दास दासियों से घिरा
छप्पन भोग का आनन्द लेता राजा
सोचता था कि
दुनिया हमेशा ऐसी ही रहेगी
लेकिन चाबुक और लगान से दोहरा हुआ किसान
सोचता था कि दुनिया बदलनी ही चाहिए..
गुलामों के मालिक कुत्तों के साथ
गुलामों पर निगरानी रखते
और सोचते कि दुनिया हमेशा ऐसी ही रहेगी
लेकिन जलते सूरज
और मालिक के कोड़े की मार पीठ पर लिए
खेतों से कपास चुनते गुलाम
सोचते थे कि दुनिया बदलनी ही चाहिए..
मजदूरों को मशीन में डालकर
उसका रस चूसने वाला पूंजीपति
सोचता है कि दुनिया ऐसी ही रहेगी
लेकिन पूंजीपति के लिए
कच्चा माल बनने से इंकार करता मजदूर
भविष्य का सपना देखता मजदूर
सोचता है कि दुनिया बदलनी ही चाहिए..
स्त्री को फूली रोटी और
बिस्तर की सलवट समझने वाला मर्द,
स्त्री से उसके सारे रंग छीनने वाला पुरूष
सोचता है कि दुनिया ऐसी ही रहेगी
लेकिन दुनिया को विविध रंगों से रंगने का ख्याल लिए स्त्री
सोचती है कि दुनिया बदलनी ही चाहिए
और दुनिया बदल रही है,
निरंतर बदल रही है!
किसी के सोच के इंतज़ार में नहीं
बल्कि भविष्य के बच्चों की खिलखिलाहट देखने की चाहत में
दुनिया लगातार बदल रही है...
#मनीषआज़ाद
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