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Sunday, 11 September 2022

कविता कृष्णन , लिबरल वायरस

कविता कृष्णन जैसे लिबरल वायरस से ग्रस्‍त वामपन्थियों के (कु)तर्कों का जवाब आज से कई दशकों पहले ही मॉरिस कॉर्नफ़ोर्थ ने इन शब्‍दों में द‍िया था जो आज भी बिल्‍कुल सटीक है, बशर्ते कि आपकी वर्गीय दृष्टि साफ़ हो: 


''इस प्रकार यह तर्क दिया जाता है कि यदि हम किसी पूँजीवादी देश में पूँजीवाद का ख़ात्मा करने और समाजवाद को स्थापित करने के लिए आन्दोलन करने के मज़दूरों के जनवादी अधिकार की रक्षा करते हैं तो हम किसी समाजवादी देश में दूसरे लोगों को समाजवाद का ख़ात्मा करने और पूँजीवाद की पुनर्स्थापना करने के लिए आन्दोलन करने का अधिकार देने से इन्कार नहीं कर सकते। ऐसा तर्क देने वाले लोग जब यह देखते हैं कि सोवियत संघ में पूँजीवाद की पुनर्स्थापना का प्रयास करने वाले प्रति-क्रान्तिकारी गुटों को उनके उद्देश्यों की पूर्ति की सम्भावना से वंचित कर दिया गया है तो वे दहशत में आ जाते हैं और हाथ उठाकर चीखने-चिल्लाने लगते हैं : ''ऐसा क्यों? यह तो ग़ैर-जनवादी कृत्य है, यह अत्याचार है !'' 


यह तर्क शोषण का अन्त करने के लिए विशाल बहुसंख्य जनता के हित में लड़ने और शोषण को क़ायम रखने और फिर से वापस लाने के लिए एक छोटी-सी अल्पसंख्या के हित में लड़ने के बीच के अन्तर को नज़रअन्दाज़ करता है; यह विशाल बहुसंख्या के अपने मामलों को अपने हितों के अनुसार संचालित करने के अधिकार की रक्षा करने और विशाल बहुसंख्या को ग़ुलामी के बन्धनों में बाँधे रखने के एक छोटी-सी अल्पसंख्या के अधिकार की रक्षा करने के बीच के अन्तर को नज़रअन्दाज़ करता है; दूसरे शब्दों में, यह तर्क आगे बढ़ने और पीछे लौटने के बीच, अग्रगमन और प्रतिगमन के बीच, क्रान्ति और प्रतिक्रान्ति के बीच के अन्तर को नज़रअन्दाज़ करता है। 


निस्संदेह, यदि हम समाजवाद को हासिल करने के लिए लड़ते हैं और यदि हम उसे हासिल कर लेते हैं तो हमने जो हासिल किया है हम उसकी रक्षा करेंगे और उस उपलब्धि को किसी गुट द्वारा नष्ट किये जाने की ज़रा-सी भी सम्भावना नहीं छोड़ेंगे। पूँजीपतियों और उनके टुकड़खोरों को ''सामान्य तौर पर'' जनवाद के बारे में चीखने-चिल्लाने दो। जैसाकि लेनिन ने कहा है, यदि हमारे अन्दर ''परिस्थिति का विश्लेषण करने की बुद्धिमत्ता'' है तो हम उनके धोखे में नहीं आएँगे।'' 


- मॉरिस कॉर्नफ़ोर्थ

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