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यह वर्ष अक्टूबर क्रान्ति शताब्दी वर्ष है। यह क्रान्ति रूस में हुई थी। इस फ्रान्ति ने मजदूर किसान राज्य की स्थापना की थी, जिसे समाजवादी राज्य कहते हैं। समाजवाद के प्रति दुनिया भर के आम जन मानस में जो आस्था व विश्वास पैदा हुआ था, उसमें अक्टूबर क्रान्ति के बाद स्थापित समाजवाद की बढ़ी भूमिका थी। कारण सोवियत संघ में स्थापित समाजवाद यानी मजदूरों किसानों के राज्य में मजदूरों किसानों के पक्ष में बहुत कार्य किया था। जैसे, पूजीवादी साम्राज्यवादी शोषण का खात्मा कर दिया था मजदूरों किसानों के आम जीवन स्तर को ऊपर उठाया था समाज में मौजूद वर्गीय अन्तर को कम किया था। साथ ही इसने दुनिया भर के मजदूरों किसानों को प्रेरित करने का काम किया था कि यदि वे संगठित होकर संघर्ष करे तो उन्हें भी पूंजीवादी वर्गों के शोषण से मुक्ति मिल सकती है, उनका जीवन भी राहत हो सकता है। अक्टूबर क्रान्ति से प्रेरणा लेकर कई देशों के मजदूरों, किसानों व अन्य शोषित वर्गों ने संगठित होकर संघर्ष किया था और पूजीवादी साम्राजावाद से व उसके शोषण से मुक्ति पायी थी और अपना राज कायम किया था ये क्रांतियां जिस सिद्धान्त के तहत सम्पन्न हुई थी। यह सिद्धान्त है- मार्क्सवाद-लेनिनवाद।
अक्टूबर क्रान्ति कम्युनिस्ट पार्टी के नेतृत्व में वहाँ के मजदूरों किसानों ने सम्पन्न की थी। इसके अगुवा लेनिन थे। इन्होंने अक्टूबर क्रान्ति को सम्पन्न कराने के लिए जो सिद्धान्त दिये थे, उसे ही लेनिनवाद कहा जाता है। यह क्या है ? इसके कुछ पहलुओं पर यहाँ चर्चा की जायेगी। स्टालिन के शब्दों में लेनिनवाद साम्राज्यवाद व सर्वहारा क्रान्ति के युग का मार्क्सवाद है तात्पर्य यह कि लेनिनवाद मार्क्सवाद ही है। मार्क्स एंगेल्स के मरने के बाद प.यू. ब्रिटेन आदि का पूंजीवादी विकास जिस अवस्था में पहुंचा था, उसे साम्राज्यवाद कहा गया। इसकी लेनिन ने बड़ा ही सटीक व वैज्ञानिक व्याख्या की थी व इससे मजदूर किसान वर्गों को कैसे मुक्ति मिले इसका भी उन्होंने रास्ता बताया था साम्राज्यवाद की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए लेनिन ने कहा था कि साम्राज्यवाद की मुख्य विशेषता उसकी वित्तीय पूंजी है। उन्होंने उसके बारे में बताया कि उत्पादन का सकेन्द्रण इससे इजारेदारियों की उत्तपत्ति और बैंकिंग और औद्योगिक इजारेदारियों का एकीकरण ही वित्तीय पूंजी का सारतत्व है। इस पूंजी की कई विशेषतायें है. जैसे यह पूंजी जिस देश में विनियोजित होती है उसका विकास तीव्र गति से होने लगता है, लेकिन यह विकास पूंजीवादी विकास है व असमान विकास होता है, दूसरे यह हर जगह प्रभुत्व जमाने की चेस्टा करती है।
स्वतंत्र व प्रभुसत्ता सम्पन्न देशों को भी वित्तीय पूजी अपने अधीन करने की चेस्टा करती है व उसे अपने अधीन कर लेती है। इसके लिए वह वहाँ के नेताओं व अधिकारियों को घूस देती है व अन्य कई हथकण्डे इस्तेमाल करती है ताकि ये देश भी उसके अर्थव्यवस्था के अंग बन जॉय इस पूंजी का एक प्रमुख गुण यह भी है कि वह मजदूर नेताओं को व मजदूरों के एक नन्हें तबके को घूस देकर उच्च वेतन भत्ते व अन्य प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लेती है। ये साम्राज्यवादी पूंजीपतियों के दलाल बन जाते हैं।
