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रूस में 25 अक्टूबर 1917 को सम्पन्न की गयी समाजवादी क्रान्ति का सौवी वर्ष चल रहा है। इस क्रान्ति के शताब्दी वर्ष के अवसर पर कहीं-कहीं छिटपुट तरीके से कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। 1917 की अक्टूबर क्रान्ति रूस के मेहनतकश वर्ग द्वारा सर्वहारा की अगुवाई में जारशाही पूंजीवादी राज सत्ता को उखाड़कर मानव इतिहास में पहली बार मजदूर किसान राज कायम किया गया था और लेनिन के नेतृत्व में सर्वहारा तानाशाही कायम करके समाजवादी निर्माण की आधार शिला रखी गयी थी। अक्टूबर क्रान्ति के प्रबल आवेग ने सारी दुनियाँ में हलचल मचा दी थी। एक और
दुनियाँभर का शोषक-शासक वर्ग राजशाही, पुरोहितशाही, सामंतशाही, पूजीवादी और उनके सहयोगी, समर्थक, सिपहसालार जो सदियों से सामान्य जन, किसानों, मजदूरों का शोषण उत्पीड़न करते आ रहे थे। उन्हें अपनी शोषणकारी शासन व्यवस्था बचाने का संकट दिखाई देने लगा तो दूसरी ओर दुनियाँ भर के विकसित व स्वतन्त्र एवं पिछड़े व गुलाम औपनिवेशिक देशों में शोषित, उत्पीड़ित किसान, मजदूर, छोटे-मोटे कारोबारी, दुकानदार, नौकरी पेशा वाले, सामान्य जन अपनी जलालत भरी जिन्दगी से छुटकारा पाने के लिए पूरे जोशो खरोश के साथ लाभबन्द होने लगे। विश्व के विभिन्न देशों में शोषकों से मुक्ति के लिए स्वतंत्रता आंदोलनों को इस क्रान्ति से प्रेरणा व दिशा मिली। संघर्ष होने लगे। क्रांतियों फूटने लगी। इन्हें दबाने कुचलने और तोड़ने के लिए शासक पूजीपति वर्ग राजनीतिक, कूटनीतिक और सैन्य साजिशें करने लगे। फिर भी यह 1917 की अक्टूबर क्रान्ति का ही प्रभाव था कि 1950 आते-आते एक तिहाई दुनियाँ में मजदूरों किसानों के राज स्थापित हो गये। कम्युनिस्ट कन्तियों के फूटते ज्वार से भयभीत पूँजीवादी साम्राज्यवादियों द्वारा तमाम गुलाम औपनिवेशिक देशों को समझौता मार्का आजादियों दी जाने लगी। इसी कड़ी में भारत को भी 1947 में समझौता मार्का आजादी मिली।
उस दौर में ऐसा लगने लगा था कि जल्द ही पृथ्वी पर एक ऐसी संस्कृति और सभ्यता वाले मानव समाज का निर्माण प्रारम्भ हो जाएगा जहाँ न शोषण होगा न अन्याय होगा, न कोई छोटा होगा न कोई बड़ा होगा, न चोरी होगी न बेइमानी होगी। यहाँ एक समाजवादी मानव समाज का निर्माण होगा। परन्तु विदेशी पूँजीवादी साम्राज्यवादी ताकतों के साथ सोवियत संघ के पूँजीवादी अवशेषों के रूप में बच्चे रह गये मध्यमवर्गीयों ने 1955-56 आते-आते सुधारवादी संशोधनवादी साजिशें करके समाजवादी व्यवस्था को धीरे-धीरे एक एक कर 1989-90 तक ढहा दिया और पूँजीवाद की पुनर्स्थापना करवा दिया। यही मानव समाज के विकासक्रम का इतिहास है, उठना और गिरना, उठते-गिरते अन्ततोगत्वा उठना और आगे बढ़ना इतिहास इस तथ्य का गवाह है कि पुराने सामंतशाही के विरुद्ध संघर्ष करते, गिरते-उठते और अन्ततोगत्वा सामंतशाही का खात्मा करके अपने को स्थापित करने में पूंजीवाद को 200 साल लग गए थे।
