गुजरात विकास माडल (नमूना) पर तो चर्चा पूरे चुनाव के दौरान होती रही है। चुनाव उपरान्त आज भी इस विकास मॉडल पर चर्चा करना आवश्यक है क्योंकि यह मोडल पेश करने वाली भाजपा की सरकार बने आधा साल से ज्यादा हो चुका है। गुजरात का जो विकास हुआ है उसे दिखा बताकर यह कहा जाता रहा है कि जब श्री नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे तो देश का गुजरात जैसा ही विकास कर देंगे। पहले यह देखा जाय कि गुजरात का विकास किसके द्वारा और कैसे हुआ? यह कैसा किनका विकास है?
गुजरात सरकार प्रान्तीय सालाना बजटो द्वारा पूजीपतियों को उनके उद्योगों कल-कारखानों के लिए सस्ते मे कृषिगत कपास, मूंगफली तम्बाकू दूध जैसे कच्चे / अर्द्धतैयार माल उपलब्ध कराती रही है। छोटे व्यापारियों से होते हुए बड़े व्यापारियों पूंजीपतियों के उद्योगों कल-कारखानों में इन कृषिगत मालो की रंगाई डिजाइन पैकेजिंग व अन्य दूसरे रंग रूप में बनाकर देशी विदेशी बाजार में बेच के व्यापारियों पूंजीपतियों के लाभ अतिरिक्त लाभ में वृद्धि होती आ रही है। व्यापारियों पूजीपतियों के उद्योगो कल-कारखानों की जरूरतों की दृष्टि से कृषि का विकास भी होता रहा। उन्हीं की जरूरतों के लिए कपास मूंगफली जो उनके वस्त्र तेल साबुन शैम्पू जैसे महत्वपूर्ण उद्योग के आधार है। जिनको पैदा करने वाले किसानों को आधुनिक प्रौद्योगिकी तथा वैज्ञानिक खेती के तरीकों के प्रति जागरूक बनाने के लिए कृषि महोत्सव जैसे आयोजन करना तथा सरकार द्वारा जल संरक्षण व जल प्रदान गतिविधियों को बढ़ावा देती जा रही है। जिसके क्रम में वालसाद भारत का प्रथम उद्यान विज्ञान (हॉर्टीकल्चर) जिला हो गया, जहाँ से सब्जी फल व फूलों का निर्यात होता है।
सन् 1991 में केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने निजीकरण, उदारीकरण, विश्वीकरणवादी नामक "नई आर्थिक नीतियों को साम्राज्यवादी देशों खासकर अमेरिका के निर्देशनोनुसार पूरे देश में लागू किया था, जिसका उस समय भाजपा व गैर-कांग्रेसी दलों ने विरोध किया था लेकिन विरोध करने वाले दल (संयुक्त मोर्चा की सरकारे व बाजपेयी सरकार) जब सत्ता- सरकार में चढ़े तो कांग्रेस द्वारा लागू उन्ही आर्थिक सुधारों के अगले चरण को आगे बढ़ाये। और जब 2001 में श्री मोदी गुजरात प्रान्त के मुख्यमंत्री बने तो वे भी उन्हीं आर्थिक सुधारों (उदारीकरण निजीकरण, भूमण्डलीकरण) को ज्यादा चढ़-बढ़कर लागू करने लगे। जैसे-
(1) विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ), विशेष निवेश क्षेत्र (SIR Act) अधिनियम लाकर पेट्रोलियम रसायन और पेट्रोलियम रसायन निवेश क्षेत्र प्रसार के हब बनाने।
(2) देशी-विदेशी पूँजीपतियों द्वारा स्थानीय किसान मालिकों से सीधे भूमि खरीदने की छूटे प्रदान किये।
(3) पूँजीपतियों के उत्पादन, वितरण बाजार के इलाको क्षेत्रों को और ज्यादा विकसित व आरक्षित करना।
(4) सुजूकी (जापान), जनरल मोटर्स, फोर्ड (अमेरिका), जैसी विदेशी कम्पनियों तथा विदेशी कम्पनियों के साझीदार सहयोगी भारतीय पूँजीपतियों-टाटा (नैनो कारखाने के लिए) रिलायन्स, अदाणी इत्यादि के उद्योग-धन्धो, कल-कारखानों के लिए सस्ते में जमीने अधिग्रहीत करने की छूट देना।
(5) पूँजीपतियों को सस्ते में बिजली, पानी, सड़क, रेलवे,
बंदरगाही, दूरसचारी इत्यादि जैसी बेहतर सुविधाए देना रहा है। सरकारी-निजी हिस्सेदारी (पी.पी.पी.) के तहत सरकारी क्षेत्रों जैसे-स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, परिवहन, इलेक्ट्रानिक्स, डेयरी उद्योग बन्दरगाहो हवाई अड्डों खदानों इत्यादि के क्षेत्रों में राज्य सरकार ने निजी क्षेत्र के देशी-विदेशी पूंजीपतियों को शामिल किया है। श्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने गुजरात के प्राकृतिक संसाधनों जैसे कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, बाक्साइड, चूना पत्थर चीनी मिट्टी इत्यादि के खदानों का पूंजीपतियों द्वारा दोहन करने की सरकारी ढीलें छूटें दी। पूंजीपतियों द्वारा हायर एण्ड फायर यानि जब चाहे मजदूरों को रखने व निकालने की भी छूटे दे दी थी।