वित्तीय पूंजी का अर्थव्यवस्था, राजनीतिक व्यवस्था, शिक्षा, संस्कृति, यातायात, दूरसंचार व सैन्य आदि हर क्षेत्रों में प्रभुत्व फैल जाता है। मुट्ठी भर वित्तीय सम्राट पूरी दुनिया को लूटपाट करने के लिए आपस में बांट लेते हैं। इसी तरह पूरी दुनिया को चंद साम्राज्यवादी शंक्तिया भी आपस में बाट लेती हैं, ताकि उनका लूटपाट निर्वाध ढंग से चलता रहे। उनके लूट का तरीका है- साम्राज्यवादी देश पिछडे़ व अधीन देशों में अपने उद्योगों के बने माल को बेचकर लाभ मुनाफा कमाते हैं। दूसरे वहाँ के खनिज सम्पदा, कृषिगत उपभोग के सामानों व कृषि पर आधारित उद्योगों के सामानों जैसे चाय चीनी, जूट इत्यादि को सस्ता लेकर लूटते है। तीसरे, पिछड़े़ देशों को कर्ज देकर उससे सूद दरसूद लेते हैं। और पिछड़े देशों को कर्ज देते हुए वहाँ की शिक्षा यातायात दूर संचार व सैन्य क्षेत्रों की नीतियां बदलवा लेते हैं ताकि वहाँ की अर्थव्यवस्था साम्राज्यवादी अर्थव्यवस्था से जुड़ जायें, उसकी अंग बन जाय
पूंजीवादी साम्राज्यवाद के लूट से कैसे मुक्ति मिले, इसका रास्ता भी लेनिन ने बताया है। वह है-- विकसित पूंजीवादी साम्राज्यवादी देशों के मजदूर वर्ग अपने देश के पूजीवादी वर्गों के विरोध में समाजवादी क्रांति करें व पराधीन देशों के लोग राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन करें। सर्वहारा क्रान्ति कैसे सम्पन्न हो? उसके लिए संगठनात्मक स्वरूप कैस हो? इसके बारे लेनिन ने बताया है कि संगठन के केन्द्र में ऐसे लोगों को होना चाहिए जिनका मुख्य पेशा क्रान्ति करना हो यानी पार्टी का नेतृत्व पेशेवर क्रान्तिकारियों के हाथ में होना चाहिए जिन्हें बुद्धिजीवियों या मजदूरों या किसी अन्य वर्गों के बीच से निकालकर प्रशिक्षित किया गया हो। पार्टी संगठन में नेतृत्वकारी भूमिका ऐसे लोगों के हाथ में ही होनी चाहिए। इन्हें सामाजिक जनवाद की व्यवहार में मजदूरों किसानों को संगठित करने की पूंजीवादी साम्राज्यवाद की लूटपाट व उनके हर जुल्म अत्याचार का भण्डाफोड करने की शिक्षा प्राप्त हो व हर तरह के जुल्म अत्याचार से विचलित न होने की क्षमता हो व व्यवहार में ऐसा करने के लिए तत्पर हो, ताकि वे मजदूरों किसानों में वर्गीय चेतना फैला सके। दूसरे ऐसे लोग भी संगठन के सदस्य बन सकते हैं जो पेशेवर क्रांतिकारी न हो। उनके बारे में लेनिन का कहना था जो उस समय विवाद का मुद्दा भी बना था। वह यह कि कम्युनिस्ट पार्टी के संगठन का सदस्य कौन हो? कुछ लोगों का कहना था कि लोग जो पार्टी को चन्दा दे वे संगठन के सदस्य हो सकते हैं। इस पर लेनिन का कहना था कि संगठन का सदस्य वही हो सकता है जो न केवल पार्टी को चन्दे दे बल्कि वह किसी सागनिक इकाई के अनुशासन में रहकर व्यवहारिक व सैद्धान्तिक कार्य भी करे। लेनिन के बताये सिद्धान्त व संगठनात्मक स्वरूप व उनके बताये कार्यनीति व रणनीति के अनुसार ही अक्टूबर क्रान्ति सम्पन्न हुई। इसी से लेनिन के सिद्धान्तों की पुष्टि भी हुई जिसे लेनिनवाद कहते है।
प्रश्न है, आज लेनिन की साम्राज्यवाद की व्याख्या और उससे मुक्ति पाने का सिद्धान्त जैसे सर्वहारा क्रांति का सिद्धान्त व राष्ट्र मुक्ति आन्दोलन के सिद्धान्त की जरूरत खत्म हो गई है? हाँ। उन लोगों के लिए खत्म हो गयी है जो विकसित देशों को मात्र विकसित देश मानते हैं। उनके द्वारा पिछडे़ देशों के लेने-देन को आपसी बराबरी का लेन देन मानते हैं, जबकि वास्तव में विकसित देशों का यह चरित्र नहीं है। दूसरी तरफ उन तमाम लोगों में लेनिन के उपरोक्त सिद्धान्तों की आज भी जरूरत है जो विकसित देशों को मात्र विकसित देश नहीं बल्कि विकसित साम्राज्यवादी