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Monday, 6 June 2022

अक्टूबर क्रांति शताब्दी वर्ष : मंथन अंक --अक्टूबर क्रान्ति विशेषांक (द्वितीय) ----------------------------------------------------------------------- लेखक : अमरजीत कुमार (मऊ)


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अक्टूबर क्रांति पहले की क्रान्तियों कि तरह नहीं थी कि एक शोषक-शासक की जगह कोई दूसरा शोषक- शासक वर्ग शासन सत्ता में आ जाता था। 1917 की महान अक्टूबर क्रान्ति ने रूस के श्रम बेचने वाले श्रमजीवी सर्वहारा वर्ग जो अपना श्रम बेचकर ही समाज में जिन्दा रहता है। उसके पास अपना कोई साधन नहीं होता समाज का कूड़ा करकट कहे जाने वाला सदियों सदियों से शोषित शासित, गुलाम दास मजदूर अनपढ़-गंवार, जो आज के पूंजीवादी व्यवस्था में स्वतंत्र मजदूर के रूप में है। वह अपना श्रम कही भी बेच सकता है। इस मेहनतकश मजदूर वर्ग को सदियों सदियों से जाति-धर्म क्षेत्र नस्त इलाका भाषा आदि के नाम पर भी दबाया जाता रहा है। ज्यादातर मेहनत मजदूरी करने वाले मजदूर वर्ग के लोगों ने अपनी भौतिक जरूरते पूरा करने के लिए जैसे-भोजन, कपड़ा, मकान, दवा, पढाई-लिखाई रोजी-रोजगार, परिवहन जैसी मौलिक समस्याओं के लिए महान नेता लेनिन व स्टालिन की अगुवाई में लौह अनुशासन वाली कम्युनिस्ट पार्टी बनाकर 1917 में महान अक्टूबर क्रान्ति  हजारों-हजारों साल के शोषण दमन से मुक्ति के लिए पूंजीपतियों के कल कारखाने खाने उद्योग खनिज पदार्थ आदि छीन लिए। बड़े-बड़े जमींदारों तथा राजा बादशाहों की जमीने छीनकर मजदूर राज्य खड़ा किये। जो दुनिया के इतिहास की पहली क्रांति थी। यह क्रांति किन सिद्धान्तों व पद्धतियों पर सफल हुई की महान क्रान्ति महान वैज्ञानिक कार्लमार्क्स जो पूंजीवाद की सम्पूर्ण व्याख्या किये और बताये कि मजदूरों की नेहा को कैसे साधनों का मालिक पूंजीपति वर्ग लूटता है। इसकी व्याख्या करते हुए लेनिन बताते है कि पूजीवाद अब व्यापक हो गया है। यह राष्ट्रीय नहीं अन्तर्राष्ट्रीय हो गया है। अपने देश की सीमाओं को तोड़कर दुनिया के समान देशों में अपना माल बेचता है और कच्चे माल तलासता है और पूजी का निर्यात कर के मुनाफा और सूद पर सूद लूटता है। और पिछड़े राष्ट्रों को अपना उपनिवेश बनाता है। लेनिन और स्टालिन ने मजदूर वर्गों को पढ़ा-लिखा कर मजदूरों की लूट को समझाकर बताकर कम्युनिस्ट पार्टी बनाये जो अपनी लूट को समझकर मार्क्स-लेनिन के रास्ते पर चल कर क्रान्ति करके शोषणविहीन समाज की स्थापना की ओर बढ़े।

