क्रांतिकारी इतिहास हमें बताता है कि जहाँ त्रोत्स्किवादी एक देश में समाजवाद के सिद्धांत का विरोध का माला जपते रहे थे, वही ठीक इसके उलट माओवादी एक देश के एक इलाके में लाल सत्ता कायम रह सकने की परिस्थितियों पर विचार करते रहे थे। मार्क्सवादी सिद्धांत की भाववादी समझ के कारण त्रोत्स्किवादी महज लफ्फाजी करने के सिवा एक कदम भी क्रान्ति की तरफ व्यवहार में आगे नहीं बढ़ पाए। जबकि माओवादियो ने न केवल चीन में बल्कि कई देशो में एक इलाके में लाल सत्ता स्थापित होने और कायम रहने की भौतिक परिस्थितियों का विश्लेष्ण किया और लाल सत्ता की स्थापना भी की। उस लाल सत्ता का महत्व इससे कम नहीं होता की उन परिस्थितियों में वे उस इलाके में कितने दिन टिकी रही। वैसे ही सर्वहारा सत्ता या उसके द्वारा समाजवाद के निर्माण की दिशा में उठाये गए कदम का महत्व इससे कम नहीं होता कि वे उस देश में कितने दिनों तक टिकी रही। मार्क्सवादी हमेशा परिस्थितियों से अलग किसी सिद्धांत पर आधारित कर के अपनी दिशा निर्धारित नहीं करते बल्कि परिस्थितियों के ठोस विश्लेष्ण के आधार पर अपने व्यवहार का निर्धारण करते है और क्रांति की दिशा में आगे बढ़ते है। क्रांति का उद्देश्य हमेशा लाल सत्ता की स्थापना होता है और यह हमेशा किसी बनी बनायी सिधांत से नहीं बल्कि मार्क्सवादी सिद्धांत के सहारे परिस्थितियों के ठोस और वैज्ञानिक विश्लेष्ण से निर्धारित होता है। बेचारे त्रोत्स्किवादी यही चुक जाते रहे है। इतिहास में यही उनकी त्रासदी रही है।
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