फ़िल्म मट्टो की साइकिल एक ऐसे दिहाड़ी मज़दूर की कहानी है जिसका पूरा वजूद और रोज़ी रोटी एक टूटी फूटी साइकिल पर टिकी है. ये फ़िल्म इस साल उन हज़ारों मज़दूरों की याद दिलाती है जो लॉकडाउन के दौरान पैदल या साइकिल पर ही घरों के लिए निकल पड़े थे.
मट्टो रोजाना अपनी साइकिल पर सवार होकर कोसों दूर दिहाड़ी मजदूरी के लिए जाता है. रोजाना की कमाई से जैसे- तैसे अपने घर का पालन-पोषण करता है. मट्टो के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं. एक दिन काम से वापस लौट रहा मट्टो सब्जी खरीदने के लिए जब सड़क के पार साइकिल उतारता है, तो दूर से आता ट्रैक्टर उसकी साइकिल को रौंदते हुए निकल जाता है. अपने हीरो को यूं मरता देख मट्टो का दिल टूटता है. फिर यहां से शुरू होती है मट्टो की दूसरे साइकिल को खरीदने की जद्दोजहद.
हालांकि दिहाड़ी मजदूरों के जीवन के अन्य सचेतन संगठित संघर्ष के पहलू भी है, और इस पर कोई फ़िल्म या नाटक शायद नही है, दिहाड़ी मजदूर के जिंदगी के ऊपर बनी यह फ़िल्म स्वागत योग्य है।
फ़िल्म में लीड रोल किया है निर्देशक प्रकाश झा ने और इसे बनाया है एम गनी ने. ये फ़िल्म बुसान फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाई गई है.
फ़िल्म की एक झलक के लिये लिंक
https://youtu.be/wwH3mdjbKac
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