1917 की महान अक्टूबर क्रान्ति का मानव समाज पर जो व्यापक व अमिट प्रभाव पड़ा है वह समाजवादी आन्दोलनों का पथ प्रदर्शक, प्रकाश स्तम्भ है। अतः अनुकरणीय व सबक देह है। अक्टूबर क्रान्ति के दो अनुकरणीय सबक है: पहला उसका मार्गदर्शक सिद्धान्त मार्क्सवाद लेनिनवाद और दूसरा है समाजवादी निर्माण (1) 1917 की अक्टूबर क्रान्ति मार्क्सवाद-लेनिनवाद के मूल सिद्धान्तों के आधार पर सम्पन्न की गयी। इस क्रान्ति ने मार्क्सवाद के सिद्धान्तों की वैज्ञानिकता और सर्वकालिकता को व्यवहार द्वारा प्रमाणित व पुष्टित किया तथा लेनिनवाद को विकसित किया। मार्क्स ने बताया कि मानव समाज प्रकृति का अंग है। जिस प्रकार प्रकृति में होने वाली क्रियाओं के सुनिश्चित नियम है उसी प्रकार मानव समाज में होने वाली क्रियाओं के भी सुनिश्चित नियम है। प्रकृति और मानव समाज में होने वाला रूपान्तरण अर्थात गुणात्मक अवस्था में परिवर्तन क्रान्ति द्वारा ही सम्पन्न होता है। क्रान्ति का अर्थ है वस्तु या मानव समाज की एक अवस्था के बिनाश से अगली नयी अवस्था की उत्पत्ति प्रश्न है कि क्रान्ति की प्रक्रिया सम्पन्न कैसे होती है? इसकी व्याख्या के लिए मार्क्स ने तीन मौलिक प्रस्थापनाऐं प्रस्तुत की- (1) दार्शनिक सिद्धान्त-द्वन्द्वात्मक और ऐतिहासिक भौतिकवाद (2) राजनीतिक सिद्धान्त-वर्गीय दृष्टिकोण, वर्ग संघर्ष एवं वर्गीय • तानाशाही एवं साम्यवाद (3) आर्थिक सिद्धान्त अतिरिक्त मूल्य, तथा माल, मुद्रा एवं मूल्य का नियम ।
मार्क्स द्वारा प्रतिपादित इन नियमों के योग को मार्क्सवाद कहा जाता है। दरअसल मार्क्सवाद सामाजिक विज्ञान है
जो मानव समाज को जानने समझने एवं इसकी वैज्ञानिक व्याख्या के साथ-साथ समाज को बदलने का नियम व तरीका
बताता है। लेनिन ने रूस के समाजवादी संघर्ष के दौरान पूँजीवाद के विकसित चरम स्वरूप 'साम्राज्यवाद की व्याख्या किया तथा इसे बदलने का तरीका बताया। लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद मूलतः पूँजीवाद ही है। लेनिनवाद साम्राज्यवादी युग में मजदूर क्रान्ति का मार्क्सवाद है। लेनिनवाद बताता है कि-------
(1) पूंजीवाद विकास करते हुए अपने विकास की उच्चतम अवस्था में पहुँच कर पूंजीवादी साम्राज्यवादी बन गया है। इस अवस्था में साम्राज्यवाद विश्व के पिछड़े व कमजोर देशों पर ही नहीं, बल्कि विकसित देशों तक पर अपनी दिल्लीय पूंजी का आधिपत्य स्थापित करता है, अपने औद्योगिक उत्पादों मालों, मशीनों, हथियारों, संचार एवं यातायात के साधनों के साथ ही ज्ञान विज्ञान तकनीकि की मण्डी बना लेता है तथा इन देशों के आर्थिक स्रोतों खनिज सम्पदा एवं ऊर्जा के स्रोतों पर अपना नियंत्रण व प्रभुत्व स्थापित करता है, अपनी औद्योगिक सभ्यता की जरूरतों के लिए पिछड़े देशों को ग्रामीण एवं कृषि उत्पादक के रूप में बदल देता है। अपनी इन सारी जरूरतों की पूर्ति के लिए साम्राज्यवादी राष्ट्र पिछड़े राष्ट्रों को अपनी महाजनी के साम्राज्यवादी आर्थिक राजनीतिक शैक्षिक सांस्कृतिक प्रणाली का अंग बना लेता है।
(2) लेनिनवाद साम्राज्यवादी युग में पूँजीवाद विरोधी समाजवादी क्रान्तियों तथा साम्राज्यवाद विरोधी जनवादी क्रान्तियों की रणनीति और कार्यनीति बताता है।
(3) लेनिनवाद वर्तमान साम्राज्यवादी युग में पूँजीवादी व साम्राज्यवादी राज सत्ता को उखाड़ कर सर्वहारा वर्ग की तानाशाही कायम करने के लिए एक कार्य कुशल, सजग, अनुशासित क्रान्तिकारी पार्टी के गठन का सिद्धान्त बताता है। (4) लेनिनवाद, मार्क्सवाद-लेनिनवाद में किए जा रहे सुधारों-संशोधनों के विरुद्ध सतत संघर्ष का सिद्धान्त बताता है।
