शहीदे आजम भगतसिंह के 115वें जन्मदिवस (28 सितम्बर, 2022) के अवसर पर उन्हें याद करते हुए प्रस्तुत है दो फिल्म। इस फ़िल्म का सामूहिक प्रदर्शन किया जाना चाहिये और जहां तक हो सके सबको को साथ मिल कर देखना चाहिये।
भगतसिंह के जीवन पर गौहर रज़ा द्वारा निर्मित फ़िल्म *इन्क़लाब'*
यह फ़िल्म भगतसिंह के जीवन पर बनी है जिसमें उनकी विचार यात्रा को दिखाया गया है। यह फ़िल्म जनता के बीच आज के हुक्मरानों द्वारा फैलाये गये उन तर्कों का खण्डन करती है जो भगतसिंह को एक ऐसे जोशीले क्रान्तिकारी के रूप में पेश करते हैं, जो बम-पिस्तौल के ज़रिए आज़ादी लाना चाहते थे।
यह फ़िल्म यह बताती है कि भगतसिंह एक जोशीले क्रान्तिकारी होने के साथ-साथ एक विचारक भी थे जिनके पास एक बेहतर समाज का ख़ाका मौजूद था। यह फ़िल्म यह सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या आज भगतसिंह को याद करने का मतलब महज़ उनकी तस्वीर पर फूल-माला चढ़ाना है, या फिर आज उनके विचारों को पुनर्जीवित करना है!?
https://youtu.be/CwFX2jkGyRk
आनन्द पटवर्धन द्वारा निर्देशित *'उना मित्रां दी याद प्यारी' (In the memory of friends)*
यह फ़िल्म आज प्रतिक्रियावादी ताक़तों द्वारा भगतसिंह के नाम को सहयोजित करने के ऊपर बनी है। आज़ादी के बाद देश के हुक्मरानों से लेकर धार्मिक कट्टरपन्थियों ने भगतसिंह को उनके विचारों से काटकर अपने अनुरूप ढालने की कोशिश की। यह फ़िल्म इन्हीं कोशिशों पर चोट करती हुई भगतसिंह के विचारों को प्रतिबिम्बित करती है।
इस फ़िल्म में 1984 में हुए सिख दंगों के दौरान हुई बर्बरता का ज़िक्र आता है, और साथ ही खालिस्तानी और हिन्दू कट्टरपन्थियों की प्रतिक्रियावादी विचारों को भी बेनक़ाब किया गया है। इसमें यह दिखाया गया है कि किस प्रकार खालिस्तानियों ने भगतसिंह (जो कि एक नास्तिक थे) के नाम को जबरन सिख पहचान से जोड़कर अपनी नफ़रती राजनीति को अंजाम देने का काम किया। साथ ही उस वक्त सत्ता में बैठे लोग भगतसिंह के नाम को उनके विचारों से काटकर अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। लेकिन इस दौरान कुछ ऐसे भी लोग थे, जो पंजाब समेत देशभर में भगतसिंह के विचारों का प्रचार कर रहे थे। वे लोग भगतसिंह द्वारा दिये सन्देशों को जन-जन तक पहुँचाने का काम कर रहे थे।
https://youtu.be/aE8TV7ZqAHU
भगतसिंह के जीवन पर गौहर रज़ा द्वारा निर्मित फ़िल्म *इन्क़लाब'*
यह फ़िल्म भगतसिंह के जीवन पर बनी है जिसमें उनकी विचार यात्रा को दिखाया गया है। यह फ़िल्म जनता के बीच आज के हुक्मरानों द्वारा फैलाये गये उन तर्कों का खण्डन करती है जो भगतसिंह को एक ऐसे जोशीले क्रान्तिकारी के रूप में पेश करते हैं, जो बम-पिस्तौल के ज़रिए आज़ादी लाना चाहते थे।
यह फ़िल्म यह बताती है कि भगतसिंह एक जोशीले क्रान्तिकारी होने के साथ-साथ एक विचारक भी थे जिनके पास एक बेहतर समाज का ख़ाका मौजूद था। यह फ़िल्म यह सोचने को मजबूर कर देती है कि क्या आज भगतसिंह को याद करने का मतलब महज़ उनकी तस्वीर पर फूल-माला चढ़ाना है, या फिर आज उनके विचारों को पुनर्जीवित करना है!?
https://youtu.be/CwFX2jkGyRk
आनन्द पटवर्धन द्वारा निर्देशित *'उना मित्रां दी याद प्यारी' (In the memory of friends)*
यह फ़िल्म आज प्रतिक्रियावादी ताक़तों द्वारा भगतसिंह के नाम को सहयोजित करने के ऊपर बनी है। आज़ादी के बाद देश के हुक्मरानों से लेकर धार्मिक कट्टरपन्थियों ने भगतसिंह को उनके विचारों से काटकर अपने अनुरूप ढालने की कोशिश की। यह फ़िल्म इन्हीं कोशिशों पर चोट करती हुई भगतसिंह के विचारों को प्रतिबिम्बित करती है।
इस फ़िल्म में 1984 में हुए सिख दंगों के दौरान हुई बर्बरता का ज़िक्र आता है, और साथ ही खालिस्तानी और हिन्दू कट्टरपन्थियों की प्रतिक्रियावादी विचारों को भी बेनक़ाब किया गया है। इसमें यह दिखाया गया है कि किस प्रकार खालिस्तानियों ने भगतसिंह (जो कि एक नास्तिक थे) के नाम को जबरन सिख पहचान से जोड़कर अपनी नफ़रती राजनीति को अंजाम देने का काम किया। साथ ही उस वक्त सत्ता में बैठे लोग भगतसिंह के नाम को उनके विचारों से काटकर अपने फ़ायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे थे। लेकिन इस दौरान कुछ ऐसे भी लोग थे, जो पंजाब समेत देशभर में भगतसिंह के विचारों का प्रचार कर रहे थे। वे लोग भगतसिंह द्वारा दिये सन्देशों को जन-जन तक पहुँचाने का काम कर रहे थे।
https://youtu.be/aE8TV7ZqAHU
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