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Sunday, 11 September 2022

ब्रह्माण्ड स्थिर या परिवर्तनीय

1915 (या शायद 1916 मुझे पक्का नहीं पता) में जब आइंस्टाइन ने जनरल थियरी ऑफ़ रिलेटिविटी यानि सामान्य सापेक्षिता का सिद्धांत प्रस्तुत किया तो उस वक़्त आइंस्टाइन सहित लगभग तमाम वैज्ञानिक ब्रह्माण्ड को स्थिर और अपरिवर्तनीय मानते थे। लेकिन स्थिर ब्रह्माण्ड की यह व्याख्या आइंस्टाइन की सामान्य सापेक्षिता में फिट नहीं बैठ रहा था।
आइंस्टाइन ने इस पर बहुत दिमाग़ लगाया।

अच्छा उससे पहले बात एक मिसकांसेप्शन यानि गलत धारणा की, जोकि सामान्य जनमानस में आइंस्टाइन के बारे में बनी हुई है। वो यह कि आइंस्टाइन अपने दिमाग़ में सिर्फ थियरी बनाते थे और फिर दूसरे लोग उन थियरीज को प्रयोग की कसौटी पर परखते थे/हैं। प्रयोग से आइंस्टाइन का सरोकार नहीं था। कुछ हद्द तक सही होने के बावजूद यह धारणा पूरी तरह से सच नहीं है। यह ठीक है कि आइंस्टाइन अपने दिमाग़ में बहुत सारे मानसिक प्रयोग करते थे लेकिन उनके ये मानसिक प्रयोग ठोस अवलोकन और प्रयोग से ही प्रेरित होते थे। आइंस्टाइन ने पूरे एक दस साल तक गणित सीखा और बहुत सारी गलत थियरीटिकल लीड्स को फॉलो किया और फिर एक दशक के बौद्धिक और गणितीय संघर्ष के बाद एक सिद्धांत पर पहुंचे जो गणितीय रूप से फिट बैठ रही थी।
लेकिन समस्या अभी भी थी। ब्रह्माण्ड तो स्थिर था (मतलब उस वक़्त यही माना जाता था)।

तो अब?

अब आइंस्टाइन के पास दो रास्ते थे। या तो अपनी थियरी को मॉडिफाई किया जाए। या फिर यह मान लिया जाए कि ब्रह्माण्ड स्थिर नहीं है। आइंस्टाइन ने पहला रास्ता चुना। उन्होंने अपनी इकवेशन में एक कोस्मोलॉजिकल कांस्टेन्ट फिट कर दिया, lambda जिसका सिंबल होता है (λ). साधारण शब्दों में कहें तो आइंस्टाइन ने स्थिर और अपरिवर्तनीय ब्रह्माण्ड की अवधारणा के अनुसार अपनी इकवेशन को मॉडिफाई कर दिया था।
एक और भौतिकशास्त्री हो गए हैं सोवियत संघ के अलेग्जेंडर फ्रीडमैन। उन्होंने कहा कि गणितीय तौर पर अगर गणना करें तो ब्रह्माण्ड असल में स्थिर नहीं है बल्कि फ़ैल रहा है। और यह भी कि ब्रह्माण्ड का यह फैलाव खगोलीय पिंडों के आपसी गुरुत्वाकर्षण बल की वजह से कम होता जाना चाहिए।