तो ये है मार्क्सवाद लेनिनवाद की मूल प्रस्थापनाएँ जो मेहनतकश वर्गों को शासकों के शोषण से मुक्ति का रास्ता बताते है। अतः यह मेहनतकशों की मुक्ति का एक मात्र अमोध हथियार है। यही कारण है कि सामंत व पूंजीवादी शासक वर्ग, मार्क्स के जमाने से ही इसे भोथरा, कुन्द व गैर क्रान्तिकारी बनाने के उद्देश्य से मार्क्सवाद को काल्पनिक अव्यवहारिक, अमानवीय, बेधर्मी आदि बताते आ रहे हैं। ऐसे सुधारवादियों से सावधान रहने की चेतावनियों मार्क्स, ऐंगेल्स एवं लेनिन ने बार-बार दी हुई है। फिर भी स्टालिन की मृत्यु 1953 के बाद रूसी कम्युनिस्ट पार्टी में घुसे हुए पूँजीवादी मध्यमवर्गीय सबको ने 1955-56 में मार्क्सवाद के मौलिक सिद्धान्तों को देश-काल-परिस्थितियों के नाम पर संशोधित करते हुए वर्ग सहयोग, सहअस्तित्व और शांतिपूर्ण संक्रमण का सिद्धान्त अपनाया पनपाया। इन सुधारों संशोधनों का परिणाम यह हुआ कि स्टालिन युग में किए गए रूस के समाजवादी निर्माण तथा पूर्वी यूरोप एवं एशियाई देशों के जनवादी सत्ता सरकारों के जनवादी व समाजवादी निर्माण धीरे-धीरे कमजोर होते हुए अन्ततोगत्वा 1989-90 आते-आते रूस सहित विभिन्न देशों की समाजवादी व जनवादी राज सत्ताओं को उखाड़ कर उन देशों में पूँजीवाद पुनर्स्थापित कर दिया गया। इससे सुधारवादी संशोधनवादी- दिशा गलत ही नहीं बल्कि समाजवादी व्यवस्था के लिए प्रतिगामी व आत्मघाती साबित हुई। सुधारवाद संशोधनवाद के कारण बची खुची जनवादी व समाजवादी व्यवस्थाओं का एक-एक कर ढ़हना, दहाना पुराने मार्क्सवाद लेनिनवाद के मौलिक सिद्धान्तों की प्रासंगिकता को ही साबित करता है। आँख खोलने वाले इन परिणामों के बावजूद आज भी तमाम बामपंथी खेमें व नूतन मार्क्सवादी लोग मार्क्सवाद-लेनिनवाद में ही कमी खॉमी ढूँढ़ने का प्रयास किए व करते आ रहे हैं और बदली हुई परिस्थितियों के नाम पर इसमें सुधार-संशोधन की गुंजाइश तलाश रहे हैं। यह कार्य व मनोवृत्ति गैर मार्क्सवादी-लेनिनवादी ही नहीं है बल्कि पूँजीवाद - साम्राज्यवाद की चाटुकार, सेवक, व दलाल मनोवृत्ति की घोतक है।
(11) समाजवादी निर्माण 1917 की अक्टूबर क्रान्ति के पश्चात लेनिन के दिशा निर्देशन में सोवियत संघ के समाजवादी निर्माण की आधारशिला रखी गयी उसी पर 1924 के पश्चात स्टालिन द्वारा सोवियत संघ का जो समाजवादी निर्माण 1953 तक किया गया वह मानव इतिहास में सारी दुनिया के मेहनतकशों के लिए अनुकरणीय मिशाल है।
क्रान्ति के पश्चात राज सत्ता पर नियंत्रण कायम करके सर्वहारा तानाशाही कायम की गयी। समाजवादी निर्माण के प्रथम वर्ष में उत्पादन के साधन जैसे उद्योग, कारखाने, बैंक खदानें यातायात के साधन आदि उद्योगपतियों व्यापारियों से छीन लिए गए। कृषि सम्बन्धी जमीन मशीन आदि जमीदारों बड़े किसानों मठों आदि से छीन लिये गये। विदेशी सम्पत्ति जब्त कर ली गयी और सारी सम्पत्ति पर मजदूरों छोटे किसानों का मालिकाना घोषित कर दिया गया। क्रान्ति के बाद के प्रथम तीन वर्ष भीषण गृह युद्ध व 14 साम्राज्यी देशों के थोपे सैन्य आक्रमण से निपटने में बीता। उसके बाद बर्बाद उद्योग धन्धों के पुनर्निमाण का काल आया। अब समाजवादी निर्माण के लिए आवश्यक था, पिछड़े हुए सोवियत समाज को शिक्षा और संस्कृति के उन्नयन से ऊपर उठाना।