गुजरात विकास का एक महत्वपूर्ण कारण समुद्र तटीय होना इस प्रान्त में लगभग इकतालिस बन्दरगाह है। गुजरात विकास इसलिए भी विकास मॉडल बन पाया क्योंकि देश-विदेश से आयात-निर्यात करने की बन्दरगाही सुलभता व सुविधाओं वाला प्रान्त है वैसे देश-दुनिया के बड़े-बड़े पूंजीपति आकर्षित होके अपने उद्योग, व्यापार बहुत पहले से स्थापित करते आ रहे हैं। गुजरात प्रान्त का औद्योगिक विकास (i) विदेशी आर्थिक व तकनीकी पूंजी का अधिकाधिक आगमन तथा (ii) उड़ीसा, मध्य प्रदेश पूर्वी उ०प्र० बिहार जैसे पिछडे प्रान्तों से गये मजदूरों के शारीरिक, मानसिक श्रम के शोषण दोहन व साथ ही (iii) अन्य प्रान्तों के कच्चे पक्के अर्थ तैयार कृषिगत व औद्योगिक मालो सामानों की ढुलाई, सप्लाई के परिणामस्वरूप हुआ है। इसीलिए गुजरात देश का सबसे संघन औद्योगिक राज्य का दर्जा पाया हुआ है। गुजरात के इसी विकास को विकास मॉडल के रूप में प्रचारित किया जा रहा था व है।
अब गुजरात विकास मोडल के एक अन्य पहलू की व्यावहारिक उदाहरण देखें-
चुनाव में श्री मोदी जी शेष भारत के गावों के विकास करने की नगरों जैसी गावों में भी सुविधाएं देने की बाते करते रहे। इस संदर्भ मे अन्तर्राज्यीय तुलनात्मक आकडे-2008 (अर्थ एवं संख्या प्रभाग, राज्य नियोजन संस्थान, उप्र) से स्पष्ट है कि 2006 में गुजरात में ग्रामीण औसत मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय 684 रु० तो नगरीय मासिक प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय था 1105 रू० ग्रामीण व नगरीय उपभोक्ता व्यय का अन्तर 521 रू० था। एक साल बाद 2007 में ग्रामीण प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय बढ़कर हो गया 797 रू0 तो नगरीय प्रति व्यक्ति उपभोक्ता व्यय बढ़कर हुआ 1422 रू० यानि उपभोक्ता व्यय का अन्तर बढ़कर हो गया 625 रू0 मतलब, ग्रामीण आबादी की तुलना में शहरी आबादी का जीवन स्तर बेहतर होता रहा है, जबकि उसी काल में महाराष्ट्र प्रान्त के शहरी आबादी का जीवन स्तर गुजरात से बेहतर रहा। देश के अन्य प्रान्तों की तरह गुजरात के किसान भी कृषिगत लागत के बढ़ते मूल्य, कर्जे सिचाई के अभाव पैदावार के उचित मूल्य भाव न मिलने इत्यादि के कारण कपास उत्पादन करने वाले किसानों द्वारा कपास जलाने व आत्महत्या करने की अखबारी खबर है। इसके अलावा गुजरात में ही बहते गंदे नालों नहरों के किनारे झोपड पट्टियां बनाकर रहने वाले परिवारों की हालत भी दयनीय है। जिसका चर्चा चित्रण पूर्वी यूपी से गये मजदूरों द्वारा बताया जाता है। ये उपरोक्त विकास के दोतरफा परिणाम व अबराबरी बढ़ाने व वर्गीय एवं क्षेत्रीय असंतुलन पैदा करने वाले परिणाम है।
अंग्रेजी काल से चला आ रहा है अबराबरी बढ़ाने वर्गीय एवं क्षेत्रीय असंतुलन पैदा करने वाला आर्थिक सामाजिक विकास आज भी जारी है जैसाकि उप खासकर पूर्वी यू.पी व बिहार जैसे पिछड़े प्रान्तों इलाकों का जहां कम कृषिक औद्योगिक विकास व कम से कम उत्पादन तथा घनी आबादी के कारण बेकारी सम्पत्तिहीनता, गरीबी ज्यादा फैली रहती है। पूर्वी यूपी व बिहार जैसे पिछड़े इलाकों के मजदूर व किसान एवं अन्य साधारण वर्ग रोजी-रोटी कि तलाश में बंगाल, महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली जैसे नगरों शहरों को पलायन करते रहते हैं। महज रोजी-रोटी की तलाश में आये साल तथा खासकर सूखे के साल रेलगाड़ियों में ठूस-ठूस कर यहाँ से वहाँ अपने जागर मेहनत से पूजीवादी नवनिर्माण में सस्ते मजदूर के रूप में अपना शारीरिक मेहनत पसीना लगाते हैं, तो क्या प्रधानमंत्री श्री से में उदारीकरणवादी • मोदी जी इन पिछड़े प्रान्तों, इलाकों में, नरेन्द्र पूंजीनिवेश का प्रवाह कराके औद्योगिक एवं कृषिक विकास करवा पायेगे ? क्या इन इलाको से टूटती किसानी, दस्तकारी से हुए बेरोजगार व साधारण परिवार से रोजी-रोटी के लिए जाने वाले मानव श्रम को रोक पायेंगे? क्या प्रधानमंत्री जी खेती-किसानी, दूटती दस्तकारी बेकारी जैसी समस्यों का समाधान कर पायेगे जैसाकि वे चुनावी प्रचारों के दौरान लोगों में उम्मीद जगाते रहे। वे ऐसा कर नहीं पायेंगे? इस पर पाठक भी सोचें।
(आजमगढ़)
लेखक : वीरेन्द्र विश्वकर्मा
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