Total Pageviews

Monday, 6 June 2022

महान अक्टूबर क्रांति की याद में ; मंथन अंक-- अक्टूबर क्रान्ति विशेषांक (तृतीय) -------------------------------------------------------------------------- लेखक : विद्यानिधि उपाध्याय (आजमगढ़ )


________________________________________________
महान अक्टूबर क्रान्ति 1917 में अक्टूबर के माह में आज से 100 वर्ष पूर्व मजदूरों व गरीब किसानों ने लेनिन के नेतृत्व वाली बोल्शेविक कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई में किया था उस समय वहाँ के मेहनतकश तबके रूस की जारशाही, सामंतवादी- पूंजीवादी व्यवस्था में फैली बेकारी, गरीबी, महगाई, भूखमरी की समस्याओं से और जमीदारों व्यापारियों पूंजीपतियों व जारशाही अधिकारियों के शोषण उत्पीड़न व दमन से त्रस्त थे। इसलिए मेहनतकशों ने इन वर्गों के निजी लाभ वाली जारशाही पूंजीवादी व्यवस्था को उखाड़ कर समूचे समाज के लाभ वाली समाजवादी व्यवस्था स्थापित करने के लिए अक्टूबर क्रान्ति सम्पन्न किया।

यह अक्टूबर क्रान्ति मार्क्सवाद के सिद्धान्तों पर चलकर लेनिन के दिशा निर्देशन में सम्पन्न हुयी। यह क्रान्ति एक युगान्तरकारी परिवर्तन लेकर आई व इस क्रान्ति के प्रभाव में रूस में बड़े भारी परिवर्तन हुए, साथ ही दुनियाभर में इस क्रान्ति का बड़ा भारी व व्यापक प्रभाव पड़ा, साथ ही भारत पर भी इस का प्रभाव पड़ा।

रूस में मजदूर किसान अपने राज्य के जरिये उद्योग व्यापार व कृषि के सामूहिक मालिक बने उनके उत्पादन व वितरण का विकास, शिक्षा, चिकित्सा का पूंजीपतियों के निजी लाभ कमाने की दृष्टि से नहीं बल्कि समूचे समाज के भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा-चिकित्सा आदि जैसी मूल भूत आवश्यकताओं को पूरा करने की दृष्टि से होने लगा। समाजवादी रूस ने वहाँ की समूची आबादी के लिए जितने कम समय में जितना विकास किया उतना विकास करने में इंग्लैण्ड फ्रान्स, अमरीका आदि पूंजीवादी देशों को 100-150 साल लगे थे। समाजवादी रूस के कमकर वर्गों के राज्य ने भूखमरी, बेरोजगारी, महमाई, भ्रष्टाचार, चोरी, जमाखोरी, गुण्डागर्दी, वेश्यावृत्ति जैसी समस्याओं को समाप्त कर दिया।

इस क्रान्ति का बड़ा भारी प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा। अक्टूबर की मजदूर क्रान्ति ने दुनिया भर में फैले चन्द पश्चिमी देशों की पूंजी की लूट के साम्राज्य की कड़ी को तोड़ दिया रूस से जारशाही पूंजीवाद को उखाड़ कर इस क्रान्ति के प्रभाव से पूरी दुनिया में सामंतवाद-पूंजीवाद साम्राज्यवाद के विरूद्ध आन्दोलन तेज हो गया, पूरी दुनिया को आन्दोलन करने व अपनी मुक्ति का पथ प्रदर्शक सिद्धान्त इस क्रान्ति से प्राप्त हो गया. पूर्वी यूरोप, चीन, कोरिया, वियतनाम, क्यूबा आदि के मेहनतकशों ने सामन्तों, पूंजीपतियों साम्राज्यवादियों को सत्ता से उखाड़कर अपनी सताये कायम किया। पूजीवादियों को भी इसके समाजवाद के भय से मजदूरों को वेतन मजदूरी, मकान, दवा, शिक्षा की सुविधायें बढ़ानी पड़ी,  पूंजीवादी राज्यों को भी कल्याण की योजनायें चलाने के लिए बाध्य होना पड़ा। इस क्रान्ति का बड़ा प्रभाव भारत पर भी पड़ा भारत उस समय ब्रिटेन का उपनिवेश था अक्टूबर क्रान्ति के प्रभाव में भारत में भी स्वतंत्रता आन्दोलन तेज हो गया। दूसरी ओर ब्रिटेन की तरफ से भी अपने साम्राज्यवादी हितों को बनाये रखने के प्रयास तेज हो गये। भारत में भी श्रमिकों किसानों के आन्दोलन तेज हो गये। जिसको ब्रिटेन ने सात से कुचलने का प्रयास किया व नये दमनकारी कानून बनाये। फिर भी भारत में कम्युनिस्ट साहित्य आने लगे, कम्युनिस्ट पार्टियाँ बनने लगी, मजदूरों के ट्रेड यूनियन बनने लगी। स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल एक क्रान्तिकारी होकर मार्क्सवाद व अक्टूबर क्रान्ति से प्रभावित होकर अलग हिसप्रेस का गठन कर लिया व अक्टूबर क्रान्ति जैसी क्रान्ति के लिए उसके नेता भगत सिंह आदि प्रयासरत हो गये उनको अक्टूबर क्रान्ति ने दिशा प्रदान कर दिया।

