मज़दूर वर्ग का राजनीतिक लक्ष्य मज़दूरी को बढ़ाना या सभी की मज़दूरी को बराबर कर देना नहीं है बल्कि मज़दूरी - व्यवस्था को ही समाप्त करना है। मज़दूरी को बढ़ाने के लिए सतत् जारी संघर्ष को भी इस राजनीतिक लक्ष्य के लिए संघर्ष का एक अंग बनाना हमारे लिए अनिवार्य है अन्यथा वह एक अर्थवादी संघर्ष होगा जो हमारे राजनीतिक लक्ष्य से हमें काट देगा, राजनीतिक रूप से सोचने और राजनीतिक प्रश्न उठाने यानी राज्यसत्ता का प्रश्न उठाने की क्षमता से हमें वंचित कर देगा। पूँजीपति वर्ग यही चाहता है। जो ट्रेड यूनियनें मज़दूर वर्ग की आर्थिक माँगों के लिए संघर्ष को अर्थवादी स्वरूप देकर मज़दूर वर्ग का अराजनीतिकरण करती हैं, वे पूँजीवादी ट्रेड यूनियनें हैं जो कि मज़दूर वर्ग की समूची गतिविधि को पूँजीवादी दायरों के भीतर कैद रखना चाहती हैं। भारत में सभी संसदीय वामपंथी चुनावबाज़ पार्टियों जैसे माकपा, भाकपा, भाकपा माले लिबरेशन आदि तथा अन्य पूँजीवादी पार्टियों की केन्द्रीय ट्रेड यूनियनें जैसे कि सीटू, एटक, इण्टक व ऐक्टू यही काम करती हैं।
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