हँसी।साथी डी०के०सी०को लाल सलाम।
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