देश मानते हैं जो सैकड़ों साल से दुनिया के पिछड़े देशों को लूट कर विकसित हुए हैं व आज भी लूट रहे हैं। दूसरे पिछड़े देशों के साथ उनके सम्बन्धों को आज भी अबरावर प्रभुत्वकारी व वर्चस्वकारी मानते है । हां एक अन्तर आया है आज सबसे प्रभुत्वशाली देश इंग्लैण्ड नहीं अमेरिका है। साम्राज्यवादी देशों का सरगना वही है। रूस चीन भी अब समाजवादी देश नहीं रहे यह भी आज साम्राज्यवादी व्यवस्था के एक अंग के रूप में उनसे जुड़े़ हुए हैं। सबूत इसका सबूत देने से पहले भारत जैसे देशों की साम्राज्यवादी लूटपाट के सन्दर्भ को देखा जाय जैसे भारत आज भी साम्राज्यवादी देशों से कर्ज लेता है। उस पर सूद दर सूद अदा करता है। जैसे सितम्बर सन् 2016 में भारत पर 484.3 बिलियन अमरीकी डालर का कर्ज चढ़ा हुआ था। कर्ज देते हुए साम्राज्यवादी देश व उनकी विश्वबैंक व मुद्राकोष जैसी संस्थायें कई प्रकार की शर्त लगा देते हैं जैसे सन् 1991 में उन्होंने भारत पर कर्ज देते हुए लगाया था। जैसे रूपये का अवमूल्यन करवाया, विदेशी साम्राज्यवादी पूंजीपतियों को भारतीय पूंजीपतियों की तरह उद्योग खोलने लाभ मुनाफा कमाने का अधिकार दिया राष्ट्रीयकरण की जगह निजीकरण करवाया। उनके इस काम में भारतीय पूंजीपतियों का भी सहयोग व समर्थन रहा। रूपये का अवमूल्यन करवाने से यहाँ के सामानों जैसे चाय, चीनी, कपड़ा जैसे कृषिगत सामान व लोहा, कोयला, आभ्रक जैसे सामान साम्राज्यवादी देशों के वास्ते सस्ते हो गये और उनके देश के सामान जिसे भारत आयात करता है, वे महंगे हो गये तीसरे भारत पर चढ़े कर्ज-मूलधन और व्याज की राशियां रूपये में बढ़ गयी। परिणाम भारत जैसे देश व्यापार में हमेशा घाटे में रहते है। भुगतान असंतुलन के संकट में फंसे रहते हैं। इससे ये साबित होता है कि लेनिन ने साम्राज्यवाद के लूट के जिन तरीकों को बताया था यह भारत जैसे देशों पर आज भी लागू होता है। दूसरे पूंजीवादी साम्राज्यवादी का चरित्र प्रभुत्वकारी व वर्चस्वकारी होता है. यह साम्राज्यवादी अमेरीका के नेतृत्व में साम्राज्यवादी देशों का इराक व अफगानिस्तान पर सैन्य हमला करके उसे गुलाम बनाने से साबित होता है। ठीक उसी तरह सितम्बर महीने में अमेरिका द्वारा उ. कोरिया पर संयुक्त राष्ट्र से प्रतिबन्ध लगवाना और उसके बाद चीन का उ. कोरिया के कम्पनियों को अपने देश से छः महीने में कारखानों को बन्द करने का आदेश देना। यह वित्तीय पूजी द्वारा दुनिया के स्वतंत्र से स्वतंत्र देश को अपने अधीन करने की कोशिश का उदाहरण है. साथ ही कम्युनिस्ट चीन के साम्राज्यवादी व्यवस्था के एक अंग के रूप में जुड़ जाने का भी ज्वलंत उदाहरण है।
इतना सब होते हुए भी आज कोई लेनिन के साम्राज्यवाद के व्याख्या की आज के युग में लागू न होना कहे तो इसका मतलब है, यह निश्चित रूप से पूंजीवादी साम्राज्यवादी पूंजीवानों का दलाल व समर्थक होगा। नहीं तो उपरोक्त उदाहरणे बताते है कि लेनिन ने जो साम्राज्यवाद के रूप व गुण बताये थे वह आज हुबहू लागू होता है और आज यदि साम्राज्यवादी लूट व शोषण मौजूद है तो इससे मुक्ति का सिद्धान्त सर्वहारा कान्ति व राष्ट्रीय मुक्ति आन्दोलन की आज मभी जरूरत है। हाँ, यह जरूरत साम्राज्यवादियों, पूंजीपतियों व्यापारियों, मंत्रियों व अधिकारियों व अन्य ऊंचे वेतन भत्ते पाने वालों को नहीं है। लेकिन मजदूरों किसानों व अन्य शोषित वर्गों को तो उसकी जरूरत है ही।
गाजीपुर
बहादत्त तिवारी
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