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Monday, 13 June 2022

सुरेंद्र प्रताप सिंह की रचनाओं का संकलन

अगर गैलीलियो, कोपरनिकस और ब्रूनो आदि ने कैथलिक आस्था पर चोट न मारी गई होती तो बेचारा बड़ा सा सूरज दुनिया के काफ़ी लोगों के लिए अब भी एक छोटी-सी चपटी धरती के चारों ओर गोल-गोल घूम रहा होता.

फिर दुनिया में न साइंटिफिक रिवोल्यूशन हुआ होता, न औद्योगिक क्रांति का रास्ता खुला होता.

अगर कबीर से लेकर फुले और पेरियार ने चोट न मारी होती तो भारत में आज भी इंसान मुँह और पैर से पैदा हो रहे होते. हिंदू आस्था पर चोट न पड़ती तो गणेश की मूर्तियां शायद अब तक दूध पी रही होतीं.

आस्था पर चोट से दर्द होता है. सही बात है. पर क्या किया जा सकता है? करना पड़ता है. गैलीलियो ने  किया, कोपरनिकस और ब्रुनो ने किया. वाल्टेयर ने किया. अपने देश में कबीर, फुले और पेरियार ने किया. बाबा साहब ने Riddles in Hinduism लिखी.

जब गणेश की मूर्तियां दूध पी रही थीं तो भारतीय पत्रकारिता के महानायक सुरेंद्र प्रताप सिंह ने दुरदर्शन पर अपने आधे घंटे के कार्यक्रम 'आज तक' (अब का आजतक कुछ और बन चुका है) में दिखाया था कि अगर गणेश की मूर्तियां दूध पीती हैं तो मोची का जूते ठोंकने वाला तिपाया भी उसी तरह गटागट दूध पीता है.

जब बाक़ी पत्रकार चमत्कार देख कर नमस्कार कर रहे थे तो सुरेंद्र प्रताप सिंह विज्ञान के सिद्धांत दिखा रहे थे.

आस्था के प्रतीक गणेश के मुकाबले मोची का तिपाया एक तीखा प्रतीक था.

दर्द हुआ होगा. लेकिन इस तरह एक अफवाह की 12 घंटे से कम समय में मौत सुनिश्चित हो गई. 

आर. अनुराधा ने सुरेंद्र प्रताप सिंह की रचनाओं का संकलन किया था, जो काफ़ी श्रमसाध्य काम था. 

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