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Thursday, 15 September 2022

मेरी प्रियतमा!

#मेरी प्रियतमा!
फिर तेरी कहानी याद आई
तुम्हारा पहला स्पर्श
तुम्हारा पहला आलिंगन
तुम्हारी इंतजार करती आंखें 
और वे उदास लम्हें
जब हम बिछुड़ते थे
एक लंबे अंतराल के लिए
और तुम आ गई थी अचानक से
समय की रफ्तार और 
नियति के आवेग को चुनौती देते हुए 

हमारे पास युवा मन के उत्साह और स्वप्न के सिवा  कुछ और नहीं था
अपने स्वप्न को आकार देने के लिए
हमने साहस किया
विस्तृत संसार में अपने जैसे उपेक्षित समाज में रसाबसा
उनके कठोर श्रम से जुड़े जीवन के सौंदर्य को जिया लिया
खुद में समाहित किया 
वक्त के साथ उसने कभी फूल खिलाया
कभी जीवन के झंझावातों में
विखर सा गया
हमने बार बार चुना है
अपने इस विखरे संसार को 
संवारा है गढ़ा है
 इसे बारबार
और खूबसूरत बनाने के लिए

तुम आज भी उतनी ही भावनाओं के आवेग से भरी हो 
उतना ही आवेग उन्मतता 
तुम्हारे भुजाओं में है
झुठलाते हुए पुरूष के दंभ को
तुम्हारी इन भुजाओं के आलिंगन  में
मेरे अंदर का पुरूष
हमेशा पराजित होता रहा 
और हमेशा जीतता रहा मैं 
 तुम्हारे सहचार्य में 
जीवन के सबसे कठिन दौर को 

मेरी प्रियतमा
तुम्हारी बूढ़ी हड्डियों में  
सिकुड़ती त्वचा और
 ढीली पड़ती मांसपेशियों में
जो ऊर्जा शेष है
यह भावी पीढ़ियों के लिए 
अभी भी गढ़ रही है
कोमलता और फौलाद से भरा स्वप्न
यह स्वप्न ही है हमारा तुम्हारा
धरोहर 
जिसे संभाल रखा है हमने
इस अंधेरे दौर में-

-- नरेन्द्र

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