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Saturday, 11 June 2022

।दिलरुबा के सुर।



हमारे कन्धे इस तरह बच्चों को उठाने के लिये नहीं बने हैं
क्या यह बच्चा इसलिये पैदा हुआ था
तेरह साल की उम्र में 
गोली खाने के लिये

क्या बच्चे अस्पताल जेल और क़ब्र के लिये बने हैं
क्या वे अन्धे होने के लिये बने हैं

अपने दरिया का पानी उनके लिये बहुत था
अपने पेड़ घास पत्तियां और साथ के बच्चे उनके लिये बहुत थे

छोटा-मोटा स्कूल उनके लिये 
बहुत था
ज़रा सा सालन और चावल उनके लिये बहुत था
आस-पास के बुज़ुर्ग और मामूली लोग उनके लिये बहुत थे
वे अपनी मां के साथ फूल पत्ते लकड़ियां चुनते
अपना जीवन बिता देते  
मेमनों के साथ हंसते खेलते 

वे अपनी ज़मीन पर थे 
अपनों के दुख - सुख में थे 
तुम बीच में कौन हो

सारे क़रार तोड़ने वाले
शेख़ को जेल में डालने वाले 
गोलियां चलाने वाले
तुम बीच में कौन हो

हमारे बच्चे बाग़ी हो गए
न कोई ट्रेनिंग 
न हथियार
वे ख़ाली हाथ तुम्हारी ओर आए
तुमने उन पर छर्रे बरसाए

अन्धे होते हुए 
उन्होंने पत्थर उठाए जो
उनके ही ख़ून और आंसुओं से तर थे

सारे क़रार तोड़ने वालों
गोलियों और छर्रों की बरसात 
करने वालों
दरिया बच्चों की ओर है

चिनार और चीड़ बच्चों की ओर है
हिमाले की बर्फ़ बच्चों की ओर है

उगना और बढ़ना
हवायेंऔर पतझड़
जाड़ा और बारिश
सब बच्चों की ओर है
बच्चे अपनी कांगड़ी नहीं छोड़ेंगे
मां का दामन नहीं छोड़ेंगे
बच्चे सब इधर हैं

क़रार तोड़ने वालों
सारे क़रार बीच में रखे जाएंगे
बच्चों के नाम उनके खिलौने 
बीच में रखे जायेंगे
औरतों के फटे दामन
 बीच में रखे जायेंगे
मारे गये लोगों की बेगुनाही
बीच में रखी जायेगी
हमें वजूद में लाने वाली
धरती बीच में रक्खी जायेगी

मुक़द्मा तो चलेगा 
शिनाख़्त तो होगी
हश्र तो यहां पर उट्ठेगा.

स्कूल बंद है
शादियों के शामियाने उखड़े पड़े हैं
ईद पर मातम है
बच्चों को क़ब्रिस्तान ले जाते लोग
गर्दन झुकाए हैं
उन पर छर्रों और गोलियों की बरसात है.

Subha Subha 



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