समाजवादी निर्माण में आर्थिक, राजनीतिक, वैज्ञानिक तकनीकी विकास के साथ शिक्षा और संस्कृति के उन्नयन की
ऐसी आधारशिला रखी गयी जिसके द्वारा एक ऐसे मानव समाज का निर्माण हो जैसा कि अब तक पृथ्वी पर कहीं देखा सुना न गया हो। एक ऐसे मानव समाज का जो हर प्रकार के शोषण-उत्पीड़न से मुक्त हो। एक ऐसे मानव समाज का जिसका प्रत्येक सदस्य झूठ-फरेब, चोरी-चकारी, ऊँच-नीच, ईर्ष्या-द्वेष जैसी मानसिक विकृतियों से मुक्त हो और सचमुच 1936 तक के समाजवादी निर्माण द्वारा इस उच्चता को प्राप्त करने में काफी सफलता भी मिली। 1936 में स्टालिन ने सोवियत रूस के श्रेणी विभाजन के सम्बन्ध में घोषणा की कि- "सोवियत राज्य में श्रमिक वर्ग एक बिल्कुल ही नयी श्रमिक श्रेणी, शोषण से मुक्त श्रमिक श्रेणी है, जिस तरह की श्रेणी मानव इतिहास में इससे पहले कभी नहीं देखी गयी। सोवियत किसान एक नया सोवियत किसान है. इस तरह की किसान श्रेणी मानव इतिहास में पहले कहीं नहीं देखी गयी सोवियत युद्धिजीवी श्रेणी एक बिल्कुल ही नयी श्रेणी का है जिस तरह की श्रेणी पृथ्वी पर आप कहीं नहीं पाएँगे।"
दरअसल 1933 तक रूस की साक्षरता दर 90 प्रतिशत हो गयी, रोटी मुफ्त मिलने लगी, अनाज बाहर निर्यात होने लगा, हर व्यक्ति के लिए काम करना अनवार्य किया गया जिससे बेरोजगारी समाप्त हो गयी प्रश्न है यह सब कैसे सम्भव हुआ? इसके लिए 1919 में ही 8 से 50 साल तक के लोगों के लिए मातृभाषा में प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी थी। 14 साल तक के बच्चों से काम कराना प्रतिबन्धित था। बुजुर्ग, बीमार बच्चों को छोड़ कर बिना काम किए भोजन-प्रतिबन्धित था।
1928 में प्रथम पंच वर्षीय योजना लागू की गयी। लोगों में समाजवादी निर्माण का वह जज्बा था कि पंचवर्षीय योजनाऐं चार वर्ष में ही पूरी हो जाती थी। आर्थिक, सामाजिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, तकनीकी और सैन्य क्षेत्रों में इतना तीव्र विकास हुआ कि 1940 तक सोवियत संघ विश्व की अमरीका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी इत्यादि जैसे महाशक्तियों को प्रत्येक क्षेत्र में टक्कर देने लगा। नाभिकीय उर्जा अन्तरिक्ष विज्ञान, चिकित्सा विज्ञान एवं विविध सांस्कृतिक क्षेत्रों में अभूतपूर्व विकास हुआ। द्वितीय विश्वयुद्ध में हिटलर की अजेय नाजी सेना को बर्लिन तक खदेड़ने का पराक्रम रूस की लाल सेना का ही था, जबकि अमरीका ब्रिटेन अपरोक्ष रूप से हिटलर द्वारा समाजवादी रूस को कुचलने की साजिश कर रहे थे। वैश्विक पैमाने पर समाजवादी व जनवादी क्रान्तियों को तथा उपनिवेशिक राष्ट्रों के स्वतंत्रता आन्दोलनों को आर्थिक तकनीकी और नैतिक सहयोग देने के साथ-साथ मार्क्सवादी साहित्य का विभिन्न भाषाओं में प्रकाशन वितरण करा कर समाजवादी आन्दोलन को सोवियत रूस ने आगे बढ़ाया। 1953 तक का सोवियत संघ का समाजवादी निर्माण दुनियों के मेहनतकश वर्ग के लिए अनुकरणीय रूप में चमकता रहेगा।
(आजमगढ़)
लेखक : बशिष्ट सिंह
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