इस प्रकार की अक्टूबर क्रान्ति से घबरा कर और पूरी दुनिया में इसके व्यापक प्रभावों को देख कर सारे पूजीपति व साम्राज्यवादी एक होने लगे। जिस रूस में मेहनतकश वर्ग जमीदारों व व्यापारियों पूंजीपतियों से लड़़कर उन्हें सत्ता से उखाड़़कर अपना समाजवादी राज कायम किये थे। ये पराजित वर्ग सशरीर वहाँ मौजूद थे जो अक्टूबर क्रान्ति के समय से ही पूंजीवादियों व साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर समाजवाद को उखाड़़कर पूजीवाद की पुनः स्थापना में लगे हुए थे रूस में वे चार वर्ष तक गृहयुद्ध लड़ते रहे. अन्त में इन्हें हराकर मेहनतकशों ने अपना राज्य कायम रखा। 1955-56 तक समाजवाद में ये दुश्मन वर्ग दबे हुये रहे। 1956 में सुधारवाद संशोधनवाद के द्वारा मध्यम व उच्च मध्यम वर्ग मक्कारी व धोखाधड़ी करके पार्टी में आने व राज सत्ता के शीर्ष पर पहुँचने की छूट प्राप्त कर लिए। इसी छूट का लाभ लेकर खश्चेव- गोर्वाचोव जैसे गद्दारों के जरिये भीतरी पूजीवादी वर्गों ने पश्चिमी साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर बचे खुचे समाजवाद को उखाड़़ करके पूंजीवाद को 1989-90 में पुर्नस्थापित करने में सफल हो गया।

आज 1990 के बाद विश्व के हालात व परिस्थितियों को देखा जाय तो यह स्पष्ट दिखता है कि 1917 के पूर्व विश्व की परिस्थिती कैसी थी? व 1917 के बाद कैसी रही व 1989-90 के बाद विश्व की परिस्थतियों में क्या बदलाव आये और आज 2017 में देश दुनिया में क्या हालात है। समाजवादी रूस के विघटन के बाद भारत सहित पूरी दुनिया पर अमेरिका व पश्चिमी यूरोप के नेतृत्व में पूंजीपतियों का एकछत्र राज हो गया है। पूंजीपति व्यापारी मंत्री अधिकारी ठेकेदार आदि बेलगाम होकर महगाई बेकारी फैला रहे हैं। किस प्रकार मजदूरों व कर्मचारियों के अधिकार काटे जा रहे हैं, काम के घन्टे बढ़ाये जा रहे हैं. स्थाई नौकरियों समाप्त की जा रही है, अस्थाई नियुक्तियों की जा रही है, अनपढ़-तो अनपढ़ है पढ़े लिखे विशेषज्ञ डाक्टर, इंजीनियर तक मानदेय पर नियुक्त किये जा रहे हैं, दस्तकार छोटे उद्यमी व दुकानदार छोटे मझोले किसान टूटकर सम्पत्तिहीन साधनहीन होकर बेकार हो रहे हैं। अमीरी-गरीबी की खाई निरन्तर बढ़ती जा रही है। बहुसंख्यक मेहनतकश जनता बेकारी, महगाई, गरीबी, घर-मकान, अशिक्षा बीमारी आदि समस्याओं से ग्रस्त है। इस बहुसंख्यक मेहनतकश जनता के लिए अपनी उक्त समस्याओं का पूंजीवादी व्यवस्था के रहते कोई समाधान नहीं है। यदि समाधान है तो मात्र अक्टूबर क्रान्ति जैसी क्रान्ति का समाजवादी राज्य की स्थापना ही समाधान है। इसलिए मेहनतकशों के लिए अक्टूबर क्रान्ति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 1917 में थी। 

(आजमगढ़)

लेखक:  विद्यानिधि उपाध्याय

No comments:

Post a Comment