जनता अपने असली हित को समझने की शक्ति रखती है।यदि उसको ठीक से समझा जाये तो मै यहां अपना ही एक उदाहरण देता हूँ।बहुत दिनों बाद मुझे एक परिचित गांव मे जाना पड़ा।लोगो का आग्रह हुआ कि मै रूस के बारे मे कुछ कहूँ।मैने साधारण रूसी जनता की आर्थिक उन्नति की बात बतलायी-कैसे वहां के छोटे-छोटे खेत-मेड़ तोड़कर मिलों लंबे बना दिये गए हैं,कैसे छोटे-छोटे टटुओ की जगह एक हाथ गहरा खोदने वाले सात-सात फारों के मोटर वाले हल एक के पीछे पचास, खेतों मे चलते दिखलायी पड़ते हैं,कैसे गांव के स्त्री-पुरुष,श्रमिक अपने समिल्लित खेतों पर मोटर-हलो पर बैठे झण्डे और जयनाद के साथ खेतों पर पहुंचते हैं,कैसे हवाई जहाज उड़कर मिलों लंबे खेत मे बीज बोते हैं;कैसे मशीनों ही खेतों को काटती है,कैसे फसल को दबाती हैं,किस तरह खेतों पर भी भोजन के वक़्त सैकड़ो किसान काम छोड़कर एक जगह जमा होते हैं,भोजन परोसा जाता है और साथ-साथ लोग रेडियो का गाना भी सुनते हैं,कैसे गांव एक-दूसरे से जुताई,खेत बोने और अनाज को अधिक परिमाण मे पैदा करने मे होड़ लगाते हैं,कैसे किसी गांव का काम पिछड़ जाने पर दूसरे गांव वाले गोल बांधकर मदद देते और उन्हें लज्जित करते हैं,कैसे गांव की छोटी-छोटी झोपड़ी हटाकर चौड़ी सड़कों के किनारे ईंट-चूने के मकान किसान बना रहे हैं,जिसमे पानी के नल,बिजली की रोशनी,नागरिकों की चीजें पहुंच रही है,कैसे हर एक गांव मे स्कूल,अस्पताल और सिनेमा जारी रहता है,कैसे हर एक गांव के श्रमिक स्त्री-पुरुष अपने पुस्तकालय,क्लबों और नाट्यशाला मे नियमपूर्वक पहुंचते हैं,कैसे लोगो को दिन मे छह-सात घण्टा काम करना पड़ता है और इतने मे ही सुसंस्कृत जीवन बिताने की हर एक सामग्री को वे आसानी से पा सकते हैं,कैसे वहां लड़के-लड़कियों को पढ़ाने तथा परवरिश करने का सबसे अधिक भार साम्यवादी सरकार अपने हाथों में लेती है,मानो पिता को न शादी की फिक्र है,न लड़के के लिए कुछ विरासत दे जाने की,कैसे यदि कोई बीमार या बूढ़ा हो तो उस व्यक्ति के भरण-पोषण का सम्मानपूर्वक इंतजाम सरकार शुरू करती है,कैसे वहां के लोगो की चिंता अब एक हजार हिस्से मे एक हिस्सा रह गई है।
उस सभा मे हिन्दू,मुसलमान,ब्राह्मण और चमार सभी थे।मैने देखा कि सभी के चेहरे पर प्रसन्नता की रेखा दिखलायी पड़ती है।तब मैने कहा लेकिन रूस मे बहुत सारी खराब बातें भी हुई हैं,वहां घुरहू तिवारी की लड़की को मंगरु चमार का लड़का सरेआम ब्याह कर लेता है और उसमे कोई बाधक नही हो सकता है।वहां खाने-पीने मे जात-पांत का सवाल नही है।मंगरु चमार अगर रसोई अच्छी बनाना जानता है,तो वही बनाएगा और गांव के ब्राह्मण,राजपूत सबको एक साथ बैठकर खाना पड़ेगा।अगर बड़ी जाति वालों ने जरा-सी आनाकानी की तो,बहुत संभव है उन्हें देश से निकाल दिया जाए,धर्म और ईश्वर के लोग विरोधी बना दिये गए हैं,हजारों मंदिरों और मस्जिदों की वर्षों से मरम्मत नही हुई,उनकी छत की लकड़ियों को वही लोग ले जाकर ताप लिया करते हैं और अब उनकी दीवारें और छतें जीर्ण-शीर्ण अवस्था मे गिरने के लिए तैयार हैं,पुरोहितों और मुल्लाओं का पेशा उठा दिया गया है,अपने हाथ से काम करो तो ठीक,नही तो महारानी फूलकुमारी की वो पचासों लौंडिया नही रह गयी,उन्हें अपने हाथ नहाना और धोना नही पड़ता,बल्कि पापी पेट के लिए खेत काटना,मिट्टी ढोना और सब तरह का काम करना होता है।जिनके हाथ कभी मक्खन की तरह मुलायम थे,अब उनके हाथों मे पत्थर के-से कड़े पांच-पांच घट्ठे देख सकते हैं।साधु-महात्मा का नाम वहां नही और सबसे बड़ी बात तो यह है कि जात-पांत का कोई ख्याल नही रखा जाता।देखिये पापी पेट के लिए,इस चार दिन की जिंदगी के लिए इस तरह का अधर्म क्या आप लोग पसंद करेंगे?मैने समझा था कि मेरे पिछले भाषण के पिछले मजमून को सुनकर लोग भड़क उठेंगे।
लेकिन वहां उन लोगो को कहते सुना की अरे,इसमे क्या रखा है,आदमी की तरह सुखपूर्वक जिवेंगे और चिन्ता के बोझ से दिल तो हल्का होगा।कुछ तो कहने लगे-बाबा!यह हमारे यहां कब होगा?हमारी जिंदगी मे हो जाएगा कि नही?
साम्यवादियों को जनता के सामने निधड़क होकर अपने विचार रखना चाहिए और उसी के अनुसार करना भी चाहिए।हो सकता है कुछ समय तक लोग आपके भाव न समझ सकें और गलतफहमी हो,लेकिन अंत मे आपका असली उद्देश्य हिन्दू-मुसलमान सभी गरीबों को आपके साथ सम्बद्ध कर देगा।रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं,क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों का उदाहरण पर्याप्त मात्रा में नही है।
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