लेकिन अभी यह अवलोकन में नहीं आया था।

लेकिन उससे पहले पोप पायस बारहवें की वह घोषणा जिसमें उन्होंने डींग मारी थी कि अगर महाविस्फोट से ब्रह्माण्ड की शुरुआत हुई है तो इसका मतलब कोई सृष्टिकर्ता भी जरूर है। असल में हुआ यूँ था कि महाविस्फोट यानि बिग बैंग का सिद्धांत देने वाले सबसे पहले शख़्स थे एक पोलिश भौतिकशास्त्री जॉर्जस लेमात्र। मजे की बात ये है कि लेमात्र एक भौतिकविद होने के साथ साथ एक पुजारी भी थे। लेकिन रुकिए। बात बस इतनी ही नहीं है। लेमात्र ने पढ़ाई इंजीनियरिंग की की थी। फिर वह प्रथम विश्वयुद्ध में तोपची के तौर पर भर्ती हुए और वीरता पदक प्राप्त किया। फिर वह किसी धार्मिक मठ में पुजारी की शिक्षा लेने लगे और पुजारी बनते बनते उनका झुकाव गणित की तरफ हो गया। वहां से वह खगोलशास्त्र का अध्ययन करने लगे और फिर हारवर्ड में उन्होंने भौतिकी में अपनी दूसरी डॉक्टरेट पूरी की। बहरहाल। दूसरी डॉक्टरेट से पहले 1927 में उन्होंने आइंस्टाइन की सामान्य सापेक्षिता की इकवेशनों को सुलझा लिया और बताया कि यह थियरी असल में एक अस्थिर ब्रह्माण्ड को साबित करती है और हमारा यह ब्रह्माण्ड असल में फ़ैल रहा है।

परन्तु उस वक़्त के वैज्ञानिक हलकों में ब्रह्माण्ड स्थिर था। आइंस्टाइन ने भी लेमात्र का विरोध करते हुए मजाक में कहा कि तुम्हारा गणित तो सही है लेकिन तुम्हारी फिजिक्स बुरी है।
लेमात्र पर इसका लेशमात्र भी प्रभाव नहीं पड़ा और 1930 में आते आते उन्होंने बताया कि हमारा फैलाव कर रहा ब्रह्माण्ड असल में एक शुरुआती बिंदू से शुरू हुआ था जिसको उन्होंने "प्राइमवल एटम" का नाम दिया।

1951 में जब पोप ने इस सिद्धांत के आधार पर सृष्टिकर्ता के होने की घोषणा की तो लेमात्र, जोकि खुद भी एक ईसाई पुजारी थे, ने तुरंत इसका विरोध किया और कहा कि इस तरह के सिद्धांत को धार्मिक या आध्यात्मिक दायरों से बाहर रखा जाना चाहिए। बिग बैंग हुआ था या नहीं, यह धार्मिक नहीं बल्कि वैज्ञानिक प्रश्न है, इसे वैज्ञानिक तरीके से ही हल किया जाना चाहिए। स्टीफन हाकिंग लिखते हैं कि बिग बैंग से आप यह मतलब निकाल सकते हैं कि किसी सृष्टिकर्ता ने बिग बैंग किया होगा, लेकिन साथ ही इससे यह मतलब भी निकल सकता है कि ब्रह्माण्ड की शुरुआत के लिए किसी सृष्टिकर्ता की जरूरत ही नहीं है। मतलब बिग बैंग का होना हमारी मान्यताओं पर निर्भर नहीं है। हम आस्तिक हैं या नास्तिक उससे ब्रह्माण्ड को कोई फर्क नहीं पड़ता।

खैर लेमात्र के विरोध के बाद न तो पोप ने और न ही चर्च ने, कभी इस प्रश्न को उठाया और न ही इस विषय पर चर्च की तरफ से कोई बयान आया। हालांकि विश्व गुरू नामक एक देश के कुछ मूढ़मति अक्सर बिग बैंग और सापेक्षिता के सिद्धांत को अपने वेद पुराणों में पाए जाने की घोषणा करते रहते हैं। उस पर अलग से चर्चा करेंगे कभी।

लेकिन न तो फ्रीडमैन और न ही लेमात्र वैज्ञानिकों को यह विश्वास दिला पाए कि ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा था। 

यह काम किया एडविन हब्बल ने। हब्बल एक अमेरिकी खगोलविद थे। हब्बल शुरू में एक वकील थे। लेकिन बाद में वह फिजिक्स की तरफ आकर्षित हुए और फिर खगोलीय भौतिकी की तरफ.....

खैर.. वो कहानी फिर कभी।

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