अक्टूबर क्रांति से दुनिया के देशों में और खुद रूस में क्या परिवर्तन हुए- अक्टूबर क्रान्ति ने रूस के मेहनतकश वर्गों छोटे किसानों के जीवन की भौतिक जरूरतों को पूरी की, जैसे बेरोजगारी दूर हो गई। उत्पादन इतना बढ़ा कि लगभग आटा मुफ्त हो गया. सभी को आराम से रहने के लिए मकान की सुविधा हो गयी, कपड़े, शिक्षा मुफ्त, जो पढ़ना चाहे डाक्टरी इन्जीनियरिंग, वैज्ञानिक आदि बने, विभार होने पर मुफ्त इलाज कि सुविधा, यात्रा के लिए मुफ्त परिवहन की सेवा, जाति-धर्म, क्षेत्र नस्ल इलाकाई जैसे भेदभाव टूट गये। महिलायें-बच्चे सुरक्षित रात में भी बाजार आ जा सकते थे चोरी वेश्यावृत्ति लगभग खत्म हो गयी, घरों में वाले नहीं लगते थे। रूसी क्रान्ति से प्रभावित होकर दुनिया के कई देशों में क्रान्तियाँ सम्पन्न हुई। जैसे- चीन, कोरिया, वियतनाम, क्यूबा आदि देशों में दुनिया के तमाम गुलाम उपनिवेशिक देशों को साम्राज्यवादी लुटेरे देशों से आजादी मिली। जैसे 1947 में भारत को अंग्रेजों ने आजादी दे दी। यह 1917 की क्रान्ति के प्रभाव में ही हुआ क्योंकि हमारे देश में भी भगत सिंह जैसे क्रान्तिकारी पैदा हो रहे थे, जो रूस की तरह समाजवादी क्रान्ति करना चाहते थे। मानव द्वारा मानव के सभी शोषणों से मुक्ति चाहते थे। इसलिए हमें भी अपने देश में वैसी क्रान्ति करनी चाहिए क्योंकि जैसी मौलिक समस्यायें रूस में थी वैसी ही मौलिक समस्यायें हमारे देश के व्यापक जनता के जीवन में मौजूद है। इसी से मुक्ति के लिए क्रान्ति जरूरी है। समाजवाद रूस में क्यों असफल हुआ-अक्टूबर क्रान्ति होते ही सबकी बराबरी वाला साम्यवादी राज्य नहीं आ जाता। बल्कि क्रान्ति के बाद भी जमीदार तथा पूंजीपति सशरीर मौजूद रहते हैं न कि एक तरफा गला काट दिया जाता है। क्रान्ति में शोषक-शासक पूजीपतियों की राज्य की ताकत से अचल सम्पतियां छीन ली जाती है। जैसे कल-कारखाने, खदाने, बैंक, उद्योग, व्यापार जमीदारों की जमीने छीन ली जाती है। ज्यादातर जमींदारों और पूंजीपतियों के पास सचल संपत्तियों बहुत ज्यादा होती है। घर-मकान, रूपये पैसे, गहने आदि बहुत ज्यादा होते हैं जो छीना नहीं जाता है। ये पूंजीपति राज्य चलाने में माहिर होते हैं। शिक्षित और समृद्ध होते हैं। इन्हें संचालन और संगठन करने की ताल-तिकड़म करने की आदते प्रवृत्तियाँ होती हैं। इन्हें प्रबन्धन करने और सम्भावनायें तलाशने का ज्ञान होता है। इनके और इनके परिवार का स्वर्ग जैसा जीवन जाहित-गवार मजदूरों की भीड़ ने छीन लिया और इन्हें काम करने पर मजबूर करते रहे। इसलिए यह पूजीपति 10 गुणा प्रतिरोध से और 100 गुना ताकत से मजदूर राज्य उखाड़ना चाहते हैं। मजदूर राज्य के निर्माण में लगा हुआ मध्यमवर्ग जो पढ़ा-लिखा बुद्धिजीवी वर्ग जो पूंजीवाद में पद-प्रतिष्ठा पाये रहता है। भौतिक सुख-सुविधा प्राप्त करता रहता है। हवाई जहाज की यात्रायें करता रहता है। पांच सितारा होटलों में ठहरता है। यह अपने वैदिक ज्ञान के कारण राज्य चलाना जानता है और राज्य उखाड़ना जानता है। जैसे मैनेजर डाइरेक्टर, प्रबन्धक, तकनीशियन, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री आदि। जिनसे मजदूर राज्य में भी मजदूरों से अधिक सुख सुविधायें वेतन भत्ते देकर काम लिया जाता है। इनकी सुविधा प्रतिष्ठाभोगी आदतें, प्रवृत्तियों है धर्मगुरू, पादरी जो पूंजीवादी राज्य को ईश्वर से जोड़कर बताते रहते हैं। जो पूंजीवादी राज्य इनके सहयोगी होते हैं। मजदूर राज्य इन्हें नकार देता है। ये भी मजदूर राज्य को उखाड़ना चाहते हैं। इन पूंजीपतियों के राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक लेन देन के साम्राज्यवादी देशों के पिछड़े देशों में लूट के व्यापारिक सम्बन्ध होते हैं जो मजदूर राज्य आने से इनके लूट की कड़ीयाँ टूट जाती है। मजदूर राज्य पूरी दुनिया के देशों में क्रान्ति चाहता है और साम्राज्यवादी देश इस मजदूर राज्य को उखाड़ना चाहते हैं। साम्राज्यवादी देश हजारों मिलियन डालर खर्च करके इसे गिराने में लगे रहे। जिन मजदूरों के हाथ में राज्य आया, वह राज्य चलाने में नवसिखिया ये ताल तिकड़म नहीं समझ सकते थे। समाजवादी निर्माणकर्ता स्टालिन के मरने के बाद 1956 में सुधारवादी संशोधनवादी र साहब राज्य की सत्ता में आते ही कहने लगे कि अब वर्ग नहीं रह गया है। सभी वर्ग बराबर हो गये है। अब वर्ग संघर्ष का रास्ता छोड़ देना चाहिए। (वही जो मजदूर वर्ग संघर्ष चलाकर क्रान्ति की मंजिल तक पहुँचाकर अपना राज्य खड़ा किया हुआ था जो मजदूर राज्य की असली ताकत है।) उसे छोड़कर हमें शान्तिपूर्ण संक्रमण, शान्तिपूर्ण प्रतियोगिता, शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व का नारा लगाये। शान्तिपूर्ण ढंग से पूंजीवादी- साम्राज्यवादी देश से प्रतियोगीता कर के समाजवाद को आगे बढ़ाया जा सकता है। इन्होंने कहा कि अब पार्टी संगठन में कोई भी आ सकता है। इसलिए कि वर्ग समाप्त हो गये है। मजदूर राज्य में यहीं संशोधन से पूंजीवादी वर्गों को जीवनदान मिल गया और पार्टी संगठन में घुस कर मजदूर राज्य उखाड़ने में लग गये। पार्टी ने वर्ग संघर्ष का मार्क्सवादी-लेनिनवादी रास्ता छोड़ दिया। 1989-90 में गोर्वाचेव साहब ने जनतन्त्र के नाम पर खुला पूंजीवाद लागू कर दिया और मजदूर राज्य को पूंजीपति और साम्राज्यवादियों ने अपनी ताकत से उखाड़ दिया। मजदूर राज्य में सुधारवादी व संशोधनवादी घुसकर वर्गसंघर्ष रोककर समाजवाद को उखाड़ दिये।

लेखक:  अमरजीत कुमार           (मऊ)
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शिवानी आफसेट प्रिन्टर्स आजमगढ़ मो 9670773377

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मंथन, अक्टूबर क्रांति विशेषांक, अंक-2

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